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    मखदूम अशरफ़, हज़रत ताजुद्दीन व हज़रत शाह वलीउल्लाह की याद में सजी महफिल

    मखदूम अशरफ़, हज़रत ताजुद्दीन व हज़रत शाह वलीउल्लाह की याद में सजी महफिल

    उर्स-ए-पाक पर कुल शरीफ की रस्म अदा

    गोरखपुर। शाही जामा मस्जिद तकिया कवलदह व चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर में हज़रत मखदूम सैयद अशरफ़ जहांगीर सिमनानी अलैहिर्रहमां, हज़रत सैयद ताजुद्दीन मोहम्मद अलैहिर्रहमां व हज़रत शाह कुतबुद्दीन अहमद वलीउल्लाह मुहद्दिस देहलवी अलैहिर्रहमां का उर्स-ए-पाक अकीदत व एहतराम के साथ मनाया गया। महफिल सजी। क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत हुई। नात व मनकबत पेश की गई। कुल शरीफ की रस्म अदा कर फातिहा ख़्वानी हुई।

    शाही जामा मस्जिद में मुफ़्ती मो. अज़हर शम्सी (नायब काजी) ने कहा कि हज़रत मखदूम अशरफ़ की पैदाइश 708 हिजरी में सिमनान (ईरान) में हुई। आपके वालिद का नाम सुल्तान सैयद इब्राहीम नूर बख्शी व वालिदा का नाम बीबी खदीजा बेगम था। आपके वालिद सिमनान के सुल्तान थे। आप सात साल की उम्र में हाफ़िज़-ए-क़ुरआन हुए। आप किरात के माहिर थे। आपने बड़े-बड़े उलेमा-ए-किराम से तालीम हासिल की। पंद्रह साल की उम्र में आपके वालिद के इंतकाल के बाद आप सिमनान के सुल्तान बनें। आप बहुत आदिल सुल्तान थे। आपने अपनी वालिदा से इजाज़त लेकर हिन्दुस्तान की तरफ अपना सफर शुरु किया।आप हज़रत शैख़ अलाउल हक पंडवी अलैहिर्रहमां के मुरीद व खलीफा हैं। आपने अपने शैख़ से तरीक़त, हक़ीक़त व मारफ़त का इल्म हासिल किया। आपने बहुत सारी किताबें लिखीं। आपसे चिश्ती अशरफी सिलसिला जारी है।

    मस्जिद के इमाम हाफ़िज़ आफताब ने कहा कि हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिस देहलवी की पैदाइश 4 शव्वाल 1114 हिजरी में मुजफ्फरनगर (उप्र) में हुई। आपके वालिद का नाम हज़रत शाह अब्दुर्रहीम मुहद्दिस देहलवी अलैहिर्रहमां है। आपके वालिद दिल्ली के मशहूर आलिम और फक़ीह थे। आपने पांच साल की उम्र में तालीम हासिल करनी शुरु की। सात साल की उम्र में आपने क़ुरआन-ए-पाक की तालीम पूरी की। फिर हाफ़िज़-ए-क़ुरआन हुए। आठ साल की उम्र में फारसी और अरबी की तालीम पूरी की।  दस साल की उम्र में इल्मे नहव और इल्मे सर्फ की तालीम पूरी की। पंद्रह साल की उम्र में फलसफा और कलाम की तालीम पूरी की। आपने वालिद से आपने हदीस, फ़िक़्ह, तकरीर, तसव्वुफ, इल्मे तिब, मंतिक (इल्मे रियाज़ी) आदि की तालीम हासिल की। 17 साल की उम्र में अपने वालिद से खिलाफत हासिल की। मदरसा रहीमिया में शिक्षक भी रहे। मक्का और मदीना शरीफ में हज व तालीम हासिल करने के लिए गए। मक्का शरीफ से हिन्दुस्तान वापस आने के बाद दिल्ली में तलबा को और लोगों को दीन-ए-इस्लाम की तालीम देनी शुरु की। आपने तालीम और तसनीफ (तहरीर) के जरिए अहले सुन्नत वल जमात की अज़ीम खिदमत की। आप लोगों को शरीअत पर पाबंद रहने, क़ुरआन-हदीस पर अमल करने, सुन्नतों को अपनाने और बुरी बिदअतों से बचने की तालीम देते रहे। आपने हिन्दुस्तान में सबसे पहले क़ुरआन-ए-पाक का फारसी तर्जुमा किया। आपने अरबी और फारसी में तकरीबन 51 से ज्यादा किताबें लिखीं। आप हज़रत शाह अब्दुर्रहीम मुहद्दिस देहलवी अलैहिर्रहमां के मुरीद व खलीफा हैं। आपका इंतकाल 29 मुहर्रम 1176 हिजरी में हुआ। आपका मजार दिल्ली में है।

    चिश्तिया मस्जिद में हाफ़िज़ महमूद रज़ा क़ादरी ने कहा कि अल्लाह के वलियों ने अपना पूरा जीवन अल्लाह, रसूल और इंसानियत की ख़िदमत में गुजार कर दीन व दुनिया दोनों में अपना नाम रोशन कर लिया। उन्हीं वलियों में एक महान वली का नाम हज़रत मखदूम अशरफ़ जहांगीर सिमनानी है। कुछ समय हुकूमत करने के बाद आप सिमनान छोड़कर हिन्दुस्तान आ गए और मोहब्बत, भाईचारा व एक दूसरे की मदद की तालीम दी। 28 मुहर्रम 808 हिजरी में आपने दुनिया को अलविदा कहा। उप्र के किछौछा शरीफ, अम्बेडकर नगर में आपका मजार है। 

    संचालन करते हुए कारी मो. अनस रज़वी ने कहा कि हज़रत सैयद ताजुद्दीन बहुत बड़े अल्लाह के वली गुजरे हैं। जिनकी पैदाइश 5 रजब 1277 हिजरी में नागपुर के करीब हुई। आपके वालिद का नाम सैयद मौलाना बदरुद्दीन और वालिदा का नाम सैयदा मरियम बीबी है। आप हुसैनी सादात हैं। आपने मदरसे से तालीम हासिल की। आप हमेशा याद-ए-इलाही में डूबे रहते थे। आपकी करामातें बहुत मशहूर हैं। आपका इंतकाल 26 मुहर्रम 1344 हिजरी में हुआ। आपका मजार ताजबाग, नागपुर (महाराष्ट्रा) में है।

    अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान, खुशहाली व तरक्की की दुआ मांगी गई। अकीदतमंदों में शीरीनी बांटी गई। उर्स में मौलाना इसहाक, अमान अत्तारी, अयान, हाफ़िज़ आरिफ, जलालुद्दीन, अरमान आदि ने शिरकत की।

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