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    अब खुद ही गिर जाओ न टूटकर, पत्थर मारने वाले मोबाइल में व्यस्त हैं


    बहराइच। बाँसगांव संदेश (बी0 एन0 सिंह) पहले और आज की बदली हुई परिस्थितियों का आंकलन करते हुवे उक्त उद्गार प्रसिद्ध चिन्तक, अर्थशास्त्री और माध्यमिक शिक्षक संघ के जिला अध्यक्ष डॉक्टर दीनबंधु शुक्ला ने व्यक्त करते हुवे कहा कि
    कहने को  जेठ की दुपहरी लेकिन कई बार इंद्रदेव की कृपा ने पूरे वातावरण को हरा भरा बना दिया है। तरावट का एहसास सावन को भी फीका कर रहा है। योगी राज में सुधरी विद्युत व्यवस्था तथा नेट की उपलब्धता ने गाँव की जीवन शैली को ही बदल कर रख दिया ।  गलियों में सन्नाटा ...अब बिना किसी प्रयोजन के यहां भी अब लोग नही दिखते हैं।इस मामले में अब ग्रामीण समाज भी शहर की बराबरी की ओर अग्रसर है। बाग बगीचों में इस समय आम से लदे पेड़ों की तरफ भी अब कम ही लोग जाते हैं । बच्चो के आकर्षण का केंद्र यह बगीचा अब सन्नाटे में रहता है। बचपन अब मोबाइल और नेट में उलझ कर रह गया है । फ्री फायर और पब जी जैसे खेल उनके दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा हो चुका है। अपने बचपन मे हमलोगों की न जाने कितनी कहानियां इन्ही बगीचों और गांव के पोखरे के आसपास सिमटी हुई हैं आखिर इन बच्चों के शैशव काल मे किस प्रकार की कहानियां सृजित होंगी?? किसी कोने में बैठ कर मोबाइल पर अंगुलिया चलाते ये बच्चे नोबड़ा,प्रो,रिवाइव,बन्दे  और न जाने क्या क्या शब्दावली बोलते हैं ..आखिर ये किस दिशा में जा रहे हैं । शिक्षा की नई व्यवस्था ने अभिभावकों को भी बाध्य कर रखा है जिसमे इनके लिये मोबाइल जरूरी है । इसका परिणाम बच्चों के बेतरतीब विकास के रूप में सामने आ रहा है । कम से कम गांव में तो सहज और प्राकृतिक विकास की संभावना बची थी ...अब वो भी खतरे में है।

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