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    अहंकार के बंगले को त्याग कर मानव को मनुष्यता की झोपड़ी को अंगीकृत करना चाहिए ,आचार्य विनोद जी महाराज




    गोलाबाजार गोरखपुर 1 अगस्त।


    सुप्रसिद्ध भागवत कथा वाचक आचार्य विनोद जी महाराज ने भागवत कथा के एक प्रसंग को बताते हुए कहा कि कंस को मारने के बाद भगवान श्रीकृष्ण कारागृह में गए और वहां से माता देवकी तथा पिता वसुदेव को छुड़ाया। उस समय माता देवकी ने श्रीकृष्ण से पूछा, "बेटा, तुम भगवान हो, तुम्हारे पास असीम शक्ति है, फिर तुमने चौदह साल तक कंस को मारने और हमें यहां से छुड़ाने की प्रतीक्षा क्यों किया?"

    उनके प्रश्नों का उत्तर देते हुएभगवान श्रीकृष्ण ने कहा, "क्षमा करें माता जी, क्या आपने मुझे पिछले जन्म में चौदह साल के लिए वनवास में नहीं भेजा था।"

    माता देवकी  भगवान कृष्ण द्वारा किये गए प्रश्न पर आश्चर्यचकित हो गईं और फिर पूछा, "बेटा कृष्ण, यह कैसे संभव है? तुम ऐसा क्यों कह रहे हो?"

    भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, "माता, आपको अपने पूर्व जन्म के बारे में कुछ भी स्मरण नहीं है। परंतु तब आप कैकेई थीं और आपके पति राजा दशरथ थे।"

    माता देवकी ने और ज्यादा आश्चर्यचकित होकर पूछा, "फिर महारानी कौशल्या कौन हैं?"

    भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, "वही तो इस जन्म में माता यशोदा हैं। चौदह साल तक जिनको पिछले जीवन में मां के जिस प्यार से वंचित रहना पड़ा था, वह उन्हें इस जन्म में मिला है।"

    अर्थात्, प्रत्येक प्राणी को इस भू मृत्युलोक में अपने कर्मों का भोग भोगना ही पड़ता है। यहां तक कि देवी-देवता भी इससे अछूते नहीं हैं।

    इसलिए भगवान कृष्ण ने कहा कि अहंकार के बंगले में कभी प्रवेश नहीं करना चाहिए और मनुष्यता की झोपड़ी में जाने से कभी संकोच नहीं करना चाहिए।

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