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    गर्भावस्था जागरूकता सप्ताह (10 से 16 फरवरी तक) पर विशेष

    *गर्भावस्था जागरूकता सप्ताह (10 से 16 फरवरी तक) पर विशेष*

    *प्रसव पूर्व जांच से रोकी जा सकती हैं गर्भावस्था की जटिलताएं*

    वीएचएसएनडी, पीएमएसएमए दिवस के अलावा सरकारी अस्पतालों में होती है निःशुल्क जांच

    समय से खून की कमी का पता चलने से सुरक्षित बनाई जा सकती है जच्चा-बच्चा की जान 

    *गोरखपुर।

    जिले के बांसगांव कस्बे के वार्ड नंबर छह की रहने वाली रिंका (30) के पति बाहर रहते हैं । क्षेत्र की आशा कार्यकर्ता मालती की मदद से वर्ष 2021 में वह गर्भावस्था के छठे माह में बांसगांव सीएचसी गयीं । वहां नर्स मेंटर प्रेमलता सिंह ने उनकी हीमोग्लोबिन की जांच करवाया तो वह महज सात ग्राम निकला । प्रेमलता उन्हें लेकर चिकित्सा अधिकारी डॉ. अमृता दूबे के पास गयीं । चिकित्सक की सलाह पर नर्स मेंटर की देखरेख में रिंका को आइरन सुक्रोज चढ़ाया गया। जिस दिन आइरन सुक्रोज चढ़ाया जाता था उस दिन आयरन की गोली लेने से मनाही थी। कुल 20 दिन में हीमोग्लोबिन का स्तर 9.7 ग्राम हो गया । रिंका को पौष्टिक भोजन लेने के सलाह दी गयी और आयरन की गोलियां जारी रहीं । एनीमिया दूर हुआ और चार अक्टूबर 2021 को स्वस्थ बच्चा पैदा हुआ और मां को भी किसी प्रकार की दिक्कत नहीं हुई । 

    रिंका जैसी माताओं के सुरक्षित प्रसव की नींव  प्रसव पूर्व जांच ही है । प्रसवपूर्व सभी अहम जांच की मदद से गर्भावस्था की जटिलताएं रोकी जा सकती हैं । इस जांच की सुविधा सभी ग्राम स्वास्थ्य स्वच्छता पोषण दिवस (वीएचएसएनडी), प्रत्येक माह की नौ तारीख को होने वाले प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान दिवस (पीएमएसएमए) और सभी सरकारी अस्पतालों के ओपीडी में निःशुल्क उपलब्ध है । इन जांचों में खून की कमी की जांच काफी अहम है और अगर यह जांच समय से हो जाए और हीमोग्लोबिन की कमी को दूर कर दिया जाए तो प्रसव के दौरान होने वाली मातृ-शिशु मृत्यु दर को कम किया जा सकता है।

    प्रसव पूर्व जांच से लाभान्वित रिंका का कहना है कि समय से खून की जांच हो जाने और और सरकारी अस्पताल में मिली सुविधा से काफी संतुष्टि मिली है । उन्होंने प्रसव भी सरकारी अस्पताल में ही कराया । उन्हें अस्पताल में सभी दवाएं और सुविधाएं मिलीं । बच्चे के जन्म के बाद उन्हें बताया गया कि छह महीने तक सिर्फ स्तनपान करवाना है । प्रसव पूर्व जांच और संस्थागत प्रसव की सुविधा के लिए आशा कार्यकर्ता और एएनएम दीदी की मदद लेनी चाहिए ।

    *प्रसव पूर्व जांच की महत्ता*

    • गर्भ में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य और सही विकास को सुनिश्चित करने के लिए गर्भावस्था के दौरान कम से कम चार बार प्रसव पूर्व जांच जरूरी है 
    • पहली जांच गर्भ के तीन माह के भीतर, दूसरी जांच गर्भ के चौथे से छठे महीने के भीतर, तीसरी जांच सातवें से आठवें महीने के भीतर और चौथी जांच नौवें महीने में या प्रसव की तारीख नजदीक आने पर कराएं 
    • गर्भावस्था के दौरान वजन की माप, ब्लड प्रेशर की जांच, खून की जांच, पेशाब की जांच, पेट के घेराव की जांच और अल्ट्रासाउंड आते हैं

    *एचआरपी की होती है पहचान*

    राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के जिला कार्यक्रम प्रबंधक पंकज आनंद का कहना है कि प्रसव पूर्व जांच के दौरान ही उच्च जोखिम गर्भावस्था (एचआरपी) की पहचान हो जाती है । ऐसे गर्भवती और अभिभावकों को उनके एचआरपी होने के बारे में जानकारी दी जाती है और एमसीपी कार्ड पर इसकी मोहर भी लगा दी जाती है । उनका प्रसव उच्च चिकित्सा केंद्र पर होता है जिससे सीएचसी-पीएचसी ले जाने में लगने वाला समय बच जाता है और जटिलताएं नहीं बढ़ती हैं ।

    *आंकड़ों में प्रसव पूर्व जांच*

    राष्ट्रीय पारिवारिक हेल्थ सर्वेक्षण (एनएचएफएस)-05, वर्ष 2019-21 के आंकड़ों के अनुसार जिले में 56.3 फीसदी महिलाओं ने प्रसव पूर्व चारो जांच कराया । एनएचएफएस-04 (2015-16) के आंकड़ों के मुताबिक यह 35.2 फीसदी था । प्रथम त्रैमास में भी जांच कराने वाली संख्या बढ़ी है । सर्वेक्षण के मुताबिक पांच वर्ष पूर्व जहां यह 48.3 फीसदी था, वहीं यह पांच वर्षों में बढ़ कर 63.9 फीसदी हो गया ।

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