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    चौरीचौरा विद्रोह के शहीद अब्दुल्ला की पौत्री सबरतुन निशा का निधन




    चौरीचौरा जन विद्रोह के अमर नायक शहीद अब्दुल्ला की इकलौती पौत्री सबरतुन निशा का शुक्रवार को तड़के सुबह निधन हो गया। उनके पैतृक गांव राजधानी के कब्रिस्तान में नमाजे जुमा के बाद उन्हें सुपुर्दे खाक किया गया।

    चौरीचौरा जन आंदोलन के नायक शहीद अब्दुल्ला के एक मात्र पुत्र रसूल थे। जब अब्दुल्ला को 3 फरवरी 1923 को बाराबंकी जेल में फांसी की सजा दी गयी तब उनके पुत्र रसूल की उम्र महज 5 साल थी। पिता के शहीद होने के बाद मुफलिसी में जवान हुए रसूल की एक मात्र संतान सबरतुन ही थी। सबरतुन के पिता रसूल को महज 5 माह ही सरकारी पेंशन मिली कि उनकी भी मौत हो गयी।
    जीवनभर मुफलिसी में जीने वाली सबरतुन भी शुक्रवार को इस दुनियां से चली गईं। अपने जीवन काल मे सबरतुन को सरकार से हमेशा उम्मीद बनी रही कि सरकार उनकी मुफलिसी को देखते हुए पेंशन देगी। लेकिन तमाम सरकारें आईं और गयीं लेकिन किसी भी सरकार ने सबरतुन की मुफलिसी का संज्ञान नहीं लिया।
    उनके निधन पर शिक्षक योगेंद्र जिज्ञासु शोक प्रकट करते हुए कहते हैं कि सबरतुन निशा एक श्रमशील महिला थीं। जीवन काल मे गांव-गांव घूमकर चूड़ी बेचकर अपना जीवन यापन करने वाली सबरतुन को सरकारों की उपेक्षा का भारी मलाल था। उनके निधन पर रामचन्द्र यादव इंटर कालेज राजधानी में प्रधानाचार्य राम उग्रह यादव समेत सभी शिक्षकों ने दो मिनट का मौन रख कर दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना किया।
    सबरतुन निशा की मौत पर शोक व्यक्त करते हुए सपा नेता कालीशंकर ने कहा कि सरकारी सुविधाओं के इन्तेजार में सबरतुन ने दम तोड़ दिया। सरकार को अब भी आंख खोलकर देखना चाहिए कि शहीदों के परिजन किस मुफलिसी में अपना जीवन काट रहे हैं। सरकार शहीद परिजनों को सरकारी सहायता मुहैया कराए कि उनकी बाकी का जीवन बेहतर कट सके। सबरतुन निशा को सुपुर्दे खाक करते समय काफी लोग उपस्थित रहे।

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