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    भक्तवत्सल भगवान अंतिम क्षण तक भक्तों की रक्षा करते है।


    आचार्य विनोद जी महाराज

    गोलाबाजार गोरखपुर 31 जुलाई।


    भक्तों का भगवान  अंतिम क्षण तक रक्षा करते हैं जिसका  उदाहरण महाभारत के अंतिम समय में देखने को मिलता है। जब कौरव परिवार के भीष्म और दुर्योधन सिर्फ दो ही योद्धा रणभूमि में रह जाते हैं। ऐसे में भीष्म पितामह दुर्योधन से कहते हैं कि दुर्योधन तुम अपनी पत्नी को संध्या वंदन के समय मेरे शिविर में भेजना मैं उसे अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद दूंगा ।तो 10,000 अर्जुन भी तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे युगो युगो तक चाहे युद्ध करते रहे, लेकिन तुम्हें पराजित नहीं कर पाएंगे 

    उक्त भगवत प्रसंग सुप्रसिद्ध कथा बाचक आचार्य बिनोद जी महाराज ने बताते हुए कही।

    आगे उन्होंने कहा कि भीष्म द्वारा कहे बात का पता कही से   भगवान मुरली मनोहर को  चल गई।,संध्याकाल हुई तो वे द्रोपदी के पास दौड़कर पहुंचे और कहा द्रोपदी तुरंत मेरे साथ चलो और भीष्म पितामह से प्रणाम करके सौभाग्यवती का वरदान लेना, एक बात ध्यान रखना की तुम्हे भीष्म से 5 बार प्रणाम करना है । द्वारिकाधीश ने देखा कि  शिविर के बाहर द्रोपदी ने अपनी चरण पादुका  कौरव दल का व्यक्ति कोई न देख ले इस कारण उन्होंने चरण पादुका उठाई और अपने बगल में दबाकर एक पेड़ की ओट ले ली। भीष्म  अपने शिविर में संध्या वंदन करके ओम शांति का पाठ कर रहे थे जैसे ही पाठ खत्म हुआ द्रौपदी ने चरण छू कर कहा कि दादा प्रणाम करती हूं, भीष्म पितामह सोचा कि दुर्योधन की पत्नी आई है तो उन्होंने आंखें बंद किए हुए ही कहां की अखंड सौभाग्यवती भव, द्रौपदी ने दूसरी बार कहा कि पितामह प्रणाम करती हूं, भीष्म पिता ने कहा बेटा सौभाग्यवती भव, पांचाली  ने तीसरी बार कहा प्रणाम दादा, भीष्म पितामह कहा कि अरे बेटा आशीर्वाद दे तो दिया अब तुम जाओ,। द्रोपती ने चौथी बार कहा पितामह सादर प्रणाम करती हूं आपके चरणों में भीष्म पितामह ने कहा कि अरे बेटा एक बार दे तो दिया आशीर्वाद अखंड सौभाग्यवती भव, द्रोपदी ने पांचवीं बार कहां की पितामह आपके चरणो में कोटि कोटि प्रणाम भीष्म पितामह ने बोला कि अरे बेटा सौभाग्य,,,, और वही थम गए भीष्म के शब्द। उन्होंने कहा कि तुम दुर्योधन की पत्नी तो हो नहीं सकती वह तो इतनी अहाँकरानी है कि एक बार ही प्रणाम कर ले वही काफी है तुम कौन हो तो द्रौपदी बोली कि मैं आपकी कुलवधू द्रोपदी हूं पितामह आपके चरणों में साष्टांग प्रणाम करने आई हूं। भीष्म पितामह ने आंख खुली और कहां है द्रोपदी तुमने क्या कर डाला मेरी कुटिया में महाभारत के युद्ध का परिणाम तो अब घोषित हो गया कल से तो सिर्फ नाटक दिखाया जाएगा। पर तुम्हें आई कैसे तो द्रोपदी ने कहा कि मुझे द्वारिकाधीश लेकर पितामहआए हैं । पितामह चौके और बोले कहां हैं कृष्ण?? द्रोपदी ने कहा कि बाहर खड़े हैं,। अब देखिए मित्रों भगवान दो काम करते हैं एक तो अपने भक्तों की रक्षा का इंतजाम करते हैं और दूसरा उन्हें पता है कि कल भीष्म पितामह का रणभूमि में अंतिम दिन होगा इसलिए पूर्व संध्या पर उन्हें दर्शन देने पहुंचे हैं। 


    भीष्म पितामह ने जैसे ही भगवान को देखा उन्हें झुक कर प्रणाम किया जय श्री कृष्ण ने उन्हें उठाया तो बगल में दबी हुई द्रोपती की चरण पादुका है भीष्म के सिर पर गिर गई। भीष्म पितामह ने भगवान की भक्तवत्सलता देखी और रो पड़े, कि भगवान किस अंतिम छोर तक अपने भक्तों की रक्षा करते हैं जो भगवान अपने भक्तों की चप्पल उठा ले उनसे करुणा वाला और कौन हो सकता है इसलिए उन्हें करुणानिधि ,दयानिधि,  और ना जाने किन किन नामों से पुकारा जाता है सत्य है कि भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए, शरणागत की रक्षा के लिए किसी भी अंतिम छोर तक जा सकते हैं।

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