Header Ads

ad728
  • Breaking News

    प्रेतों का भोजन क्या होता है !आचार्य विनोद जी महाराज

    गोला गोरखपुर! (बांसगांव संदेश) 
    भागवत कथा के प्रकांड विद्वान आचार्य विनोद जी महाराज ने एक बिशेषचर्चा में पुराणों के अनुसार प्रेतों का भोजन क्या होता है बिस्तार पूर्वक बताते हुए कहा कि महर्षिगौतम ने प्रेतों से पूछा कि संसार में कोई भी प्राणी बिना भोजन के नहीं रहते -- अतः बताओ , तुम लोग क्या आहार करते हो।प्रेतों ने कहा --
    अप्रक्षालितपादस्तु यो भुङ्क्ते दक्षिणामुखः ।
    यो वेष्टितशिरा भुङ्क्ते प्रेता भुञ्जन्ति नित्यशः ।। ! जहाँ भोजन के समय आपस में कलह होने लगता है - वहाँ उस अन्न के रस को हम ही खाते हैं ।जहाँ मनुष्य बिना लिपी - पुती ( पोछा आदि से साफ हुई ) धरती पर खाते हैं - जहाँ ब्राह्मण शौचाचार से भ्रष्ट होते हैं वहाँ हम को भोजन मिलता है --जो पैर धोये बिना खाता है  - और जो दक्षिण की ओर मुँह करके भोजन करता है-- अथवा जो सिर पर वस्त्र लपेट कर भोजन करता है - उसके उस अन्न को सदा हम प्रेत ही खाते हैं --जहाँ रजस्वला स्त्री - चाण्डाल  - और सुअर श्राद्ध के अन्न पर दृष्टि डाल देते हैं  - वह अन्न पितरों का नहीं हम प्रेतों का ही भोजन होता है --
              जिस घर में सदा जूठन पडा रहे - निरन्तर कलह होता रहे - और बलिविश्वैदैव न किया जाता हो - वहाँ हम प्रेत लोग भोजन करते हैं  ।
                कैसे घरों में तुम्हारा प्रवेश होता है - यह बात मुझे सत्य - सत्य बताओ ।प्रेत बोले :--- ब्राह्मण  ! जिस घर में बलिवैश्वदेव होने से धुएं की बत्ती उडती दिखाई देती है  - उसमें हम प्रवेश नहीं कर पाते ---जिस घर में सवेरे चौका लग जाता है  - तथा वेद मंत्रों की ध्वनि होती रहती है- वहाँ की किसी वस्तु पर हमारा अधिकार नहीं होता ।

    गौतम ने पूछा कि किस कर्म के परिणाम में मनुष्य प्रेत भाव को प्राप्त होता है प्रेत बोले :--जो धरोहर हडप लेते हैं  - जुठे मुँह यात्रा करते हैं  - गाय और ब्राह्मण की हत्या करने वाले हैं  वे प्रेत योनि को प्राप्त होते हैं ।
         चुगली करने वाले -झूठी गवाही देने वाले - न्याय के पक्ष में नहीं रहने वाले  - वे मरने पर प्रेत होते हैं ।
         सूर्य की ओर मुँह करके थूक - खकार - और मल - मूत्र त्याग करते हैं  - वे प्रेत शरीर प्राप्त करके दीर्घकाल तक उसी में स्थित रहते हैं  --गौ - ब्राह्मण  तथा रोगी को जब कुछ दिया जाता हो  - उस समय जो न देने की सलाह देते हैं  - वे भी प्रेत ही होते हैं  - यदि शूद्र का अन्न पेट में रहते हुए ब्राह्मण की मृत्यु हो जाये तो वह अत्यंत भयंकर प्रेत होता है -- -- जो अमावस्या की तिथि में हल में बैलों को जोतता है वह मनुष्य प्रेत बनता है  ।
            जो विश्वासघाती - ब्रह्महत्यारा - स्त्रीवध करने वाला - गोघाती - गुरूघाती - और पितृहत्या करने वाला है वह मनुष्य भी प्रेत होता है।  मरने पर जिसके १६ एकोदिष्ट श्राद्ध नहीं किये गये हैं  - उसको भी प्रेतयोनि प्राप्त होती है ।

    कोई टिप्पणी नहीं

    thanks for comment...

    Post Top Ad

    ad728

    Post Bottom Ad

    ad728
    ad728