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    भक्तों की झोलिया भरती है गगहा मंदिर की माँ सम्मय माता




    गोलाबाजार गोरखपुर 10 अप्रैल।

    जनपद मुख्यालय से लगभग 40 किमी दूर दक्षिण में गोरखपुर-वाराणसी राजमार्ग के निकट गगहा-गजपुर संपर्क मार्ग पर  आराध्य देवी माँ सम्मय माता का एक प्राचीन मंदिर स्थित है। मंदिर की क्षेत्र में ही नहीं दूर दूर तक मान्यता है।

    प्राप्त बिबरण के अनुसार, माँ सम्मय माता अपने सभी श्रद्धालुओं की रक्षा के लिए सदैव तैयार रहती हैं।इस सुप्रसिद्ध स्थान के पीछे सूत्रों का कहना है किकभी रुद्रपुर रियासत के अंतर्गत रहा यह क्षेत्र घने जंगल से घिरा था, जहां शक्तिशाली थारूओं का कब्जा था। जिन पर माँ सम्मय की कृपा से बाबा शक्ति सिंह ने लम्बी चली लड़ाई में विजय हासिल किया। धीरे-धीरे जंगल कटते गये और थारूओं ने भी हारकर अपना ठिकाना बदल लिया। और बाबा शक्ति सिंह अपनी मुहिम में सफल हो सपरिवार यहीं बस गए। गगहा में निवास करने वाले चंद्रवंशी क्षत्रिय उन्हीं के वंशज हैं।


    एक किवदंती के अनुसार सैकड़ों वर्ष पूर्व स्थानीय राजपूत विजयी सिंह के पूर्वज को स्वप्न में माता ने दर्शन देकर भीते की इस जमीन में अपने होने का प्रमाण दिया। अगले ही दिन से उस स्थान की पुष्टि कर सभी ग्रामीणों ने पूजा आराधना शुरू कर दी, जो आज भी अनवरत जारी है। 


    भक्तों की मुराद पूरी करती है मां सम्मे: भक्त दूर दूर से आकर मां से मन्नतें मांगते हैं, और मन्नत पूरी होने पर भक्तगण मां को चुनरी, नारियल, धूप, अगरबत्ती के साथ हलवा-पूड़ी, धार-कर्पूर, लवंग आदि चढ़ाते हैं। यह मंदिर सभी भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है। मंदिर में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य होते हैं। अनेक भोजपुरी फिल्मों के दृश्यों का यहां फिल्मांकन भी किया जा चुका है। मंदिर पर साफ सफाई का कार्य स्थानीय लोगों द्वारा किया जाता है। माता के दर्शनों के लिए सातों दिन भक्तों का आना-जाना लगा रहता है।


    चैत्र नवरात्र में लगता था मेला: चैत्र नवरात्र में इस विशाल मंदिर परिसर में सवा महीने का मेला लगता रहा है। सैकड़ो वर्षों से मेले में सर्कस, चिड़ियाघर, मौत का कुआँ, फर्नीचर की दुकानें, मशाले की दुकानें, लोहे के औज़ारों की दुकानें, कपड़े, खिलौने और तरह-तरह की खाने-पीने की दुकान सहित विभिन्न प्रकार की दुकानों को लगाने के लिए बड़े पैमानें पर दूर-दूर के दुकानदारों द्वारा यहाँ का मेला सैकड़ों वर्षों तक लगता रहा। जो यहाँ से उठकर तरकुलहा देवी मन्दिर चला जाया करता था। चैत्र की तपती दोपहरी में लगने वाले इस मेले का लुत्फ बच्चे, बूढ़े सभी उठाते थे। इस मेले से आस-पास के ग्रामीण अपने रोजमर्रा के घरेलू उपयोग की वस्तुएं मशाले आदि सस्ते दर पर ख़रीदकर वर्षभर के लिए रख लिया करते थे।


    जन सहयोग से मंदिर का हुआ है जीर्णोद्धार: समय के साथ साथ मंदिर का भक्तों के सहयोग से नवीनीकरण कराया गया है। मंदिर को पूरी तरह पक्का और आकर्षक बनाया गया है।


    मुण्डन (उपनयन) संस्कार के लिए प्रसिद्ध मन्दिर: गगहा, बेलकुर, बासुडीहा, गंभीरपुर, कोठा, उंचेर, गजपुर, बांसपार, भैसहां आदि गांवों के सभी जाति वर्ग के 1 से 7 वर्ष तक के बालक/बालिकाओं का मुण्डन (उपनयन) संस्कार यहाँ बड़े धूमधाम से होता है।

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