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    सुदामा चरित एवं परीक्षित सर्प दंश कथा सुन भावुक हुए श्रोता

    सोहनपुर । देवरिया। भाटपाररानी विकास खंड के गांव जैतपुरा में चल रहे श्रीमद् भागवत कथा के अन्तिम दिन कथा वाचक सत्यप्रकाश महराज उर्फ शंखबाबा ने व्यास पीठ से सुदामा चरित और महाराजा परिक्षित के तक्षक सर्प दंश की कथा का रसपान कराया।शंखबाबा महराजा ने बताया कि कृष्ण और सुदामा जैसी मित्रता आज कहां है।
    सीस पगा न झगा तन पै, प्रभू! जानै को आहि! बसै केहि ग्रामा। 
    धोती फटी-सी लटी-दुपटी, अरु पाँय उपानह की नहिं सामा॥ 
    द्वार खरो द्विज दुर्बल एक, रह्यो चकि सों बसुधा अभिरामा। 
    पूछत दीनदयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा॥ 
    द्वारपाल के मुख से पूछत दीनदयाल के धाम, बतावत आपन नाम सुदामा सुनते ही द्वारिकाधीश नंगे पांव मित्र की अगवानी करने राजमहल के द्वार पर पहुंच गए। यह सब देख वहां लोग यह समझ ही नहीं पाए कि आखिर सुदामा में ऐसा क्या है जो भगवान दौड़े दौड़े चले आए। बचपन के मित्र को गले लगाकर भगवान श्रीकृष्ण उन्हें राजमहल के अंदर ले गए और अपने सिंहासन पर बैठाकर स्वयं अपने हाथों से उनके पांव पखारे। कहा कि सुदामा से भगवान ने मित्रता का धर्म निभाया और दुनिया के सामने यह संदेश दिया कि जिसके पास प्रेम धन है वह निर्धन नहीं हो सकता। राजा हो या रंक मित्रता में सभी समान हैं और इसमें कोई भेदभाव नहीं होता। कथावाचक शंखबाबा ने सुदामा चरित्र का भावपूर्ण सरल शब्दों में वर्णन किया। उपस्थित लोग भाव विभोर हो गए। वहीं कथा का समापन ऋषि कुमार के द्बारा दिये गये श्राप से सातवें दिन तक्षक नामक सर्प ने डस लिया और परीक्षित की मृत्यु हो गई।इस दौरान आरगन व भजन गायक राजा तिवारी,पैड पर ओमप्रकाश
    तिवारी,भजन गायक शिवम् उपाध्याय, तबला विवेक मिश्र व आचार्य रामसिंगार द्विवेदी ने श्रोताओं को पूरे श्रवण सप्ताह सरोबोर रखा। व वहीं श्रद्धालुओं में रामदयाल राय, विष्णु दयाल राय, विवेक राय,वन्धू साह,नीरज राय, अभिषेक राय, सन्तोष राय,मधुवन राय, रामश्रय गुप्ता, अभिषेक राय, तुफानी पाल, रामानन्द शर्मा आदि लोग उपस्थित रहे।

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