मानवता और मित्रता का कोई मूल्य नहीं -विद्याधर जी महाराज
सहजनवा गोरखपुर बांसगांव संदेश सुदामा के दीनता और भगवान कृष्ण के ऐश्वर्य की क्या तुलना हो सकती है । द्वार पर खड़े गरीब सुदामा को गले लगा कर मित्रता का नहीं, भगवान् कृष्ण ने मानवता का भी संदेश दिया है । जिसका गुणगान युगों युगों तक मानव समाज करता रहेगा ।
उक्त बातें- अयोध्या धाम से पधारे विद्याधर जी महाराज ने कहा । वह पाली विकासखंड के ग्राम तख्ता में श्रीमद् भागवत कथा व्यासपीठ से पांचवें दिन श्रद्धालुओं को कथा रसपान करा रहे थे । उन्होंने कहा कि द्वारिका में सुदामा जी का भव्य स्वागत किया गया और बड़े सम्मान से राजमहल ले जाया गया ।
बाल सखा को पाकर द्वारकाधीश भगवान कृष्ण ने बचपन के बीते गुरुकुल की दिनों को याद करते हुए बहुत सी बातें की । कुछ दिन रहने के बाद घर विदा करने से पहले ही, उसके सभी दुख और दरिद्रता को दूर कर दिया ।
कथा व्यास ने कहा कि-गरीब होते हुए भी सुदामा जी कभी धन के लिए गलत रास्ते को नहीं चुना, अपने कर्म और प्रभु पर अटूट विश्वास रखते हुए मानवता के मार्ग पर चलते रहे । जिसके कारण उन्हें दुख का भी उठाना पड़ा पर मानवता के मार्ग से बिचलित नहीं हुए ।
दूसरी तरफ भगवान कृष्ण ने एक राजा और एक मित्र का एक साथ फर्ज बखूबी से निर्वाह किया । जो सब समाज के लिए एक प्रेरणा स्रोत है । राजा का कर्तव्य है कि वह अपने सभ्य और अच्छे नागरिक का ध्यान रखना रखें और उसकी समस्या को तत्काल दूर करें । दूसरे शब्दों में यदि मित्र गरीब भी हो, तो भी आवश्यकता पड़ने पर उसकी मदद का प्रयास करना एक सच्चे मित्र का धर्म है । मनुष्य होने के नाते किसी मनुष्य की मदद करना उसका कर्तव्य भी और धर्म भी है । कृष्ण सुदामा की अनुपम मित्रता और मानवता का संदेश युगों युगों तक मानव समाज को उसके कर्तव्य का उसके कर्तव्य का बोध कराता रहेगा । उक्त अवसर पर उक्त अवसर पर मुख्य यजमान प्रेमलता मिश्रा, कैलाश नाथ मिश्र, राघवेंद्र शुक्ला, नरसिंह शुक्ला, केदारनाथ, घनश्याम, राजन मिश्रा, शिबू, ऋषिकेश, प्रभाकर त्रिपाठी समेत कई लोग मौजूद थे ।
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