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    सवाल उठना साजिश है तो एफ आई आर होना उससे भी बड़ी साजिश



    उत्तरप्रदेश।मुरादाबाद।सपा प्रमुख अखिलेश यादव की प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकारों के साथ हुए विवाद के बाद क्रॉस एफ आई आर हुई पहले पत्रकारों की तरफ से और फिर उसके बाद जिला संगठन के मुखिया की तरफ से पत्रकारों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज हुआ। यह कहा जा रहा है कि पत्रकार आज़म खान के बेहद करीबी हैं इसमें कोई संदेह भी नही  है वह आज़म खान के करीबी होने के साथ सपा के शुभचिंतक भी रहे हैं। क्योंकि एक पत्रकार तो सपा सरकार में नामित पार्षद थे तो दूसरे पत्रकार का भी कम जलवा नहीं था। पत्रकारों ने जो सवाल उठाए हैं वह आज़मवादियों के अलावा अवाम की जबान पर भी कहीं ना कहीं सुनने को मिल रहे हैं सबको मालूम है कि नेता जी का सरकार को दिया आशीर्वाद उनके परिवार के खूब काम आ रहा है लेकिन आज़म खान का रात दिन सरकार को कोसना भारी पड़ गया। आज़म खान यह भूल गए कि वह नई सपा के नए अध्यक्ष के साथ काम कर रहे हैं वह यह भी भूल गए कि मुलायम सिंह यादव पहलवान रहे हैं किस को कैसे पटकना है वह इसके माहिर हैं। आखिर तक उनके दांव को लोग समझ नहीं पाते और जब समझ पाते हैं तो बहुत देर हो चुकी होती है। नेता जी के बेटे उनके संरक्षण में पार्टी चला रहे हैं  वह पत्रकारों के सवाल की गुगली समझ गए और उन्होंने उस गुगली को सेफ तरीके से धकेल दिया। पत्रकार भी मानने वाले कहां थे उन्होंने बाउंसर मार दिया अब गलती यहां हुई कि बाउंसर का जवाब बाउंसर ने दे दिया बहरहाल मुद्दा यह है कि दो दिन की खामोशी के बाद मुकदमा क्यों हुआ और सपाई मुकदमे के बाद शांत क्यूं रहे जबकि मुखिया के खिलाफ मुकदमा हुआ और जवानी कुर्बान गैंग खामोश रहा। अखिलेश यादव को इसी सवाल का जवाब ढूंढना है क्यूंकि मुकदमा लिखाने वाले तो घर बैठे थे फिर तीसरे आदमी ने जो मुकदमा लिखाया उसको किसी ने रोका क्यों नही। जबकि वह संगठन के मुखिया का भी करीबी है। असल में शहर के एक पूर्व कमांडर जिनको अखिलेश यादव की प्रेस कॉन्फ्रेंस के हंगामे में गिरते पड़ते देखा गया था उन पर कई दाग हैं और वह तीसरा टिकट चाहते हैं उन्होंने सोचा मामले को थोड़ा उलझा दो फिर सुलझा देंगे उनके इस दांव को कई अखिलेश यादव के कोटे के लोगों ने भी समर्थन कर दिया  क्योंकि वह भी इस खेल के पुराने खिलाड़ी हैं और प्रशासन से अच्छी सेटिंग रखते हैं उलझना फिर सुलझाना और अपने आप को चमकाना इसके वह मास्टर हैं। सुप्रीमो के खिलाफ जैसे ही मुकदमा हुआ उन्होंने संगठन प्रमुख से तुरंत मुकदमा लिखवा दिया। अखिलेश यादव पर जो मुकदमा हुआ है वह रोका जा सकता था विवाद को क्यों बढ़ाया गया। क्या अपनी दुकान चमकाने को अपने ही घर को निशाना बनाया गया? क्यूंकि अखिलेश यादव पर मुकदमा दर्ज होने से मुरादाबाद की जनता बहुत दुखी है मुरादाबाद में सपा मुखिया पर मुकदमा होना शर्मनाक है क्योंकि यह तो सपा का गढ़ है अब गढ़ में ही सुप्रीमो पर मुकदमे होंगे तो फिर पूरे प्रदेश में क्या होगा? क्योंकि गढ़ में गरजने वाले छोटे बड़े शेर सभी खामोश थे। अब सुप्रीमो को बहुत सोच समझकर चलना है क्योंकि शहर में चर्चा है कि चेले सुप्रीमो के मामले को रफा दफा करना चाहते हैं। इस प्रकरण में जिस युवा की बलि चढ़ी है वह बहुत मासूम है लेकिन बेचारा बलि का बकरा बन गया और नकली शेरों का शिकार हो गया। सवाल तो उन लोगों से होना चाहिए जो प्रेस कांफ्रेंस के वक्त मौजूद थे और मूकदर्शक रहे और आज तक खामोश हैं। उन लोगों से सवाल होने चाहिए जो मुकदमा दर्ज होने के पूरे घटना क्रम को देखते रहे। 

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