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    भारत तैयार कर रहा पहले से ज्यादा असरदार और अनुकूल कोरोना वैक्सीन, करना पड़ेगा थोड़ा इंतजार

    सोहनपुर, देवरिया। बांसगांव संदेश ( गौतम सिंह)
    बेंगलुरू। 
    भारत में कोरोना वायरस से जंग में जो सबसे बड़ा रोड़ा है, वो वैक्सीन की कमी है। ऐसे में अब भारतीय वैज्ञानिक देश की अदृश्य दुश्मन के साथ लड़ाई को और मजबूत करने के लिए कमर कस चुके हैं। बेंगलुरू स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में इसके लिए काम भी शुरू हो चुका है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इस बार का टीका कोरोना के दूसरे वेरिएंट्स का भी काम तमाम करने की क्षमता रखेगा।

    IISc के मॉलिकुलर बायोप्सिस यूनिट के वैज्ञानिकों का दावा है कि उन्होंने ऐसे अणुओं की पहचान कर ली है, जो कोरोनावायरस महामारी से लड़ने में काफी फायदेमंद साबित होने वाले हैं।

    ये अणु न्यूट्रलाइज़िंग एंटी बॉडीज़ की अच्छी मात्रा उत्पन्न करने की क्षमता रखते हैं। ऐसे में इनका असर भी भारत में पहले से मौजूद वैक्सीन की तुलना में काफी ज्यादा होगा। मॉलिकुलर बायोप्सिस के प्रोफेसर राघवन वरदाराजन बताते हैं कि - 'ये अणु शरीर में काफी ज्यादा मात्रा में न्यूट्रलाइज़िंग एंटीबॉडीज़ पैदा करते हैं। यही वजह है कि ये वायरस के लिए खतरनाक हैं। 

    8 गुना ज्यादा एंटीबॉडी पैदा करेगी नई वैक्सीन

    चूहों और खरगोशों पर किए गए क्लिनिकल ट्रायल में अणुओं का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा। जिन जानवरों पर ये फॉर्मूला टेस्ट किया गया उनमें कोविड से रिकवर हुए मरीजों में पाई गई एंटीबाडी से 8 गुना ज्यादा एंटीबॉडी थी। वैज्ञानिक बताते हैं कि एंटीबॉडी की मात्रा बहुत ज्यादा रहने का फायदा ये है कि अगर ये कम भी होती है, तब भी बीमारी से हमें बचाने की पर्याप्त क्षमता रखेगी।

    भारतीय वातावरण के अनुकूल होगी

    नई वैक्सीन की खासियत होगी कि ये भारतीय वातावरण के अनुकूल रहेगी। ये गर्म वैक्सीन है, ऐसे में इसे रूम टेम्परेचर पर स्टोर किया जा सकेगा। अब तक भारत में इस्तेमाल हो रही वैक्सीन को काफी कम तापमान चाहिए होता है, ऐसे में इसके खराब होने का खतरा ज्यादा है। जब वैक्सीन रूम टेम्पचेर पर रखी जा सकेगी तो टीकाकरण अभियान में काफी आसानी हो जाएगी।

    मौजूदा वैक्सीन से किस तरह अलग होगा नया टीका?

    वैज्ञानिकों का कहना है कि उनके द्वारा बनाई जा रही वैक्सीन में सबयूनिट वैक्सीन है। वायरस के सरफेस पर मौजूद स्पाइक प्रोटीन की बाइंडिंग क्षमता रिसेप्टर और सेल्स पर सबसे ज्यादा होती है। इसे रिसेप्टर बाइंडिंग डोमेन कहते हैं। स्पाइक प्रोटीन 1700 अमीनो एसिड लंबा होता है। वैक्सीन में मौजूद रिसेप्टर बाइंडिंग डोमेन इसका छोटा सा हिस्सा है, ये 200 अमीनो एसिड लंबा है। वैज्ञानिक बताते हैं कि इस वक्त देश में मौजूद किसी भी वैक्सीन में सबयूनिट वैक्सीन नहीं है। इस वैक्सीन पर IISc पिछले साल से काम कर रहा है।


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