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    अक्षर - अक्षर में बसे गीता और कुरान

    अक्षर - अक्षर में बसे गीता और कुरान

    काव्या समूह का काव्य समागम 

    कौड़ीराम गोरखपुर
     लखनऊ के 'काव्या सतत साहित्य यात्रा' परिवार व 'शारदेय प्रकाशन' के संयुक्त तत्वावधान में काव्य समागम का आयोजन हुआ। उपस्थित रचनाकारों ने अपनी रचनाओं से उपस्थित लोगों को बांधे रखा।
      काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता परिवार की मुखिया निवेदिताश्री ने किया। बतौर मुख्य अतिथि डॉ. चेतना पाण्डेय  व विशिष्ट अतिथि सरोज अग्रवाल उपस्थित रहीं।  उत्कृष्ट मंच संचालन डॉ.अमिताभ पाण्डेय ने किया।
      गोष्ठी का शुभारम्भ डॉ.सरिता सिंह द्वारा माँ शारदे की वाणी वंदना से हुआ। कवयित्री नीरजा बसंती ने "तुम्हारे कागजी फूलों के सब किरदार झूठे है।                      
    महकती रात रानी और वो हरसिंगार झूठे है ll"
     सुनाकर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। कवयित्री एकता उपाध्याय ने "मैंने नभ की तारावलियो को रातों में छुप कर देखा था,
    अंबर की गोदी से उसका बस एक सितारा मांगा था" सुनाकर लोगों को वाह वाह करने पर मजबूर कर दिया।
    कवयित्री प्रीति मिश्रा ने 
    "उम्मीद का परिंदा उड़ता रहे हमेशा ।
    नित नये आयाम तू गढ़ता रहेहमेशा।। सुनाकर वाहवाही बटोरी।
    कवयित्री प्रीति प्रियांशी ने
    "मन के मणिकर्णिका में
    निरंतर चिताएं दहक रही है
    उनकी लहक आंच में
    सब कुछ राख हुआ जा रहा
    बस यही से विरक्ति कि राह
    पर हूं" सुनाकर माहौल को नई ऊंचाई प्रदान किया। कवयित्री अनिता पाल सिंह ने "साहिल पे आके प्यार से चलती है कश्तियां।
    भीगी है धूप जिस्म पे मलती हैं कश्तियां ।। सुनाकर वाहवाही बटोरी।
    कवयित्री डॉ सरिता सिंह ने अपनी कविता "बन करके इंसां भी जरा देख लीजिए।
    मजहबी बातों में न वक्त जाया कीजिए।।" सुनाकर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
    गोष्ठी का संचालन कर रहे डॉ अमिताभ पाण्डेय ने अपनी रचना
    "अक्षर - अक्षर ब्रह्म है,
    अक्षर में  है ज्ञान।
    अक्षर- अक्षर में बसे
    गीता और कुरान ।।"
    सुनाकर खूब वाहवाही बटोरी।
    डॉ चेतना पाण्डेय ने अपनी रचना
    "प्रश्न कैसे भी हो,
    ज़बाब को मुट्ठी में रखो।
    जिगर में आग रखो,
    आग को मुट्ठी में रखो" पढ़ कर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। सरोज अग्रवाल ने अपनी रचना सुनाकर गोष्ठी को नई ऊंचाई प्रदान किया। काव्या सतत, साहित्य यात्रा समूह की संस्थापक निवेदिता श्री ने "नारी नदिया प्रेम की, सब ही रहे उलीच।
    गागर भर वो भी चले,जो कहते थे नीच।। सुनाकर वाहवाही लूटा। उक्त अवसर पर बड़ी संख्या में काव्य प्रेमी श्रोता उपस्थित रहे।

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