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    बारानगर की बीर कालिका माता करती है भक्तो की मुरादे पूरा





    गोलाबाजार,गोरखपुर3 अप्रैल। गोला तहसील क्षेत्र केग्राम सभा बारानगर में सरयू नदी के पावन तट पर सुप्रसिद्ध  बीर कालिका माता का मन्दिर स्थित है। बारानगर बीर कालिका माता के दरबार में जो भी स्नेह व श्रद्धा के साथ भक्त आता है उसकी सच्चे मन से माँगी गयी सारी मुरादे माँ पूरी करती है। आज यह सुप्रसिद्ध स्थान गांव क्षेत्र के ही नहीं अगल-बगल के जिले के लोगों में भी आस्था एवं विश्वास का केंद्र बन चुका है। माँ के स्थान पर  प्रत्येक दिन भक्तों की भीड़ लगी रहती़ है। लेकिन  नवरात्र के दिनों पर भक्तों का हुजूम  माँ के दरबार दर्शन पूजन के लिए उमड़ पड़ताआ है।माँ के दरबार मे सच्चे मन से आने वाले प्रत्येक भक्तो की  मन्नते  माँ  पूरा करती है।

    बताते चलें कि गोला ब्लाक मे ग्राम सभा बारानगर है ।जो तहसील मुख्यालय से करीब 12 किलोमीटर पश्चिम और दक्षिण कोने पर स्थित है।वहां माँ का सरयु नदी के तट पर  माँ बीर कलिका का सुप्रसिद्ध स्थान है । सदियों पूर्व से स्थित माँ बीर कालिका मन्दिर मात्र क्षेत्र के लिए ही नहीं अगल बगल के जनपद वासियों के लिए भी पूजा एवं आस्था का केंद्र बना हुआ है।माँ बीर कालिका के बारानगर में स्थापित होने के विषय में विभिन्न किवदंतिया है ।सूत्रों के अनुसार बारानगर गाँव में मल्लाह जाति के लोग निवास करते हैं जो नदी के तट पर स्थित होने के कारण नाव द्वारा लोगों को नदी पार कराने का कार्य करते चले आ रहे हैं ।पूर्व काल मे  सरयु नदी गाँव से काफी दूर दक्षिण बहती थी। एक दिन नाविकों को नदी की सतह पर एक पिण्ड बहता हुआ दिखाई दिया जब लोग करीब पहुंचे तो अलौकिक रूप से माता के पिण्ड के समान लगा पिण्ड को लाकर नाविकों ने गाँव में स्थापित कर दिया। कहा जाता है किगाँव मे स्थापित हो जाने के कारण नाविकों की नाव नदी पार नहीं कर पाती थी ।नाविक परेशान हो गए तब गाँव के ही एक बुजुर्ग व्यक्ति शिवमंगल मल्लाह को स्वप्न में माता अपने को दूसरे स्थान पर साक्षात खड़ी होकर स्थापित करने के लिए कहने लगी ।सुबह शिवमंगल ने रात्रि में आए स्वप्न को पूरे परिवार के लोगों को बताया। शिवमंगल मल्लाह ने माता के पिण्ड को गाँव के बाहर घने जंगल में लाकर स्थापित कर दिया। पिण्ड की स्थापना करने के बाद  सरयुनदी स्थापित पिंडी के बगल से बहने लगी।जो आज माँ बीर कालिका के नाम से सुविख्यात हो चुकी है।और माता के स्थान के बगल से सरयू नदी की धारा बहने के कारण  नाविक अपने नाव को आसानी से नदी पार करने लगे ।माँ कालिका के स्थान पर  एक संत भ्रमण करते हुए पहुंचे और तपस्या शुरु कर दिया ।उनका नाम आगे चलकर  फलाहारी संत बाबा  बोधिदास पड़ा। और उन्होंने अपनी तप और मेहनत के बल पर इस स्थान को रमणीक बना दिया।वही माता के स्थान से थोड़ी दूर हनुमान मंदिर व धर्मशाला का भी निर्माण कराया।बाबा जी के दिवंगत होने पर उनका समाधी भी तपस्थली पर बना ।सरयु नदी के तट पर स्थित माँ कालिका का स्थान दार्शनिक स्थल के रुप में हो चुका है। जहाँ भक्तों की भीड़ प्रतिदिन लगी रहती है । नवरात्र व बर्ष के प्रत्येक रविवार को तो श्रद्धालुओ का सैलाब उमड़ पड़ता है ।दूर दूर से लोग आते हैं मुण्डन कड़ाही  कथा व धार्मिक कार्य संपन्न होता है। माता कालिका के स्थान पर अगल-बगल के जिला के लोग भी अपने वाहनों से आकर माँ सरयु स्नान में कर माँ के दरबार में मत्था टेककर अपनी मन्नते मांगते हैं और सच्चे मन से माँगी गयी मुरादे माँ पूरा करती है । भक्तो की मुराद पूरा होने पर लोग माँ के दरबार में आकर अपनी मन्नत के अनुसार चढ़ावा चढ़ाते है। माँ के दरबार में मल्लाह जाति के लोग ही सेवक के रूप में रहकर माँ की  स्थान का साफ-सफाई देख रेख करते हैं । माता के स्थान पर समाज सेवियों द्वारा मन्दिर और धर्मशाला का भी निर्माण कराया गया है माँ के दरबार में कोई भी भक्त आता है तो माँ के चरणों में मत्था टेक कर अपने को धन्य बनकर ही वापस जाता है । नवरात्र पर माँ के दर्शनार्थ श्रद्धालुओ की भारी भीड़ लगी रहती हैं।जो भी भक्त माँ से सच्चे मन से अपनी मुरादे माँगता है माँ बीर कालिका अपने भक्तों की मुरादे पूरा करती हैं। ।

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