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    इस्लामी नया साल; खुद की समीक्षा का दिन है! मुफ्ती शोऐब रज़ा निज़ामी

    इस्लामी नया साल; खुद की समीक्षा का दिन है! मुफ्ती शोऐब रज़ा निज़ामी

    गोला बाज़ार/गोरखपुर:
    आज इस्लामी कैलेंडर वर्ष का आखरी दिन है और आज शाम मग़रिब के समय से नया हिजरी सन् प्रारम्भ हो जायेगा। इसी संदर्भ में गोला बाज़ार के शहर क़ाज़ी मुफ्ती मोहम्मद शोएब रज़ा साहब निज़ामी ने मुसलमानों से अपने समीक्षा की अपील करते हुए कहा कि
    मुहर्रम-अल-ह़राम का महीना जहां इस्लामिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, वहीं इस्लामिक कैलेंडर में नया साल भी मुहर्रम के चांद से शुरू होता है। चांद दिखना एक इस्लामिक साल के अंत और दूसरे साल की शुरुआत का प्रतीक है। हर साल मुहर्रम का चांद देखा जाता है और कर्बला एवं इमाम हुसैन को याद किया जाता है। हिजरी वर्ष बदलता है। परंतु इस्लामिक नव वर्ष का संदेश क्या है? इस्लामी इतिहास का उद्देश्य क्या है? पिछले एक साल से हमने क्या सबक सीखा है? हम आने वाला साल कैसे बिताएंगे? इन सबसे हमें कोई सरोकार नहीं होता है। लेकिन नहीं, ऐसा इसलिए होना चाहिए क्योंकि हमारी उम्र में एक साल की कमी आ गई है। हमें अपने बारे में सोचना चाहिए और बीते साल की समीक्षा करनी चाहिए।

    पिछले साल हमने कितना नेक किया और कितने गलत?
    हमने अपनी जिम्मेदारियों को किस हद तक निभाया और कितनी उपेक्षा की?
    अधिकारों का भुगतान करने में हमने कितनी ईमानदारी से कार्य किया और हमने कितना विश्वासघात किया?
    हमारी नमाज़ें... हमने साल भर में कितनी नमाज़ अदा की? और हमारी कितनी क़ज़ा हो गयीं? और पिछली क़ज़ा नमाज़े अदा करने में हम कितने सफल रहे?
    कहीं हम पर ज़कात तो फर्ज़ (अनिवार्य) नहीं था और हम इससे अनजान रह गयें? यदि फर्ज़ था, तो हमने कितनी ईमानदारी से जकात निकाली?
    अगर हज फर्ज़(अनिवार्य) था, तो क्या हमने उस की कितनी कोशिश की?
    हमने पूरे साल जो कमाया वह हमने कैसे कमाया? हमने जितना निवाला खाया/खिलाया वह हलाल था या हराम?
    हमने जो धन कमाया उसका उपयोग कितना अच्छा था और कितना व्यर्थ गया?
    क्या हमने अर्जित धन से धर्म और राष्ट्र के कल्याण के लिए कुछ किया या बस अपनी भूख मिटाते रहे?
    हमने अपने माता-पिता की किस हद तक सेवा, आज्ञापालन और अनुपालन किया? हमारी कुछ हरकतों से उनका दिल तो नहीं दुखा? पूरे साल में कितने दिन वे हमारे साथ खुश रहे और कितने दिन उनकी नाराजगी का श्राप(लानत) हम पर बरसा?
    हमने अपने बच्चों की शिक्षा और प्रशिक्षण पर कितना ध्यान दिया और उनके बेहतर भविष्य के लिए हमने क्या किया?
    अपने जीवनसाथी के अधिकारों का भुगतान करने में हम कितने सफल रहे हैं?
    साल भर पड़ोसियों के प्रति हमारा रवैया कैसा रहा?
    हमने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ कैसा व्यवहार किया?
    ऐसे अनगिनत सवाल हमें खुद से पूछने चाहिए और खुद का हिसाब रखना चाहिए कि पिछला साल हमने कैसे बिताया? पिछला साल हमारे लिए कितना अच्छा रहा और कितना बुरा? पिछले एक साल में हमने क्या पाया और क्या खोया? अगर पिछला साल अच्छा रहा तो अगले साल को और भी बेहतर बनाने की कोशिश करें और अगर अच्छा न हो तो पिछली कमियों से सीख लें और अगले साल इन कमियों को दूर करने की कोशिश करें ताकि हमारे आक़ा-ए-करीमﷺ के विशेष गुण "وللآخرة خیرٌ لک من الاولیٰ"(और आप का आने वाला वक्त पिछले से बेहतर है।) का फैजान(आशिर्वाद) हम भी प्राप्त करें और हमारा भावी जीवन मंगलमय हो...

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