गीता ज्ञान का भंडार है :आचार्य सर्वेश शुक्ल
गगहा,गोरखपुर। भगवत भक्ति से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। गजराज श्री कृष्ण का परम भक्त था । वह पूर्व जन्म में द्रविण देश का राजा इन्द्रधुम्न था।एक बार राज पाट त्यागकर मलय पर्वत पर रहने लगे। इस बात पर अगस्त ऋषि बहुत कुपित हुए और प्रजापालक एवं राजधर्म का परित्याग करने वाले राजा को हाथी की योनि प्राप्त होने का शाप दे दिया।
उक्त बातें गगहा विकास खण्ड के ग्राम पंचायत बड़गो में आयोजित सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन आचार्य सर्वेश शुक्ल ने व्यास पीठ पर उपस्थित श्रोताओं को कथा का रसपान कराते हुए कही। उन्होंने कहा कि एक दिन गजेंद्र अपने साथियों के वरूण के ऋतुमान नामक उद्यान में स्थित सुन्दर कमल से युक्त सरोवर में जल क्रीड़ा करने लगा तभी उसमें निवास करने वाले ग्राह ने गजेंद्र को पकड़ लिया। गजराज ने पैर छुड़ाने का असफल प्रयास किया लेकिन सफलता नहीं मिली तब गजराज ने श्री हरि को पुकारा श्री हरि ने ग्राह का मुख सुदर्शन चक्र से फाड़कर गजेंद्र का उद्धार किया ।ग्राह भी पूर्व जन्म में श्री कृष्ण भक्त गंधर्व था ऋषि देवल के श्राप से ग्राह का जन्म मिला था।वह भी भगवान की कृपा से मोक्ष को प्राप्त किया। भगवान श्री कृष्ण ने एक ही साथ अपने दो भक्तों का उद्धार किया।इस अवसर पर मुख्य यजमान उमाशंकर तिवारी, कृष्ण कुमार तिवारी,हृदय नारायण तिवारी, अरविंद तिवारी,गायित्री देवी सहित अनेकों श्रोता मौजूद रहे।
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