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    बजरंग बाण और उसके तीव्र प्रभाव का क्या है कारण पंडित आशीष जी




    गोलाबाजार गोरखपुर 20 सितम्बर।
    हनुमान जी कलयुग में सर्वाधिक जाग्रत देवता माने जाते हैं जो सप्त चिरंजीवी में से एक हैं, अर्थात जिनकी कभी मृत्यु नहीं हो सकती। इनके सम्बन्ध में अनेक किवदंतियां हैं और आधुनिक युग में भी इन्हें कहीं कहीं उपस्थित रूप से माना जाता है अथवा इनकी उपस्थिति समझी जाती है। इन्होने भगवान् राम की ही सहायता नहीं की अपितु अर्जुन और भीम की भी सहायता की। इन्हें रुद्रावतार भी कहा जाता है और एकमात्र यही हैं जो शनि ग्रह के प्रभाव को भी नियंत्रित कर सकते हैं। सामान्यतया जब भी हनुमान आराधना व उपासना की बात आती है, लोगों के दिमाग में हनुमान चालीसा और सुन्दरकाण्ड के पाठ की याद आती है। यह सबसे अधिक प्रचलित पाठ हैं जिनके प्रभाव भी दीखते हैं। हनुमान की कृपा प्राप्ति और उनके द्वारा कष्टों के निदान के लिए अनेक उपाय और पाठ इनके अतिरिक्त भी बनाए गए हैं जो भिन्न भिन्न समस्याओं में लोगों द्वारा प्रयोग होते हैं। इन्ही पाठों में दो पाठ ऐसे हैं जो अत्यधिक तीव्र प्रभावी हैं। यह पाठ बजरंग बाण और हनुमान बाहुक के हैं।
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    बजरंग बाण है तो हनुमान चालीसा जैसा ही पाठ किन्तु यह हनुमान चालीसा से अधिक प्रभावी है। शत्रु बाधा, तांत्रिक अभिचार, किया कराया, भूत-प्रेत, ग्रह दोष आदि के लिए यह बाण की तरह काम करता है।
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    इसीलिए इसका नाम बजरंग बाण है। बजरंग बाण चौपाइयों पर आधारित पाठ है किन्तु इसकी सफलता इसके शपथ में है। इसमें देवता को शपथ दी जाती है की वह पाठ कर्ता की समस्या दूर करे। यह शपथ की प्रक्रिया शाबर मंत्र जैसी है। जिसके कारण बजरंग बाण की क्रिया प्रणाली बिलकुल भिन्न हो जाती है। वास्तव में जब व्यक्ति शपथ देता है भगवान् को तो भगवान् शपथ के अधीन हो न हो, व्यक्ति जरुर गहरे से भगवान् से जुड़ जाता है और प्रबल आत्मविश्वास, आत्मबल उत्पन्न होता है कि अब तो समस्या जरुर हटेगी क्योंकि भगवान् को हमने शपथ दिया है। तीव्र आंतरिक आवेग उत्पन्न होता है और जितनी भी आंतरिक शक्ति होती है व्यक्ति की उस समस्या के पीछे लग जाती है, इस कारण सफलता बढ़ जाती है। कुछ ऐसा ही शाबर मन्त्रों के साथ होता है। इसके साथ ही पृथ्वी की सतह पर क्रियाशील अंग देवता और सहायक शक्तियाँ उस व्यक्ति के साथ जुड़ उसकी सहायता करने का प्रयत्न करती हैं। यहाँ यह अवश्य ध्यान देने की बात है कि जब देवता को शपथ दी जाए तो बहुत सतर्कता और सावधानी की आवश्यकता हो जाती है, क्योंकि फिर गलतियाँ क्षमा नहीं होती।
    .जब आप देवता को मजबूर करने का प्रयत्न करते हैं तब आपको भी नियंत्रित रहना होता है अन्यथा देवता की ऊर्जा तीव्र प्रतिक्रिया कर सकती है।
    .बहुत से लोग जो वैदिक हैं, सनातन पद्धति से जुड़े हैं वह इस शपथ की प्रक्रिया को, शपथ देने को अच्छा नहीं मानते, किन्तु यह पाठ गोस्वामी तुलसीदास के समय बनाया गया है जो यह प्रकट करता है की उस समय सामाजिक विक्षोभ की स्थिति में जब सामान्य पाठ, मंत्र आदि काम नहीं कर रहे थे तब शाबर मंत्र काम कर रहे थे, अतः यह उस पद्धति पर बनाया गया। शाबर मन्त्रों में तो किसी भी देवता को आन दी जा सकती है, शपथ दी जा सकती है। इसकी एक विशेष अलग कार्यप्रणाली होती है। इसी आधार पर हनुमान की शक्ति को अधिकतम पाने के लिए बजरंग बाण में शपथ का प्रयोग किया गया। यह पद्धति काम करती है और इसके अच्छे परिणाम भी मिलते हैं बस साधक खुद को नियंत्रित, संतुलित और एकाग्र रखे। जैसे की शाबर मन्त्रों में होता है की इनसे पृथ्वी की सतह पर क्रियाशील शक्तियाँ प्रभावित होती हैं वैसा ही बजरंग बाण में भी होता है की पृथ्वी की सतह पर क्रियाशील धनात्मक ऊर्जा से संचालित शक्तियाँ साधक की सहायता करने लगती है ।

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