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    राम रामायण और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की महिमा ;आचार्य विनोद जी महाराज



    गोलाबाजार गोरखपुर 18 सितम्बर।
    राम कथा के मर्मज्ञ विद्वान आचार्य विनोद जी महाराज ने राम  रामायण और भगवान श्रीराम पर बिस्तृत चर्चा करते हुए कहा कि विश्व ब्रह्माण्ड के समस्त जीव है भले ही वे ज्ञानी है या मूर्ख हो। विश्व ब्रह्माण्ड में परमात्मा की शक्तियाँ से बना हुआ जीव अपनी औकात को भूल कर धर्म को भी भूल गया है परमात्म को तो जान ही नही सकता है।
           इस विश्व ब्रह्माण्ड मे परमात्मा को छोड़कर समस्त चराचर जगत परमात्मा की शक्तियों द्वारा निर्मित होता है परमात्म की शक्तियों के द्वारा पलता है और परमात्मा के द्वारा ही विनाश होता हैै ।
           परमब्रह्म परमात्मा की कृपा से विश्व ब्रह्माण्ड की रचना पाँचों तत्वों के तत्वयोग तत्वक्रिया द्वारा हुई यह सब परब्रह्म की योगमाया है इस विश्व ब्रह्माण्ड में ये पाँचों तत्व जो कि छिति, जल, पावक, गगन, समीर पाँच तत्वों से रचे हुये इस ब्रह्माण्ड में सात द्वीप नौखण्ड तीन   लोक, चौदह भुवन एवं अनंत ब्रह्माण्ड है । इस विश्व ब्रह्माण्ड को बनाये रखने वाली वह सर्वव्यापक शक्ति जो परमात्मा की अलौकिक शक्ति है । विश्व मे व्यापक है जो सब मे समा गई है वह शक्ति शक्तियोग क्रिया कर विश्व की सृष्टि पालन एवं सहंार का कार्य करती रहती है । इस विश्व ब्रह्माण्ड को बनाये रखने वाली शक्ति त्रिगुणात्मक है जो कि रजोगुण, अजोगुण और तमोगुण के रूप में सर्व व्यापक है रजोगुण सभी शक्ति क्रिया द्वारा विश्व की दृष्यमान या अदृष्यमान सभी कार्य निर्माण होता है। और अजोगुण से सभी का सभी कर्म बनी रहती है । तथा तमोगुण से सभी विश्वब्रह्माण्ड का विनाश होता है विश्व ब्रह्माण्ड सभी के समस्त जीव
    जन्तु, पशुपक्षी नाग किन्नर देवता भी परमात्मा से निर्मित होते है । और परमात्मा की शक्तियों से बने रहते है तथा परमात्मा की क्रिया शक्तियों के द्वारा ही विनाश होते है। इन सभी कार्य क्रिया में परमात्म ही किसी न किसी माध्यम का सहार लेकर विश्व ब्रह्माण्ड की रचना करते है अर्थात बनाते है पालते है और विनाश कर फिर से सृष्टि चक्र की रचना करते है ।
           यह सब परमात्मा की अलौकिक शक्तिया ही है । यह विश्व ब्रह्माण्ड प्रकृति के आधार पर चलता है प्रकृति अर्थात नियमों के  आधार पर बनता है और नियमों के आधार पर पलता है तथा नियमों के खण्डन होने पर विनाश हो जाता है।
           आगे उन्होंने कहा कि परमपिता परमात्मा जो कि सब मे समाकर सर्वव्यापक है वे शक्ति स्वरूप परमेश्वर ब्रह्म है जो विश्व ब्रह्माण्ड के अणु अणु में समाये हुये है।
           जिस प्रकार लकड़ी मे अग्नि छिपी रहती है यदि लकड़ी को लकड़ी से घिसा जाता है तो लकड़ी से आग उत्पन्न हो जाती है अर्थात लकड़ी के अन्दर अग्नि सूक्ष्म रूप मे छिपी रहती है।
    इसी तरह परमब्रह्म परमात्मा विश्व ब्रह्माण्ड मे सर्व व्यापक है । जब इस विश्व ब्रह्माण्ड मे प्रकृति अर्थात नियम टूटता है तो वे परमात्मा अपने भक्तो से उस विधान को बनवाते है
    और यदि भक्त बनाने मे परेशान होता है तो वे परमपिता परमात्मा भक्तो के संग लीला करते हुये विधि के विधान को यथाविधि करने के लिए अवतार लेते है उन परमात्मा की अवतार लीला ही विधान बन जाती है, परमात्मा की लीला कथा का गुणगान कर मनुष्य जीव आत्मा परमात्मा की भक्ति कर शक्तिया प्राप्त करता है ।
           वे परमपिता परमात्मा विधि के विधान को बनाये रखने के लिए अलौकिक लीला करते हुये बार बार प्रकट होते है और   विधि के विधान को सही करते है इससे भक्तो का उद्धार हो जाता है और दुष्टो का विनाश हो जाता है । उन परमात्मा की लीला चरत्रि और अलौकिक महिमा के गुणानुवाद से बने हुये नियमों को छन्दोबद कर मनुष्य जीव आत्मा वेद, पुराण, गीता, रामायण या धर्म ग्रन्थ कहत है । जिस तरह परब्रह्म को छोड़कर स्त्री विश्व ब्रह्माण्ड परमात्मा की शक्ति से निर्मित है वे परमेश्वर प्रकट होकर विलीन होते है जैसे माचिस की सींक को माचिस की डिब्बी के रोगन से घिसने पर आग उत्पन्न हो जाता है और अन्त मे वह आग फिर से आकाश मे विलीन हो जाती है । वह जहा थी वही चली जाती है । इसी तरह परमात्मा विधि के विधान को सही करने के लिए लीला करते हुये प्रकट होते है और विधि के     विधान को सही करके विलीन हो जाते है । उन की अलौकिक लीला से प्रकट होने और विधि के विधान को सही करने की अलौकिक महिमा का वर्णन कर मनुष्य जीव आत्मा उन परमपिता   परमात्मा का गुणानुवाद
    करता है और परमात्मा की कृपा प्राप्त कर जीवन के जन्म और मरण के चक्र से दूर जाता है। अर्थात परमात्मा से बनी हुई जीव आत्मा परमात्मा मे ही समा जाती है फिर न कभी जन्म होती है और न कभी मरती है अर्थात जन्म/मरण के चक्र से मुक्ति हो जाती है ऐसी जीव की क्रिया को मुक्ति कहते है ।
           मनुष्य जन्म लेता है तो उसकी मौत होती है मुक्ति नही मुक्ति तो परमात्मा की अन्नय भक्ति कृपा से प्राप्त होती है । परमात्मा कहते है ।

    निर्मल मन जन सो मोहि पावा।
    मोह कपट छल छिद्र न भावा ।।

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