सलिल की 193वीं मासिक काव्य गोष्ठी होली से रही सराबोर
गोरखपुर। "सलिल"- साहित्यिक सांस्कृतिक व सामाजिक संस्था, गोरखपुर की 193वीं (एक सौ तिरानबे वीं) श्रृंखला की मासिक काव्यगोष्ठी होली से सराबोर रही। कार्यक्रम का आयोजन आर्य आश्रम जटेपुर गोरखपुर में हुआ। सभाध्यक्षता "पं०हरिवंश शुक्ल'' हरीश ने की । मुख्य अतिथि चन्द्र गुप्त प्रसाद वर्मा " अकिञ्चन के सरस्वती के वाणी वन्दना से प्रारम्भ हो कर होली के रंग में रंग गई। संचालन का कार्य संस्थाध्यक्ष नील कमल गुप्त "विक्षिप्त" ने किया। सर्वप्रथम मृदुत्पल नीलोर्मि गुप्त "सूक्ष्म" ने पढ़ा....
हृद उमंग, प्रेमसंग, अंग अंग रंग पोत। पर्व होली का नहीं, "होलिका दहन" ही हो।
सामाजिक कुरीतियाँ व्याप्त कुपरम्परावश वृत्ति भ्रष्टाचार का हर्षमय हवन भी हो।।
क्रम को आगे बढ़ाते हुवे त्रिपुरारी शर्मा "अनाम" ने भी कहा--- जनि क र गोरी एतना चँहटा हो आइल बाटे फगुनहटा।
रामसमुझ साँवरा जी ने कहा- दुइ पुड़िया रंग घोरलैं, एक बल्टी पानी,.. फगुनवा में देवरू करैं छेड़खानी।
रामसुधार सिंह '"सैंथवार'" ने पढ़ा--
सइयाँ हैं विदेश ढींठ देवरा न माने।करेला बरजोरिया होली बहाने।।
नील कमल गुप्त "विक्षिप्त" ने कहा.....
मुझको रंग लो अपने ही रंग।मलो मेरे अंग अंग पर रंग।।
अरुण दास ब्रह्मचारी की पंक्तियाँ इस प्रकार रही...
श्मशान की चिता ही जो आखिरी पता है। जीवन "अरुण" है जीता फिर भी मचल मचल कर।।
नन्द कुमार त्रिपाठी ने कहा...
बहारों में हो तन्हाई, हमें अच्छी नहीं लगती।तेरे नयनों की रुसुवायी हमें अच्छी नहीं लगती।
मुख्य अतिथि चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा "अकिञ्चन" ने पढ़ा-
तनि ले ल मज़ा मनजोरी में। कह -स र र र- एही होली में
सभाध्यक्ष हरिवंश शुक्ल "हरीश" की प्रस्तुति इसप्रकार रही...
अनायास प्रयास न करो प्रियतम, हम लाल गुलाल लगाये हुवे हैं ।मति छेड़छाड़ करो अबही जो हम रंग में भंग चढ़ाये हुवे हैं ।
इस प्रकार गोष्ठी के समापन पर विगत कुछ ही दिनों पूर्व गोरखपुर के माने जाने हास्य- कवि निर्मल कुमार गुप्त "निर्मल" के हुवे दिवंगत पत्नी के प्रति दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
और अन्त में आयोजक नील कमल गुप्त "विक्षिप्त" ने उपस्थित सभी साहित्य प्रेमियों के प्रति आभार प्रकट किया और इस क्रम की गोष्ठी सम्पन्नता को प्राप्त हुई।
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