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    नेपाल सीमा पर मानवीय संवेदनाएं शून्य।

    बहराइच । बाँसगावं संदेश। (बीएन सिंह) इंडो-नेपाल सीमा पर मानवीय संवेदनाएं खत्म होती जा रही हैं। पिछले लगभग एक साल से  आवागमन की सुविधाएं लगभग खत्म हो चुकी हैं। इससे दोनों देशो के  सीमावर्ती लोग भारी परेशानियों से जूझ रहे हैं। 
            सवारी के साधनों, यहां तक कि साइकिल पर भी पाबन्दी होने के कारण मजदूर, छोटे-छोटे बच्चे और वृद्ध जन कई किलोमीटर पैदल चलकर सीमा तक पहुंच रहे हैं। भारत के बहराइच जनपद की सीमा नेपाल के वर्दिया, बांके आदि नेपाली जिलों से सटी है। तराई के लगभग आधा दर्जन जिले भी भारतीय सीमा से लगे हुए हैं। नेपाली मधेशियों का बहराइच, गोण्डा ,श्रावस्ती बलरामपुर सहित अन्य जिलों से रोटी-बेटी का सम्बंध बहुत प्राचीन समय से चला आ रहा है। ऐसे रिश्तों को निभाने के लिए एक दूजे के यहां आना-जाना होता रहा है। पिछले दिनों नेपाल के वित्त मंत्री विष्णु पौडेल का बयान आया था कि कैबिनेट के निर्णय के अनुसार इन्डो-नेपाल के 14 बॉर्डर खोल दिये गए हैं। इसी के 3 दिन बाद बांके जिले के डीएम रामबहादुर कुरुमवांग की ओर से सात सूत्रीय एक प्रेस विज्ञप्ति जारी हो गई कि भारत मे कोरोना बढ़ जाने के कारण सीमा पर और सख्ती की जा रही है। केवल एम्बुलेंस और रोगियों के लिये आवागमन में छूट रहेगी। भारतीय सीमा पर तैनात एसएसबी के एक उच्चाधिकारी का कहना है कि गृह मंत्रालय से बार्डर खोलने का कोई आदेश नहीं मिला है। जिससे स्थिति अभी पूर्ववत है।

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