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    जीवनशैली में बदलाव से हो रहे विकारों को दूर करने के लिएआयुर्वेद के प्रति समर्पण जरूरी

    *आयुर्वेद पर गर्व करें छात्र व चिकित्सक: डॉ. आकाश*

    *जीवनशैली में बदलाव से हो रहे विकारों को दूर करने के लिएआयुर्वेद के प्रति समर्पण जरूरी*
    *गुरु गोरक्षनाथ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आयुर्वेद कॉलेज) में दीक्षा पाठ्यचर्या समारोह का छठवां दिन*

    गोरखपुर, 4 अप्रैल। बदलती जीवन शैली के कारण होने वाली बीमारियों के इलाज व इसके रोकथाम के लिए आयुर्वेद सर्वाधिक कारगर चिकित्सा पद्धति है। मॉडर्न मेडिसिन में जहां किसी एक बीमारी की दवा साइड इफेक्ट के चलते किसी दूसरी बीमारी का कारण बनने लगती है तो वहीं आयुर्वेद ऐसी पद्धति है जिसकी दवाओं से किसी प्रकार की हानि नहीं होती है। जरूरत इस बात की है कि आयुर्वेद के छात्र व चिकित्सक हीन भावना दूर करें, भारत की इस प्राचीनतम चिकित्सा विधि पर गर्व करते हुए अपने आत्म विश्वास को बढ़ाएं ताकि समूचे समाज की हानि रहित आरोग्यता सुनिश्चित हो सके।
    यह बातें वरिष्ठ आयुर्वेद परामर्शदाता डॉ. आकाश चंद्र त्रिपाठी ने कही। वह सोमवार को महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय, आरोग्यधाम की संस्था गुरु गोरक्षनाथ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आयुर्वेद कॉलेज) में बीएएमएस प्रथम वर्ष के के दीक्षा पाठ्यचर्या (ट्रांजिशनल करिकुलम) समारोह के छठवें दिन नवप्रेवशी विद्यार्थियों संग अपना अनुभव साझा कर रहे थे। "रोल ऑफ इम्पैक्ट ऑफ फिजिशियन इन सोसाइटी" विषय पर वक्तव्य देते हुए डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि भारत में जीवनचर्या सबंधी विकार के चलते 1990 में जहां 32 फीसदी मौतें होती थीं, वहीं 2017 में यह बढ़कर 62 प्रतिशत हो गई। पश्चिमी जीवन शैली अपनाने का असर यह है कि भारत आज दुनिया में सबसे अधिक मधुमेह रोगियों वाला देश है। उन्होंने कहा कि यूं तो आयुर्वेद में हर बीमारी का इलाज है लेकिन देश में मधुमेह व जीवनशैली के कारण घर कर रहे विकारों को दूर करने के लिए हमें आयुर्वेद के प्रति समर्पण दिखाना होगा। डॉ. त्रिपाठी ने बताया कि 12 लाख एलोपैथिक डॉक्टरों के सापेक्ष 4.5 लाख आयुर्वेदिक डॉक्टर हैं। सबको हानिरहित आरोग्यता प्राप्त हो, इसके लिए आयुर्वेद के प्रति रुझान बढ़ाना होगा। 
    दीक्षा समारोह के छठवें दिन गुरु गोरक्षनाथ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के प्राचार्य डॉ. पी. सुरेश ने अपने व्याख्यान में आयुर्वेद के विद्यार्थियों को समाज को आरोग्यता दिलाने के लक्ष्य पर केंद्रित होने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि जब लक्ष्य स्पष्ट होगा तो उसी के अनुरूप कदम बढ़ते जाएंगे। एक अन्य सत्र में गुरु गोरक्षनाथ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में परामर्शदाता डॉ. आदित्य नारायण उपाध्याय ने कहा कि चिकित्सक को धरती पर भगवान का दूसरा रूप माना जाता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में चिकित्सक स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान को लेकर योजनाकर्ता, अनुसंधानकर्ता, शोधार्थी, संप्रेषक, सलाहकार और आरोग्यदाता की भूमिका निभाता है। ये सारी भूमिकाएं अन्तरसम्बन्धित होती हैं। 

    *आयुर्वेद पद्धति से इलाज का बड़ा केंद्र बनेगा गोरखपुर : डॉ. राव*
    दीक्षा पाठ्यचर्या समारोह में सोमवार के पहले सत्र में महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय, आरोग्यधाम के कुलसचिव डॉ. प्रदीप कुमार राव ने आयुर्वेद चिकित्सालय की स्थापना के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि किसी भी विद्यालय के विद्यार्थी को गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। ऐसे में इस आयुर्वेद कॉलेज का सभी संसाधनों से युक्त आयुर्वेद चिकित्सालय विद्यार्थियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यह विश्वविद्यालय, कॉलेज और चिकित्सालय आयुष मंत्रालय द्वारा तय सभी मानकों पर खरा उतरता है। बीएएमएस के विद्यार्थी की व्यावहारिक सफलता के लिए बेहतरीन आयुर्वेद चिकित्सालय का होना अपरिहार्य है। डॉ. राव ने कहा कि आयुर्वेद पद्धति से इलाज के लिए देश में अधिकतर लोग केरल जाते हैं। पर, आने वाले समय में महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय परिसर स्थित आयुर्वेद चिकित्सालय के जरिये गोरखपुर आयुर्वेद विधि से इलाज का बड़ा केंद्र बनेगा। उन्होंने छात्रों को चिकित्सालय के संचालन की प्रक्रिया की भी विस्तार से जानकारी दी। 
    कार्यक्रमों में प्रो. (डॉ) एसएन सिंह, प्रो. (डॉ.) गणेश पाटिल, एसोसिएट प्रो. डॉ. सुमिथ कुमार एम, एसोसिएट प्रो. डॉ प्रज्ञा सिंह, एसोसिएट प्रो. डॉ. पीयूष वर्सा, एसोसिएट प्रो. डॉ. प्रिया नायर आदि की सक्रिय सहभागिता रही।

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