ईद ए गदीर के अवसर पर महफिल ए मिलाद का हुआ आयोजन
गोरखपर। ईद ए ग़दीर के मौके पर महफ़िल ए मिलाद का आयोजन मेंहदी लान में किया गया। जिसमें तमाम वक्ताओं एवं शायरों ने अपने कलाम पेश किया। मरहूम मोहम्मद मेंहदी एडवोकेट के इसाले सवाब में आयोजित मिलाद की सदारत इमाम जमात जुमा शिया जामा मस्जिद गोरखपुर मौलाना सेराज हुसैन ने किया जबकि निज़ामत मौलाना शबीहुल हसन आज़मी ने किया।
इस अवसर पर ईद ए ग़दीर के बारे बताते हुए मौलाना वसी हसन खान ने कहा कि पैग़ंबरे इस्लाम हजरत मोहम्मद साहब अपनी जिंदगी का आखरी हज करके मक्का मुकर्रमा से मदीना मुनव्वरा लौट रहे थे। 18 जिलहिज सन 10 हिजरी (15 या 21 मार्च 632 ईसवी ) की तारीख थी अचानक हुकमे खुदा से गदीर ए खुम नाम के स्थान पर वो रुक गए। सभी हज से लौटने वालों को रोक लिया। जो आगे बढ़ गए थे उन्हें वापस बुलाया जो पीछे रह गए थे उनका इंतजार किया । फिर ऊँचाई पर खड़े होकर सबको सम्बोधित किया।
यहाँ पैगम्बर ने इस्लाम की विशेषताओं का जिक्र किया जियो और जीने दो के सिद्धांत की जानकारी दी। उन्होंने बताया की अल्लाह द्वारा पैदा की गई हर मखलूक के साथ कैसे इंसाफ किया जाए । पुनः बताया अपने संसार से विदा होने का समय और मुसलमानों व समस्त इंसानों के मार्गदर्शन के लिए दो गिरा बहा चीजें को छोड़कर जाने का जिक्र किया। एक कुरान दूसरे अपने अहलेबैत यानी खास घर वाले। पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने कहा की वो अर्थात पैगंबर हर मुसलमान के नफ़्स (आत्मा व शरीर) पर ज्यादा अख्तियार रखते हैं । यहीं पैगंबर साहब ने अपने पास खड़े हुए अपने चचा जात भाई और दामाद हजरत अली को अपना जानशीन (उत्तराधिकारी) घोषित किया और लोगों से कहा कि जिसका मैं मौला यानी मार्गदर्शक, हूं यह अली भी उसके मौला है। मौलाना ने बताया की पैगम्बर को यह आदेश अल्लाह से मिला था की लोगों तक हजरत अली और दीगर अहले बैत की जानीशीनी पहुंचाई जाए जिसका ज़िक्र कुरान में इसका जिक्र है।
शिया मुसलमान इस दिन को अन्य दो ईदो की भांति ईद के रूप में मनाते हैं।
इस मौके पर विशेष रूप से बुलाये गए नायाब हल्लौरी, इफ्हाम उतरौलवी, मेंहदी मीरपुरी ने अपने कलाम पेश किया।
आयोजन में मोहम्मद ज़हीर मेंहदी, अली ज़हीर मेंहदी और रफत हुसैन का विशेष योगदान रहा।
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