सीएम योगी के गुरु महंत अवेद्यनाथ के चहेते थे कल्याण, गोरक्षपीठ से अंत तक रहा गहरा नाता
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का 89 साल की उम्र में शनिवार को लखनऊ के पीजीआई में निधन हो गया। नाथपंथ के विश्व प्रसिद्ध गोरक्षपीठ से उनका गहरा आत्मिक जुड़ाव था। वह राममंदिर आंदोलन के प्रणेता और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ के कृपा पात्र थे। बड़े महराज का उनसे विशेष स्नेह जगजाहिर था। शनिवार को उनके निधन की खबर पहुंचते ही गोरक्षपीठ से जुड़े लोगों में शोक की लहर दौड़ गई। सीएम योगी आदित्यनाथ तो गोरखपुर का दौरा पहले ही रद्द कर उन्हें देखने पीजीआई पहुंच गए थे, यहां मंदिर प्रबंधन से जुड़े लोगों और पुजारियों ने उनके निधन पर गहरा दु:ख जताया है।
कल्याण सिंह, ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ की ही तरह श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण को अपने जीवन का लक्ष्य बनाए हुए थे। फिलहाल आज यह मिशन गोरक्षपीठाधीश्वर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की देख-रेख में पूरा होने की ओर बढ़ चला है। कल्याण सिंह से गोरक्षपीठ के रिश्तों के बारे में महायोगी गुरु गोरखनाथ विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ.प्रदीप राव बताते हैं कि श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन कल्याण सिंह को गोरक्षपीठ के करीब लाया था। इस मुद्दे पर कल्याण सिंह की सोच स्पष्ट थी और इसी वजह से उन्हें तत्कालीन पीठाधीश्वर ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ का पूरा आशीर्वाद और स्नेह मिला। मंदिर आंदोलन की रूपरेखा पर तत्कालीन पीठाधीश्वर अवेद्यनाथ के साथ उनकी गहन मंत्रणा चलती रहती थी।
मंदिर के सचिव द्वारिका तिवारी बताते हैं कि गोरक्षपीठ के बुलावे पर कल्याण सिंह, महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के संस्थापक सप्ताह समारोह के पुरस्कार वितरण कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए थे। 10 दिसंबर 2013 को एमपी इंटर कालेज के मैदान पर आयोजित इस कार्यक्रम में कल्याण सिंह ने परिषद की तरफ से दी जा रही राष्ट्रवादी विचारधारा की शिक्षा की खूब सराहना की थी। तब उन्होंने कहा था कि महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद का काम देश के भविष्य को लेकर एक नई आशा का संचार कर रहा है। दूसरों को भी इससे प्रेरणा लेनी चाहिए। गोरखनाथ मंदिर में वह आखिरी बार 22 जनवरी 2014 को विजय शंखनाथ रैली में आए थे। जब उन्हें पता चला कि बड़े महराज (महंत अवेद्यनाथ) की तबीयत खराब है तो वह तुरंत उन्हें देखने गोरखनाथ मंदिर चले आए। तबीयत खराब होने के बाद भी बड़े महराज ने उनका मुस्कुराते हुए स्वागत किया। इसके बाद कल्याण सिंह कभी गोरखनाथ मंदिर तो नहीं आ सके लेकिन गोरक्षपीठ से उनका नाता अंत तक बना रहा।
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