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    व्यक्ति निर्माण से ही राष्ट्र निर्माण संभव-- सुनील दत्त


    व्यक्ति निर्माण से ही राष्ट्र निर्माण संभव-- सुनील दत्त

       सदर,गोरखपुर

     अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर महायोगी गुरु गोरक्षनाथ योग संस्थान गोरखनाथ मंदिर गोरखपुर के द्वारा आयोजित ऑनलाइन साप्ताहिक योग शिविर एवं शैक्षिक कार्यशाला के प्रथम दिवस में 'राष्ट्र निर्माण में योग की उपादेयता' विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में योग वेलनेस सेंटर राजकीय होम्योपैथिक चिकित्सालय सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश के योग प्रशिक्षक श्री सुनील दत्त तिवारी ने कहा कि किसी भी राष्ट्र के निर्माण में व्यक्ति का निर्माण प्रमुख होता है। कोई भी व्यक्ति चाहे वह किसान, जवान, अध्यापक, व्यापारी, या किसी भी पेशा में हो वह अस्वस्थ होकर कभी भी अपना, अपने परिवार का या अपने समाज का कल्याण नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि मनुष्य का स्वास्थ्य चार प्रकार का होता है शारीरिक मानसिक आध्यात्मिक व सामाजिक। इन चारों प्रकार के स्वास्थ्य को यदि ठीक रखना है तो हमें योग का मार्ग अपनाना होगा।  डॉ॰ तिवारी ने महर्षि पतंजलि के "अथ योगानुशासनम्" इस सूत्र का उल्लेख करते हुए कहा कि योग मार्ग में अनुशासन का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है और वह किसी अन्य के द्वारा नहीं अपितु स्वयं के अनुशासन से ही संभव है। 
              महर्षि पतंजलि के अष्टांग योग का विवेचन करते हुए उन्होंने कहा कि केवल आसन व प्राणायाम ही योग नहीं है, अपितु यम-नियम इत्यादि अन्य अंगों को भी हमें समझकर अपने जीवन में लाना होगा। यम तथा नियम के द्वारा व्यक्ति के चरित्र का उत्थान जब तक नहीं होगा तब तक वह व्यक्ति योग मार्ग का सम्पूर्ण लाभ नहीं ले सकेगा, ना ही व स्वस्थ होकर राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान कर सकता है। 
               उन्होंने कहा कि हमारे समाज में एक भ्रांति है कि योग व आध्यात्मिक चिंतन करना वृद्ध जन का कार्य है न कि किशोरों और युवाओं का कार्य है। यहीं कारण है कि हमारे देश का युवा नकारात्मकता व अनैतिकता का शिकार हो रहा है, साथ हीं अपने शरीर को रोगों का घर बनाकर नाना प्रकार के दुखों को सहता है। आज आवश्यकता है कि योग व चरित्र-निर्माण के विषय में छोटी उम्र से हीं बच्चों को संस्कारित किया जाय तथा विद्यालय पाठ्यक्रम में भी छोटी कक्षाओं से ही योग का अध्यापन हो। उन्होंने उदाहरण से स्पष्ट करते हुए कहा कि जिस प्रकार से किसी यंत्र या मशीन को प्रयोग करने से पूर्व हम उसके उपयोग के नियमों को पढ़ते हैं, उसी प्रकार से अपने जीवन रूपी मशीन को चलाने के लिए बाल्यकाल में ही शास्त्रीय नियमों व यौगिक क्रियाओं को समझना आवश्यक होता है।
                   उन्होंने योग की व्यापकता पर प्रकाश डालते हुए श्रीमद्भगवद्गीता के "योगः कर्मसु कौशलम्" इस पंक्ति का उल्लेख किया और कहा कि मनुष्य जीवन के सभी विहित कर्मों में कुशलता प्राप्त करना ही योग है। व्यक्ति के जीवन में किसी भी वस्तु का उपयोग हो, दुरुपयोग हो, संयोग हो,वियोग हो, सहयोग हो, असहयोग हो या प्रयोग हो, सर्वत्र कुशलता रूपी योग की आवश्यकता है। अतः हम सभी को अष्टांग योग के माध्यम से जीवन के सभी पक्षों को सुखमय बनाने के लिए प्रयत्न करना चाहिए तभी व्यक्ति तथा राष्ट्र का निर्माण भी सम्भव होगा।
                कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् के अध्यक्ष व पूर्व कुलपति प्रो. उदय प्रताप सिंह ने कहा कि किसी भी व्यक्ति के लिए मजबूत मन व स्थिर दिमाग बहुत आवश्यक है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल होने में मजबूत इच्छाशक्ति व स्थिर चित्त प्रमुख साधन हैं, जो कि योग से ही प्राप्त होते हैं। 
             उन्होंने पं.दीनदयाल उपाध्याय के कथन का उल्लेख करते हुए कहा कि मनुष्य शरीर, मन, बुद्धि, और आत्मा का एकीकृत स्वरूप होता है। यह चारों अंग यदि स्वस्थ व सुदृढ़ होते हैं तभी मनुष्य पूर्णता को प्राप्त कर सकता है, जिसके लिए योग सर्वोत्कृष्ट माध्यम है।
               कार्यक्रम का संचालन व अतिथियों का आभार ज्ञापन श्री गोरक्षनाथ संस्कृत विद्यापीठ स्नातकोत्तर महाविद्यालय गोरखनाथ मन्दिर गोरखपुर के प्राचार्य व कार्यशाला के प्रभारी डॉ॰ अरविंद कुमार चतुर्वेदी ने किया।

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