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    तकबीरे तशरीक पढ़ना वाजिब, 9 जुलाई से पढ़ी जाएगी : मुफ्ती मेराज

    तकबीरे तशरीक पढ़ना वाजिब, 9 जुलाई से पढ़ी जाएगी : मुफ्ती मेराज

    -क़ुर्बानी पर दर्स का छठां दिन 
    गोरखपुर। मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती में क़ुर्बानी पर चल रहे दर्स के छठें दिन बुधवार को मुफ्ती मेराज अहमद क़ादरी ने बताया कि 9 जुलाई शनिवार को फज्र की नमाज़ से लेकर हर नमाजे फ़र्ज़ पंजगाना के बाद तकबीरे तशरीक बुलंद आवाज़ से पढ़ी जाएगी। जिसका सिलसिला 13 जुलाई बुधवार की असर की नमाज़ तक जारी रहेगा। 

    उन्होंने बताया कि 9वीं ज़िलहिज्जा के फज्र से 13वीं के असर तक हर फर्ज नमाज़ के बाद जो जमाअत के साथ अदा की गई एक मरतबा तकबीरे तशरीक यानी 'अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर ला इलाहा इल्लल्लाह वल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर व लिल्लाहिल हम्द’ बुलंद आवाज़ से पढ़ना वाजिब है और तीन बार अफ़ज़ल है। अरफा (9 जिलहिज्जा) के दिन रोज़ा रखने की बहुत फजीलत हदीस शरीफ़ में आई है। अरफा इस बार 9 जुलाई शनिवार के दिन है।

    उन्होंने कहा कि कुर्बानी हमें शिक्षा देती है कि जिस तरह से भी हो सके अल्लाह की राह में खर्च करो। कुर्बानी का जानवर कयामत के दिन अपने सींग और बाल और खुरों के साथ आएगा और फायदा पहुंचाएगा। कुर्बानी का खून जमीन पर गिरने से पहले अल्लाह के नजदीक मकामे कबूलियत में पहुंच जाता है। लिहाजा कुर्बानी खुशी से करनी चाहिए। एक हदीस में आया है कि नबी-ए-पाक हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि कुर्बानी तुम्हारे पिता हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है। लोगों ने अर्ज किया इसमें क्या सवाब है। फरमाया हर बाल के बदले नेकी है।

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