प्रदेश के आगामी चुनावों में योगी सरकार को झटका देने की तैयारी में जुटे अखिलेश यादव
2017 में कांग्रेस के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने का खामियाजा उसे करारी शिकस्त के साथ उठाना पड़ा था, जबकि 2019 में लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन को भी जनता ने नकार दिया था।
हालांकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट वोटों पर खास पकड़ बनाने वाली रालोद इस बार भी उनकी दोस्त बनी रहेगी। रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी पहले ही साफ कर चुके हैं कि उनकी पार्टी सपा का साथ नहीं छोड़ेगी और जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में रालोद सपा उम्मीदवारों के पक्ष में खड़ा रहेगा। सपा ने महान दल के साथ भी गठबंंधन किया है जिसका प्रभाव खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मौर्य, कुशवाहा और सैनी जाति के मतदाताओं पर है। महान दल ने भी विधानसभा चुनाव में सपा के समर्थन की घोषणा की है। सपा के सूत्रों ने बताया कि पार्टी नेतृत्व की चिंता गैर यादव अति पिछड़ा वर्ग और गैर जाटव अनुसूचित जाति वर्ग के मतदाताओं को लेकर है। जिसका रूझान सपा के प्रति फीका पड़ा है और पार्टी को इसका खामियाजा पिछले तीन चुनावों में उठाना पड़ा है। पार्टी परंपरागत यादव-मुस्लिम वोट बैंक पर खासी पकड़ बनाये रखने की पक्षधर है।
सपा उन छोटे दलों के साथ गठबंधन को तवज्जो देगी जो अति पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व करते है। उन्होंने बताया कि 11 फीसदी यादव और 19 प्रतिशत मुस्लिम वोट के साथ अति पिछड़ों और अनुसूचित जाति का साथ सपा को मिलता है तो पार्टी भाजपा को करारी टक्कर देने की स्थिति में होगी। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 119 अति पिछडों को दिये जिनमे राजभर,कुशवाहा और मौर्य शामिल थे वहीं 69 टिकट जाटव दलित समुदाय के लोगों को दिये गये और यही कारण रहा कि उसे चुनाव में बड़ी सफलता हासिल हुयी। सू्त्रों ने कहा कि अब यही रणनीति सपा अपनायेगी और छोटी जाति आधारित पार्टियों को अपने में मिलाकर भाजपा को कड़ी टक्कर देगी।
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