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    इमाम हुसैन ने दुनिया को दिया सब्र व इंसानियत का पैग़ाम



    गोरखपुर। पहली मुहर्रम से शुरु हुआ जिक्रे शहीद-ए-कर्बला की महफिलों का दौर तीसरी मुहर्रम शुक्रवार को भी जारी रहा। शहीद-ए-कर्बला का जिक्र सुन सबकी आंखें नम हुईं। शहर की एक दर्जन से अधिक मस्जिदों व घरों में कर्बला की दास्तां सुनी और सुनाई जा रही है। वहीं जुमा की तकरीर में भी उलेमा-ए-किराम ने कर्बला का वाकया बयान किया।

    गौसिया जामा मस्जिद छोटे काजीपुर में मौलाना मोहम्मद अहमद निज़ामी ने कहा कि कर्बला की जंग दुनिया की पहली आतंकी कार्रवाई थी। जिसमें शहीद हुए लोगों में 6 माह के बच्चे से लेकर 78 साल के बुर्जुग शामिल थे। इमाम हुसैन शहीद तो हो गये लेकिन दुनिया को सब्र व इंसानियत का पैग़ाम दे गये और यह बता गये की दीन-ए-इस्लाम सब्र व शहादत से फैला। इसके लिए क़ुर्बानियां दी गईं। 

    जामा मस्जिद रसूलपुर में मुफ़्ती मो. अज़हर शम्सी ने कहा कि कर्बला के शहीदों ने दुनिया को सब्र व इंसानियत का एक अज़ीम पैग़ाम दिया है। जिसे रहती दुनिया तक नहीं भुलाया जा सकता।मुसलमानों पर हज़रत अली, हज़रत फातिमा, हज़रत हसन व हजरत हुसैन से मुहब्बत रखना वाजिब है और उनका जिक्र करना इबादत है। 

    नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर में मौलाना मो. असलम रज़वी ने कहा कि हम हज़रत सैयदना इमाम हुसैन की क़ुर्बानी को नहीं भूल सकते। हमारा अकीदा है कि मुहब्बत-ए-हुसैन के सदके अल्लाह मुसलमानों को बख्शेगा। पैगंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने अपने नवासे हज़रत सैयदना इमाम हुसैन की पैदाइश के साथ ही आपके शहादत की ख़बर दे दी थी। हज़रत अली, हज़रत फातिमा ज़हरा, हज़रत हसन और खुद इमाम हुसैन भी जानते थे कि एक दिन कर्बला के मकाम पर शहीद किया जाऊंगा, लेकिन किसी ने भी और खुद इमाम हुसैन ने भी कभी किसी किस्म का शिकवा जुबान पर नहीं लाया, बल्कि सब्र के साथ अपनी शहादत की ख़बर सुनते रहे। 

    पुराना गोरखपुर इमामबाड़ा गोरखनाथ में मौलाना जहांगीर अहमद अज़ीज़ी ने कहा कि हदीस में है कि पैगंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि मुझे हज़रत जिब्राईल ने ख़बर दी कि इमाम हुसैन को तफ़ (कर्बला) में शहीद किया जाएगा। हज़रत जिब्राईल मेरे पास वहां की मिट्टी लाए और मुझसे बताया कि यह हुसैन के शहादतगाह की मिट्टी है। तफ करीबे कूफा उस स्थान का नाम है जिसको कर्बला कहते हैं। हदीस में आया है कि वह मिट्टी उम्मुल मोमिनीन हज़रत उम्मे सलमा के पास मौजूद रही। वह फरमाती हैं कि मैंने उस सुर्ख मिट्टी को एक शीशी में रख दिया जो हज़रत इमाम हुसैन की शहादत के दिन खून हो गई।

    इसी तरह अक्सा मस्जिद शाहिदाबाद हुमायूंपुर उत्तरी, मुकीम शाह जामा मस्जिद बुलाकीपुर, मक्का मस्जिद इमामबाड़ा के निकट, बेलाल मस्जिद इमामबाड़ा अलहदादपुर, दारुल उलूम अहले सुन्नत मजहरुल उलूम घोसीपुरवा, ज़ोहरा मस्जिद मौलवी चक बड़गो, हुसैनी जामा मस्जिद बड़गो, मकतब इस्लामियात चिंगी शहीद तुर्कमानपुर, सुन्नी बहादुरिया जामा मस्जिद रहमतनगर आदि में भी 'जिक्रे शोहदा-ए-कर्बला' महफिल हुई।
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