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    गुजरात हाईकोर्ट ने कहा है कि महिलाओं के मासिक धर्म के आधार पर उनके बहिष्कार पर प्रतिबंध हो


    गांधीनगर. गुजरात हाईकोर्ट ने कहा है कि सभी स्थानों पर महिला के मासिक धर्म की स्थिति के आधार पर उनके बहिष्कार पर प्रतिबंध होना चाहिये. कोर्ट ने प्राथमिक रूप से मामले को देखते हुए कहा कि चाहे वह निजी हो या सार्वजनिक हो चाहे धार्मिक हो या शैक्षणिक, सभी जगहों पर महिला की माहवारी के मामले में बहिष्कार नहीं होना चाहिए. हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार को इस मामले में सामाजिक जागरूकता अभियान चलाना चाहिए. हालांकि कोर्ट ने साथ में कहा कि आखिरी फैसला आने से पहले वह इस मुद्दे पर राज्य और केंद्र सरकार को सुनना चाहते है. 30 मार्च तक इस मामले में सरकार को जवाब देना है.क्या है मामला? जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस इलेश जे. वोरा की खंडपीठ एक घटना के संबंध में दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कच्छ के भुज शहर में श्री सहजानंद गर्ल्स इंस्टीट्यूट के एक छात्रावास में 60 से अधिक लड़कियों को कथित तौर पर यह साबित करने के लिए मजबूर किया गया कि वह मासिक धर्म से नहीं गुजर रही हैं.मिली जानकारी के अनुसार ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रही 68 लड़कियों को कॉलेज में घुमाते हुए रेस्ट रूम तक ले जाया गया और फिर वहां सभी से कहा गया कि वह साबित करनें वह मासिक धर्म से नहीं गुजर रही हैं. इसके लिए उनसे अंतःवस्त्र उतारने को कहा गया था. लाइव लॉ के अनुसार यह घटना उस वक्त की है जब हॉस्टर की रेक्टर ने प्रिंसिंपल से इस बात की शिकायत की थी कि कुछ लड़कियां धर्म के नियमों का पालन नहीं कर रही हैं. खास तौर से उन पर मासिक धर्म के समय नियमों का पालन ना करने का आरोप था. इस घटना के बाद निर्झरी मुकुल सिन्हा ने मासिक धर्म के आधार पर महिलाओं को बहिष्कार की प्रथा को खत्म करने के लिए खासतौर से कानून बनाने के लिए दिशा-निर्देश केलिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी. याचिका में कहा गया था कि महिलाओं का बहिष्कार संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 17, 19 और 21 में निहित मानवीय कानूनू, और मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।

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