Header Ads

ad728
  • Breaking News

    पहली मुहर्रम आज, नये इस्लामी साल का आगाज़-मस्जिदों व घरों में 'जिक्रे शहीद-ए-कर्बला' महफिल शुरु

    इस्लाम ज़िन्दा होता है हर कर्बला के बाद 

    -पहली मुहर्रम आज, नये इस्लामी साल का आगाज़

    -मस्जिदों व घरों में 'जिक्रे शहीद-ए-कर्बला' महफिल शुरु
    गोरखपुर। चांद के दीदार के साथ माह-ए-मुहर्रम का आगाज़ हो गया है। हज़रत सैयदना इमाम हुसैन रदियल्लाहु अन्हु व उनके साथियों द्वारा दी गई क़ुर्बानियों की याद ताजा हो गई है। मुहर्रम का चांद होते ही रात की नमाज़ के बाद मुस्लिम बाहुल्य मोहल्लों में चहल पहल बढ़ गई है। लोग सोशल मीडिया पर नये इस्लामी साल की मुबारकबाद भी पेश कर रहे हैं।

    मुफ़्ती अख्तर हुसैन मन्नानी (मुफ़्ती-ए-शहर) ने बताया कि माह-ए-मुहर्रम के चांद के साथ नया इस्लामी साल शुरु चुका है। इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक 1443 हिजरी लग गई है। दसवीं मुहर्रम यानी यौमे आशूरा 20 अगस्त को है। उन्होंने सभी के लिए दुआ की है कि नया साल सभी के ज़िन्दगी में खुशहाली लाए व कोरोना महामारी से निजात मिले। मुफ़्ती मो. अज़हर शम्सी (नायब काजी) ने मुसलमानों से अपील की है कि हज़रत सैयदना इमाम हुसैन व कर्बला के शहीदों की याद में क़ुरआन ख़्वानी, फातिहा ख़्वानी व नेक काम करें। खूब इबादत करें। नौवीं व दसवीं मुहर्रम को रोजा रखें। सभी शासन की गाइडलाइन का मुस्तैदी से पालन करें।

    वहीं मस्जिदों व घरों में 'जिक्रे शहीद-ए-कर्बला' की महफिल में हज़रत सैयदना इमाम हुसैन व उनके साथियों की अज़ीम क़ुर्बानियों का बयान शुरु चुका है।

    नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर में दस दिवसीय महफिल के पहले दिन मगंलवार को मौलाना मो. असलम रज़वी ने कहा कि हज़रत सैयदना इमाम हुसैन की क़ुर्बानी ने दीन-ए-इस्लाम को ज़िन्दा कर दिया, इसीलिए मौलाना मोहम्मद अली जौहर कहते हैं 'कत्ले हुसैन असल में मर्गे यजीद है, इस्लाम ज़िन्दा होता है हर कर्बला के बाद'। हज़रत इमाम हुसैन इबादत व रियाजत में बडे़ आबिद, जाहिद व तहज्जुद गुजार थे। इमाम हुसैन बहुत विद्वान व बहादुर थे।

    गौसिया मस्जिद छोटे काजीपुर में 'जिक्रे शहीद-ए-कर्बला' महफिल के पहले दिन मौलाना मोहम्मद अहमद निज़ामी ने कहा कि हज़रत सैयदना इमाम हुसैन सन् चार हिज़री को मदीना में पैदा हुए। आपकी मां का नाम हज़रत सैयदा फातिमा ज़हरा व पिता का नाम अमीरुल मोमिनीन हज़रत सैयदना अली है। जब पैगंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने हज़रत हुसैन के पैदा होने की ख़बर सुनी तो फौरन तशरीफ लाए। आपने दायें कान में अज़ान दी और बायें कान में इकामत पढ़कर इमाम हुसैन के मुहं में अपना लुआबे दहन डाला और दुआएं दी, फिर आपका नाम हुसैन रखा। सातवें दिन अकीका करके बच्चे के बालों के हमवजन चांदी खैरात करने का हुक्म दिया। आपके अकीके में दो मेढ़े जिब्ह किए गए।

    इमामबाड़ा पुराना गोरखपुर गोरखनाथ में ग्यारह दिवसीय महफिल के पहले दिन मौलाना जहांगीर अहमद अज़ीज़ी ने कहा कि जब हज़रत सैयदना इमाम हुसैन की उम्र सात साल की थी तब पैगंबर-ए-आज़म ने पर्दा (इंतकाल) फरमाया। जब अमीरुल मोमिनीन हज़रत सैयदना उमर की खिलाफत शुरु हुई तो आप सवा दस बरस के थे। अहदे अमीरुल मोमिनीन हज़रत सैयदना उस्मान ग़नी में पूरे जवान हो चुके थे। सन् तीस हिज़री में तबरिस्तान के जेहाद में शरीक हुए। अपने पिता अमीरुल मोमिनीन हज़रत सैयदना अली के अहद (शासन) में जंग-ए-जुमल व जंग-ए-सिफ़्फीन में शरीक हुए।

    बेलाल मस्जिद इमामबाड़ा अलहदादपुर में कारी शराफत हुसैन क़ादरी ने कहा कि इमाम हुसैन निहायत हसीन व खूबसूरत थे। पूरा-पूरा दिन और सारी-सारी रात नमाज़ें पढ़ने और तिलावत-ए-क़ुरआन में गुजार दिया करते थे। इमाम हुसैन का जिक्र-ए-खुदावंदी का शौक कर्बला की तपती हुई जमीन पर तीन दिन के भूखे-प्यासे रह कर भी न छूटा। शहादत की हालत में भी दो रकात नमाज़ अदा करके बारगाहे खुदावंदी में अपना आखिरी नज़राना पेश फरमा दिया। 

    इसी तरह हज़रत मुकीम शाह जामा मस्जिद बुलाकीपुर, मेवातीपुर इमामबाड़ा, सुन्नी बहादुरिया जामा मस्जिद रहमतनगर, दारुल उलूम अहले सुन्नत मजहरुल उलूम घोसीपुरवा, अक्सा मस्जिद शाहिदाबाद हुमायूंपुर उत्तरी, ज़ोहरा मस्जिद मौलवी चक बड़गो, हुसैनी जामा मस्जिद बड़गो, शाही मस्जिद बसंतपुर सराय आदि में भी 'जिक्रे शहीद-ए-कर्बला' महफिल हुई। महफिल का सिलसिला दसवीं मुहर्रम तक जारी रहेगा।
    ------------------

    कोई टिप्पणी नहीं

    thanks for comment...

    Post Top Ad

    ad728

    Post Bottom Ad

    ad728
    ad728