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    सबसे मंहगे फल 'कमलम"ड्रैगन फ्रूट के बारे में क्या जानते हैं आप? जानें भारत में इसकी खेती कहाँ होती है

    पिछले दिनों गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने "ड्रैगन फ्रूट" का नाम 'कमलम' करने के प्रस्ताव की घोषणा की तो कई लोग अचरज में पड़ गए। सोशल मीडिया पर उनकी इस घोषणा का मज़ाक़ बनाते हुए लोग कई तरह के संदेश प्रसारित करने लगे। वहीं दूसरी ओर कच्छ,सौराष्ट्र और दक्षिणी गुजरात के इलाक़े में ड्रैगन फ्रूट उगाने वाले किसानों का कहना है कि ऐसी घोषणाओं से कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। इन किसानों की मानें तो प्रतिरोधी क्षमता को बेहतर करने वाले इस फल की जब तक माँग बनी हुई है तब तक यह किसानों के लिए इसकी खेती फ़ायदेमंद है। गुजरात सरकार की ओर से कहा गया कि "ड्रैगन फ्रूट" कमल के जैसा होता है। इसलिए इसका नाम 'कमलम' होना चाहिए। कमल भारतीय जनता पार्टी का चुनाव चिह्न भी है, और गाँधीनगर में स्थित गुजरात बीजेपी मुख्यालय को भी 'कमलम' कहा जाता है। हालाँकि विजय रुपाणी ने ड्रैगन फ्रूट का नाम बदलने के प्रस्ताव के पीछे किसी तरह की राजनीति से इनकार किया है। सौराष्ट्र के विस्वादर शहर के जंबुदा गाँव और राजकोट ज़िले के किसान पिछले 4 साल से ड्रैगन फ्रूट की खेती करते हैं। किसानों ने बताया कि हमने ड्रैगन फ्रूट के जो पौधे लगाए हैं उनमें फूल आ गए हैं। आम तौर पर इन्हें मई-जून में लगाया जाता है। लेकिन इस बार प्रयोग करते हुए शीत ऋतु में भी इसे उगाया गया है।"किसानों को उम्मीद है कि तीन साल में उनके पैसों की वापसी हो जाएगी। उनके मुताबिक़, पौधे लगाने के दूसरे साल से फसल आने लगती है।
    ड्रैगन फ्रूट के पौधों में तीन साल बाद इतने फल आने लगते हैं जिन्हें व्यवसायिक तौर पर बेचा जा सकता है। हर पौधे से क़रीब 15-16 किलोग्राम के फल मिलते हैं। बाज़ार में इसे 250 रुपये से 300 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचा जाता है। ड्रैगन फ्रूट के सीज़न में बाज़ार में यह 150 रुपये से 400 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव पर उपलब्ध होता है। किसानों के मुताबिक़, ड्रैगन फ्रूट में अच्छा फ़ायदा होता है। उनके मुताबिक़ अगर ड्रैगन फ्रूट के दाम कम भी हुए तो भी किसान आसानी से हर साल ढाई लाख रुपये की आमदनी कर लेता है। ख़ास बात यह है कि ड्रैगन फ्रूट की खेती में ज़्यादा श्रम की ज़रूरत नहीं होती है और कीटनाशक के लिए भी ज़्यादा ख़र्च नहीं करना पड़ता है। उनके मुताबिक़ अगर निवेश करने के लिए पैसा हो और सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो तो ड्रैगन फ्रूट की खेती काफ़ी फ़ायदेमंद साबित होती है। किसानों का कहना है कि ड्रैगन फ्रूट के नाम बदलने के बदले सरकार अनुदान मुहैया कराती तो किसानों के लिए उत्पादन लागत कम हो जाती और इसकी खेती ज़्यादा लाभदायक होती। गुजरात के नवसारी ज़िले के पानाज गाँव के किसान बीते 12 सालों से ड्रैगन फ्रूट की खेती करते हैं।
    बताया गया कि परिजन ड्रैगन फ्रूट का पौधा थाईलैंड से लेकर आए थे। जिसे  लोगों ने उसे प्रयोग के तौर पर लगाया था। इसके बाद पश्चिम बंगाल और पुणे से पौधे मँगाकर इसकी खेती शुरू की गई। अभी यहां के लोग एक एकड़ ज़मीन पर लाल वैरायटी वाले ड्रैगन फ्रूट उगाते हैं।"इसकी खेती में ज़्यादा निवेश की ज़रूरत होती है, लेकिन तीन साल तक खेती करने पर निवेश जितनी आमदनी हो जाती है। ड्रैगन फ्रूट पथरीली ज़मीन पर भी उगाया जा सकता है। बताया गया कि अब ड्रैगन फ्रूट से जैम और जैली बनाई जाने लगी है। जिसके चलते इसकी माँग और अधिक बढ़ेगी। महँगा होने के कारण ग्रामीण इलाकों में इसकी माँग कम है, लेकिन सूरत, वडोदरा जैसे शहरों में सारे फल बिक जाते हैं। माना जाता है कि डेंगू के मरीज़ों में जब प्लेटलेट्स गिर जाते हैं तो ड्रैगन फ्रूट का इस्तेमाल काफ़ी लाभकारी होता है। इस विश्वास के चलते भी डेंगू के प्रकोप के समय में इसकी क़ीमत 500 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुँच जाती है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक़, ड्रैगन फ्रूट के इस्तेमाल से शरीर में हीमोग्लोबिन और विटामिन सी की मात्रा बढ़ती है, जिससे प्रतिरोधी क्षमता बेहतर होने में मदद मिलती है। ड्रैगन फ्रूट के उत्पादन में गुजरात का कच्छ क्षेत्र भी आगे है। कच्छ में एक किसान ने दो एकड़ ज़मीन में ड्रैगन फ्रूट के 900 पौधे लगाए हैं।
    उनका कहना है कि ड्रैगन फ्रूट की खेती वैसी किसी भी ज़मीन पर हो सकती है जहां बाढ़ की स्थिति नहीं बनती हो। यहाँ तक कि पथरीली ज़मीन पर भी इसकी खेती हो सकती है। ड्रैगन फ्रूट की खेती में सबसे ख़ास बात यह है कि फलों की एडवांस बुकिंग होती है जिससे किसानों को दाम की चिंता नहीं करनी होती है।
    किसानों ने बताया कि, 'सरकार, कृषि विश्वविद्यालय और नौकरशाही, किसी ने भी इसकी खेती को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ भी नहीं किया। उनके मुताबिक खेती को केवल उद्यमिता और प्रयोगों के ज़रिए बढ़ावा मिल सकता है। ड्रैगन फ्रूट दक्षिण अमेरिका और मध्य अमेरिका में पाए जाने वाले जंगली कैक्टस की एक प्रजाति है। लैटिन अमेरिकी देशों वाले ड्रैगन फ्रूट की खेती लंबे समय से थाईलैंड और वियतनाम जैसे दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में हो रही है। पिछले कुछ सालों से और ख़ासकर गुजरात के कच्छ इलाक़े के किसानों ने इसकी खेती में दिलचस्पी ली है। गुजरात के सौराष्ट्र और दक्षिणी गुजरात के किसानों ने परंपरागत फसलों की जगह बाग़वानी को अपनाया और उसमें ड्रैगन फ्रूट सबसे पसंदीदा बनकर उभरा है। लैटिन अमेरिकी देशों में ड्रैगन फ्रूट को फादर भी कहते हैं। इसमें कीवी फल की तरह ही बीज होते हैं। दुनियां भर में वियतनाम में ड्रैगन फ्रूट का सबसे ज़्यादा उत्पादन होता है और वही सबसे बड़ा निर्यातक देश है। वियतनाम में यह फल 19वीं शताब्दी में फ्रेंच आप्रवासियों की मदद से पहुँचा था। वियतनाम में इसे 'थान लाँग यानी ड्रैगन की आँख' भी कहते हैं। माना जाता है कि भारत में ड्रैगन फ्रूट की खेती की शुरुआत 1990 के दशक में हुई। गुजरात के अलावां अब केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक,पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में भी इसकी खेती होने लगी है। लेकिन उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा,असम,उड़ीसा,राजस्थान,बिहार और मध्य प्रदेश के किसानों ने अभी कोई
    दिलचस्पी नहीं दिखाई है। गुजरात के कई किसान, ड्रैगन फ्रूट की खेती के बारे में जानने के लिए पुणे जाकर अध्ययन करते हैं। इसके अलावा लोग इंटरनेट के ज़रिए जानकारी जुटाकर प्रयोग कर रहे हैं।
    गुजरात के किसान, इसे उगाना इसलिए पसंद करने लगे हैं क्योंकि यह किसी भी तरह की ज़मीन में उगाया जा सकता है। यह विपरीत मौसम में हो सकता है, बहुत पानी की भी ज़रूरत नहीं होती है और फल के आने से पहले बिक्री हो जाती है।
    ड्रैगन फ्रूट दो रंग में होते हैं- लाल और सफेद लाल रंग वाली वैरायटी की माँग ज़्यादा होती है। फल को बीच से काटकर उसे निकाला जाता है। यह बहुत मुलायम भी होता है और इससे शेक भी बनाया जाता है। ड्रैगन फ्रूट गहरे रंग का होता है लेकिन स्वाद में फीका होता है। इसका इस्तेमाल कई डिशेज़ में भी किया जाता है। इसका उत्पादन चीन, ऑस्ट्रेलिया, इसराइल और श्रीलंका में भी होता है।
    ड्रैगन फ्रूट को लंबे समय से भारतीय ही माना जाता रहा था। पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' में कच्छ के ड्रैगन फ्रूट उपजाने वाले किसानों की प्रशंसा की थी। कच्छ का इलाक़ा एक समय रेगिस्तानी इलाके के तौर पर जाना था लेकिन यहाँ के किसानों ने प्रयोग करके कई तरह के फलों का उत्पादन शुरू किया है। इसी वजह से ड्रैगन फ्रूट की खेती को सरकार के आत्मनिर्भरता के अभियान से भी जोड़कर देखा जा रहा है। मौजूदा समय में कच्छ के 57 हज़ार हेक्टयर ज़मीन में खजूर,आम, अनार,ड्रैगन फ्रूट,चीकू, नारियल और अमरूद जैसे फलों की बंपर खेती हो रही है। कई लोग ड्रैगन फ्रूट को चीन का फल मानते हैं। माना जा रहा है कि इसी वजह से गुजरात सरकार ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) को इसका नाम 'कमलम' करने का प्रस्ताव भेजा है। प्रस्ताव को अभी केंद्रीय कृषि मंत्रालय भेजा गया है।
    इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक़, आईसीएआर इस मामले में केवल अनुशंसा कर सकती थी। किसी भी फल या फसल की प्रजाति के नाम का निर्धारण कृषि विभाग और दूसरे विभागों के आपसी सहयोग से हो सकता है।
    भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के एक अधिकारी के मुताबिक़, इस प्रस्ताव को भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय के अधीन आने वाली संस्थाएं भारतीय बोटैनिकल सर्वे (बीएसआई) और नेशनल बायोडायवर्सिटी अथॉरिटी (एनबीए) से भी सहमति लेनी होगी। इसकी वजह ड्रैगन फ्रूट का भारतीय मूल का नहीं होना है। ड्रैगन फ्रूट का आधिकारिक तौर पर नाम बदलने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क़ानूनी आपत्तियां उठ सकती हैं। इसलिए इस मामले में भारतीय बोटैनिकल सर्वे (बीएसआई) और नेशनल बायो डायवर्सिटी अथॉरिटी (एनबीए) की सहमति मिलनी ज़रूरी है।


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