तकरीबन एक हज़ार साल पुरानी है, गोरखपुर की दरग़ाह हज़रत मुबारक खाँ शहीद
गोरखपुर। बेतिहायाहाता के नार्मल वाक़े हज़रत मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमां की मशहूर व मारूफ दरगाह है। यह दरगाह तकरीबन एक हजार साल क़दीम बतायी जाती है। यहां कुल 9 मजारें हैं। दरगाह का गुंबद अजमेर शरीफ दरगाह की तर्ज पर तामीर किया गया है। यह दरगाह वक़्फ महकमा में दर्ज है। हज़रत मुबारक खां शहीद हजरत सैयद सालार मसूद गाजी मियां अलैहिर्रहमां के खलीफा व मुरीदीन में से थे। आप उन्हीं के साथ हिन्दुस्तान आये। गाजी मियां ने बुराईयों को खत्म करने के लिए आपको गारेखपुर भेजा। हक और बातिल की जंग में आपने बहादुरी के साथ लड़ते-लड़ते कम उम्री में शहादत का जाम पिया। आप पैदाइशी वली थे। इस दरगाह पर जुमेरात, नौचंदी जुमेरात और शब-ए-बरात में काफी मजमा होता है। यहां ईद के चांद यानी शव्वाल माह की 26, 27, 28 तारीख को यहां उर्स-ए-पाक मनाया जाता है। इस मौके पर यहां मेला भी लगता है। जिसमें हर मज़हब के मानने वालों की शिरकत होती है। हज़रत मुबारक खां शहीद पूर्वांचल के बड़े औलिया-ए-किराम में शुमार होते हैं। आज भी इस दरगाह को आला मकाम हासिल है।
वहीं, तकरीबन 156 साल पहले मियां साहब इमामबाड़ा एस्टेट के सज्जादानशीन सैयद अहमद अली शाह ने अपनी किताब महबूबुत तवारीख जो 118 पन्नों की है, यह किताब साल 1863 में शाया हुई थी, उसमें वे लिखते हैं कि 'मुबारज खां नामी नहीं दूर हैं, दक्किन शहर के खूब मशहूर हैं'। इससे पता चलता है 156 साल पहले हज़रत मुबारक खां शहीद हज़रत मुबारज खां के नाम से मशहूर थे। बाद में उन्हें हज़रत मुबारक खां शहीद कहा जाने लगा।
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