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    पैग़ंबर-ए-आज़म के बताए हुए तरीके पर चलें, नमाज़ की पाबंदी करें

    पैग़ंबर-ए-आज़म के बताए हुए तरीके पर चलें, नमाज़ की पाबंदी करें 

    -शाहिदाबाद में जलसा-ए-ग़ौसुलवरा

    गोरखपुर। शाहिदाबाद में जलसा-ए-ग़ौसुलवरा हुआ। क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत से आगाज़ हुआ। नात व मनकबत पेश की गई। संचालन हाफ़िज़ अज़ीम अहमद नूरी ने किया।

    मुख्य अतिथि ग़ौसिया जामा मस्जिद छोटे क़ाज़ीपुर के इमाम मौलाना मोहम्मद अहमद निज़ामी ने कहा कि मुसलमानों की आपसी भाईचारगी की एक मिसाल जमात की नमाज़ में मिलती है। मुसलमानों के दरम्यान बेनज़ीर भाईचारगी का ख़ूबसूरत मंज़र हज के दिनों में नज़र आता है। जब दुनिया के मुख़्तलिफ़ रंग व नस्ल के लोग हज अदा करने के लिए जमा होते हैं। किसी मुसलमान को किसी दूसरे मुसलमान के बराबर में बैठने, उठने, खाने-पीने में कोई कराहत महसूस नहीं होती, बल्कि हर शख़्स अपनी जान व माल से दूसरे भाई की खिदमत करने में अपनी इज़्ज़त व कामयाबी समझता है। आपसी इख़्तिलाफ़ के बावजूद तमाम क़ौमों से ज़्यादा भाईचारगी आज भी यक़ीनन हम मुसलमानों में ही मिलती है, क्योंकि मुसलमान एक दूसरे की ख़िदमत करने में दोनों जहाँ की कामयाबी पर मुकम्मल यक़ीन रखता है। पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सीरत को अगर इंसान अपनी ज़िन्दगी में नमूना-ए-अमल बना ले तो दुनिया में भी इज़्ज़त मिलेगी और आख़िरत भी संवर जाएगी। पैग़ंबर-ए-आज़म ने हमेशा दूसरों की मदद की, ज़ुल्मत का खात्मा किया और पाबंदी से इबादत की, तो इसलिए जरूरी है कि हम अपने प्यारे पैग़ंबर-ए-आज़म के बताए हुए तरीके पर चलें। नमाज़ की पाबंदी करें।

    अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान, तरक्की व भाईचारगी की दुआ मांगी गई। शीरीनी बांटी गई। जलसे में मौलाना तफज़्ज़ुल हुसैन रज़वी,  हाफ़िज़ मो. आरिफ रज़ा, हाफ़िज़ इब्राहिम, तनवीर अहमद, सरताज अहमद, बरकत अली, मुहर्रम अली, हामिद अली, शाह आलम आदि ने शिरकत की।

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