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    सैकड़ों सालों से इंसानियत को अमन का संदेश दे रही है दरगाह हज़रत मुबारक खां शहीद

    *दरगाह मुबारक खां शहीद उर्स पर खास रिपोर्ट...*

    *एक हज़ार साल पुरानी गंगा जमुनी तहज़ीब की गवाह इस दरगाह पर पूरी होती है मुरादें*

    *सैकड़ों सालों से इंसानियत को अमन का संदेश दे रही है दरगाह हज़रत मुबारक खां शहीद*



    गोरखपुर । सूफी संतों और वलियों की दरगाह से अमन और भाईचारगी का सबक मिलता रहा है। मुल्क में जब जब इंसानियत फरेब का शिकार होकर जुल्म और नफरत के रास्ते की ओर चली है तब तब भटकी हुई इंसानियत के लिए राहत और सुकून संतो और वलियों के इन आस्तानों से ही हासिल हो सका है। 
    हम बात कर रहे हैं दरगाह हज़रत मुबारक खां शहीद की, जहां पिछले सैकड़ों सालों से इस्लामिक कैलेंडर के शौव्वाल माह यानी ईद में उर्स होता है और कई दिनों तक चलने वाला मेला लगता है।

    *कथाकार प्रेमचंद की अमर रचना ईदगाह के मुख्य पात्र हामिद ने इसी उर्स के मेले से दादी अमीना के लिए खरीदा था चिमटा*

    गोरखपुर शहर के बेतियाहाता स्थिति नॉर्मल के पास वाले इसी आस्ताने के बिल्कुल बगल में वह ईदगाह भी मौजूद है जिसको देखकर विश्व प्रसिद्ध साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद्र ने अपनी कालजयी रचना ईदगाह लिखी थी। ईदगाह के मुख्य पात्र हामिद ने इसी उर्स के मेले से अपनी दादी अमीना के लिए चिमटा खरीदा था।

    *मुल्क के विभिन्न हिस्सों समेत पड़ोसी राष्ट्र नेपाल से आते हैं जायरीन*

    दरगाह पर होने वाले उर्स के दौरान लगने वाला मेला पहले पूरे महीने चलता था जिसमे देश व प्रदेश भर की मशहूर वस्तुओं की दुकानें लगती थी लेकिन समय के साथ इसकी अवधि कम होती गई और बाहरी दुकानदारों की जगह स्थानीय दुकानदारों ने ली लिया।
    आने वाली 28 मई को इस क़दीमी दरगाह पर रवायती उर्स शुरु हो जाएगा जो तीन दिनों तक चलेगा। इस दौरान हर मज़हब और फिरके के लोग चादर पेश करते हैं। सैकड़ों साल से चली आ रही यह परंपरा इंसानियत भाईचारा अमन और मोहब्बत की बुनियाद और हर बार और ज्यादा मजबूत करती है। 
    उर्स के दौरान यहां उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश के साथ ही पड़ोसी राष्ट्र नेपाल से भी हजारों की तादात में जायरीन यहां पहुंचते हैं।
    बहरहाल सैकड़ों साल पुरानी इस मशहूर दरगाह पर आस्था और इंसानियत पूरी तरह हावी है और यह सभी धर्मों के लोगों की आस्था का केंद्र है।

    *सैकड़ों साल पुराना है दरगाह का इतिहास*

    ग्यारहवीं सदी की इस दरगाह के इतिहास के साथ तमाम किदवंतियाँ जुड़ी हुई हैं।
    कहा जाता है कि बाबा ईरान के किसी शहर से यहां आये। उस समय यहां एक जुल्मी और बर्बर राजा का राज था । बाबा ने राजा को जुल्म करने रोका तो दुष्ट राजा को यह अच्छा नही लगा और उसने धोखे से बाबा को शहीद कर दिया।
    कहते हैं कि उसी रात राजा अपने पूरे महल के साथ जमींदोज हो गया और महल के ऊपर एक झील बन गई जिसे आज रामगढ़ ताल के नाम से जाना जाता है।

    *गंगा जमुनी आस्था का केंद्र है दरगाह*

    मुबारक खां शहीद दरगाह पर आस्था रखने वालों का मानना है कि मुल्क की सियासत के असर से शहर में कई बार अमन ख़तरे में  दिखा लेकिन बाबा की दुआओं का फ़ैज़ रहा कि हमेशा से इंसानियत महफूज़ रही और संवेदनशीलता के केंद्र में रहे गोरखपुर में आज तक कोई दंगा फसाद नही हो पाया।
    बृहस्पतिवार को यहां हाजिरी देने वाले और मन्नत मांगने वालों का हुजूम लगता है हर धर्म के लोग इस हुजूम में शामिल रहते है ।
    यहां आने वाले लोगों का कहना है कि हर तरफ से वह निराश होकर बाबा की दरगाह पर आये थे और जब अपनी खाली झोलियां बाबा के आस्ताने पर फैलाई तो बाबा ने उनकी झोलियां मुरादों से भर दी। 
    सैकड़ों सालों से इन वलियों की दरगाहों से यही सिलसिला चला आ रहा है 
    बहरहाल हर बार नफरतों की गर्म हवाओं के बीच, गंगा जमुनी तहजीब की मुहाफिज इस दरगाह से निकलने वाली इंसानियत की ठंडी बयार शहर के मौसम को खुशगवार करती रही है जो इंसानियत खत्म होने तक जारी रहेगी।

    *ज़िला प्रशासन की मुस्तैदी से सकुशल सम्पन्न होता रहा है उर्स*

    दरगाह पर होने वाले उर्स और उस दौरान लगने वाले मेले की तैयारी में जिला प्रशासन से लेकर नगर निगम और विधुत विभाग की टीमें हफ्तों पहले तैयारियों में जुट जाती थी तो वहीं सुरक्षा के लिए पुलिस प्रशासन के साथ दरगाह कमेटी की कई दौर की बातचीत और सलाह मशवरे के बाद तैयारियों को अंतिम रूप दिया जाने की परंपरा रही है।
    उर्स और मेले।के अलावा ईदगाह में ईद की नमाज़ को लेकर आला अधिकारियों का दरगाह आने का सिलसिला ईद के पहले से शुरू हो जाता था। 
    उर्स के अंतिम दिन समाज के विभिन्न वर्गों के चर्चित व्यक्तियों के अलावा पत्रकारों और पुलिस व प्रशासन के लोगों को सम्मानित करने की परम्परा भी रही है जो कोरोना काल के पहले तक जारी थी।

    *कोरोना काल के बाद पहली बार आयोजित उर्स में भारी भीड़ जुटने की संभावना*

    कोरोना काल के दौरान लगातार दो साल तक स्थगित रहने वाले इस उर्स में इस बार आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में जबरदस्त वृद्धि होने की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में मेले को व्यवस्थित ढंग से सकुशल संपन्न कराना दरगाह कमेटी के साथ ही जिला व पुलिस प्रशासन के लिए किसी चुनौती से कम नही है।

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