रिलायंस फाउंडेशन की तरफ से गोरखपुर जिले के विभिन्न गांवों में व्हाट्सएप से संबंधित पशुपालन कार्यक्रम का हुआ आयोजन
सहजनवा ।गोरखपुर गोरखपुर जिले के विभिन्न गांव में इस कार्यक्रम के माध्यम से ग्रामीणों को पशुओं में होने वाली बिभिन्न समस्यायों जैसे किलनी की समस्या,खुरपका मुंहपका, गर्मी के मौसम में दुग्ध उत्पादन में कमी से संबंधित, पशुओं के चारा से संबंधित, गर्मी में जानवरों का रख रखाव, गाविन से सम्बन्धित बिभिन्न समस्यायों की जानकारी दी गई।इस कार्यक्रम के माध्यम से वरिष्ठ पशु डॉक्टर डा के. एस. सिंह नें व्हाट्सएप्प एवं मोबाइल कांफ्रेंस के माध्यम से किसानों का मार्गदर्शन किया। डॉक्टर सिंह ने पशुओं में थनैली रोग पर प्रकाश डालते हुए बताया कि
यह थनों का संक्रामक रोग है ।जो जानवरों को गंदे गीले और कीचड़ वाले स्थान पर रखने से होता है । थन में चोट लगने ,दूध पीते समय बछड़ा /बछिया के दांत लगने या गलत तरीके से दूध दुहने से इस रोग की संभावना बढ़ती है। इस रोग का कारण बहुत सारे जीवाणु ,विषाणु एंव अन्य सूक्ष्मजीव हैं। इसके लक्षण में थन में सूजन तथा दर्द होता है और कड़ा भी हो जाता है ।दूध फट जाता है और फिर रक्त या मवाद पड़ जाता है तथा स्वाद मे नमक मिला जैसा लगता है। लक्षण यदि गंभीर दिखाई दे तो पशु को तत्काल चिकित्सक की सलाह से इसका उपचार कराएं ।
पशुपालक भाइयों को चाहिए कि वह थनों को बाहरी चोट लगने से बचाएं पशु घर के फर्श को सूखा रखें समय समय पर चूने का छिड़काव करें और मक्खियो पर नियंत्रण करें। दूध दुहने के लिए पशु को दूसरे स्वच्छ स्थान पर ले जाएं ।दूध दुहने से पहले थनों को खूब अच्छी तरह से साफ पानी से धो लें, दूध जल्दी से और एक बार में ही दुहे , दूध दुहने से पूर्व साबुन से अपने हाथ धो लें ।थनैला बीमारी से ग्रस्त पशु का दूध अंत में एक अलग बर्तन में दूहे तथा उसे उपयोग में न लाएं। घर में स्वस्थ पशुओं का दूध पहले और बीमार पशु का दूध अन्त मे दूहे।दूध दुहने के पश्चात थनों को एंटीसेप्टिक जैसे की आइडोफोर में डूबाये या घोल का स्प्रे करें ।दूध दुहने के बाद पशु को जमीन पर तुरंत न बैठने दे।
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