प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का निधन- ऋषिकेश एम्स में ली अंतिम सांस।
नैनीताल- कोरोना से संक्रमित प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का आज निधन हो गया। बहुगुणा ने एम्स ऋषिकेश में आखिरी सांस ली।
8 मई से आईसीयू वार्ड में भर्ती पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा के फेफड़ों में 12 मई को संक्रमण पाया गया था ।उसके बाद एनआरबीएम मास्क के माध्यम से उन्हें 8 लीटर ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया था। जहां संस्थान के चिकित्सकों की टीम उनके स्वास्थ्य की निगरानी व उपचार में जुटी हुई थी ।बीते मंगलवार को कॉर्डियोलॉजी विभाग के चिकित्सकों की टीम ने पर्यावरणविद् सुंदरलाल लाल बहुगुणा की हृदय संबंधी विभिन्न जांचें की , इसके अलावा उनके दांए पैर में सूजन आने की शिकायत पर उनकी डीवीटी स्क्रीनिंग भी की गई ।गुरुवार को ऑक्सीजन सैचुरेशन लेवल 86 पर था व उनके ऑक्सीजन लेवल में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही थी ।वह डायबिटीज के पेशेंट थे व उन्हें कोविड निमोनिया भी हो गया था। विभिन्न रोगों से ग्रसित होने के कारण वह पिछले कई वर्षों से दवाईयों का सेवन कर रहे थे।
टिहरी में जन्मे सुंदरलाल उस समय राजनीति में दाखिल हुए जब बच्चों के खेलने की उम्र होती है ।13 साल की उम्र में उन्होंने राजनीतिक कैरियर शुरू किया ।दरअसल राजनीति में आने के लिए उनके दोस्त श्रीदेव सुमन ने उनको प्रेरित किया था ।सुमन गांधीजी के अहिंसा के सिद्धांतों के पक्के अनुयायी थे। सुंदरलाल ने उनसे सीखा कि कैसे अहिंसा के मार्ग पर चल कर समस्याओं का समाधान करना है।
1956 में उनकी शादी होने के बाद राजनीतिक जीवन से उन्होंने संन्यास ले लिया 18 साल की उम्र में वह पढ़ने के लिए लाहौर चले गए । 23 साल की उम्र में उनका विवाह विमला देवी के साथ हुआ उसके बाद उन्होंने गांव में रहने का फैसला किया और पहाड़ियों में एक आश्रम खोला ।इसके अतिरिक्त उन्होंने टिहरी के आसपास के इलाके में शराब के खिलाफ मोर्चा खोला।
1960 के दशक में उन्होंने अपना ध्यान वन और पेड़ों की सुरक्षा पर केंद्रित किया। पेड़ पौधों के कटान को रोकने व पर्यावरण सुरक्षा के लिए 1970 में *चिपको आंदोलन* शुरू किया। बाद में यह यह आंदोलन पूरे भारत में फैलने लगा गढ़वाल हिमालय में पेड़ों के काटने को लेकर शांतिपूर्ण आंदोलन बढ़ रहे थे 26 मार्च 1974 को चमोली जिले की ग्रामीण महिलाएं उस समय पेड़ से चिपककर खड़ी हो गई। जब ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने के लिए आए यह विरोध प्रदर्शन तुरंत पूरे देश में फैल गया। 1980 की शुरुआत में बहुगुणा ने हिमालय की 5,000 किलोमीटर की यात्रा की, उन्होंने यात्रा के दौरान गांवों का दौरा किया और लोगों के बीच पर्यावरण सुरक्षा का संदेश फैलाया।
उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भेंट की और इंदिरा गांधी से 15 साल तक के लिए पेड़ों के काटने पर रोक लगाने का आग्रह किया। इसके बाद पेड़ों के काटने पर 15 साल के लिए रोक लगा दी गई।
बहुगुणा ने टिहरी बांध के खिलाफ आंदोलन में भी अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने कई बार भूख हड़ताल की ।तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के शासनकाल के दौरान उन्होंने डेढ़ महीने तक भूख हड़ताल की थी ।सालों तक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के बाद 2004 में बांध पर फिर से काम शुरू किया गया। उनका था है कि इससे सिर्फ धनी किसानों को फायदा होगा और टिहरी के जंगल बर्बाद हो जाएंगे उन्होंने कहा था कि भले ही बांध भूकंप का सामना कर लेगा ,लेकिन यह पहाड़ियां नहीं कर पाएंगी। उनका मानना थो कि पहले से ही पहाड़ियों में बड़ी बड़ी दरारें पड़ गई हैं ।अगर बांध टूटा तो 12 घंटे के अंदर बुलंदशहर तक का इलाका डूब जाएगा।
आज इस महान व्यक्तित्व के चले जाने से राजीनीतिक जगत के साथ ही सामाजिक संगठनों ने गहरा शोक व्यक्त करते हुये उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है।
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