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    बुलाकीपुर मुहल्ले की आन, बान और शान हजरत शाह सैयद मोहम्मद मुकीम, 230 साल पुरानी है दरगाह

    गोरखपुर। मशायख-ए-गोरखपुर के लेखक सूफी वहीदुल हसन पेज नं. 35, 36 व 37 पर लिखते हैं कि 'मुबूबुत तवारीख' के लेखक मियां साहब हजरत सैयद अहमद अली शाह ने हजरत शाह सैयद मोहम्मद मुकीम अलैहिर्रहमां के बारे में लिखा है कि यहां थे रईसों में कामिल फकीर, मोहम्मद मुकीम एक रोशन ज़मीर आप रईस भी थे, कामिल दरवेश भी और साथ ही साथ साहिबे कशफो करामत भी जो रोशन ज़मीर की अलामत (निशानी) है। आरिफबिल्लाह शाह सैयद मो. मकीम शहर जौनपुर में 3 जमादी अव्वल 1128 हिजरी में पैदा हुए। आपके वालिद माजिद इंतेहाई बुजुर्ग और सालेह मर्द थे जौनपुर से तशरीफ लायें और यहीं हमेशा के लिए बस गए। आपका नाम हजरत शेख मोहम्मद अशूरी था। यह ऐसे बुजुर्ग थे कि गोरखपुर और अहले गोरखपुर जिस कदर उन पर फख्र करें कम है। खुदा ने आपको जाहिरी हुस्न व जमाल के साथ तनवीरे बातिन से भी मालामाल किया था। रईसी में फकीरी अता की। आप पैदाइशी वली थे। बचपन से ही फकीरों और दरवेशों की सोहबत पसंद थीं। चूंकि कम उम्री से ही रुझान रुहानियत के हुसूल की जानिब था इसलिए अकसर व बेसतर मजार मख्दूम शाह सरफुद्दीन नूरुल्लाह मरकदहू पर हाजिरी दिया करते थे। कसबे बातिन में इजाफा शुरू हुआ। ज्यादा कयाम फरमाने लगे और कुछ ही मुद्दत के बाद आपको इस दर से वह भी हासिल हो गया जो पोशिदा तौर अरवाहे मुकद्दसा साहिबे दिल और औलिया अल्लाह के मजारात से खुशनसीबों को हासिल हुआ करता है। हिम्मत बुलंद रखते थे। वहां के फुयूज व बरकात हासिल करने के बाद इरफाने इलाही की तरफ कदम बढ़ाया मारफत हक बगैर रहबरे कामिल के हर कसो नाकिस को कहां नसीब? आपकी किस्मत मे यह भी था। आपके जमाने में हजरत शाह अब्दुर्रहमान इलाहाबादी अलैहिर्रहमां के शोहरत और आपकी बुजुर्गी का चर्चा आस-पास फैला हुआ था। बगर्ज मुलाकात हाजिरे खिदमत हुए और हमेशा के लिए आपके होकर रह गये। बाकायदा हजरत अब्दुर्रहमान के दस्ते हक पर बैअत हुए। सोहबत में रहे और आपकी जूतियां सीधी की। जो बंदाए यानिदा के मुताबिक मनाजिले सुलूक दर सिलसिलाए चिश्तिया, बहिश्तिया, कादिरिया, आलिया, नक्शबंदिया, तय्यबा, सुहरावर्दिया में तय की और रोशन ज़मीर हो गए। पीरो मुर्शीद आपसे बेहद खुश रहते थे। आखिरकार खुशी की घड़ी आयी। शब चहारूम माह सफर 1171 हिजरी में खिलाफतनामा दर सिलसिला-ए-अरबा और मदारिया में आपको अता फरमाया गया। इस रात आपको तवज्जो खुशूसी से नवाजा गया और आप वहां से उस काम के लिए गोरखपुर तशरीफ ले आएं जिसके लिए परवरदिगार ने रोजे अज़ल से आपका इंतखाब किया था। गोरखपुर में मसनद रुसदो हिदायत पर जलवा अफरोज हुए। हजारों अफराद की इस्लाहे बातिन की। अपनी मजलिस और हल्के में लोगों को अपनी आकबत संवारने की तालीम को आम किया और खास-खास लोगों को इरफान का जायका भी चखाया। फैज का एक दरिया मौजें मारने लगा। हिदायत की की बारिश होने लगी जो आवाम और गुर्बा में तकसीम होने लगी। तवज्जो में काफी असर था। बेशुमार मुरीद थे। जिंदगी आपकी खिदमते खल्क और अल्लाह की बंदगी के लिए वक्फ हो गयीं। दस रमजानुल मुबारक 1210 हिजरी मुताबिक 22 मार्च 1794 ई. को आपने इस दुनिया को अलविदा कहा। आपकी दरगाह मुहल्ला बुलाकीपुर में है। हर साल उर्स होता है और अब वहां एक मेले की शक्ल बन गयी है। मजमा कसीर होता है। मजार मर्जे खलाइक बना हुआ है। आपके यहां हर साल 12 रबीउल अव्वल को एक बड़े हुजूम को जियारत मूए मुबारक फख़रे दो आलम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम करायी जाती है।

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