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    श्रीमद् भागवत कथा

    गोरखपुरश्रीमद भागवत कथा। देख सुदामा की दीन दशा करुणा करके करुणा निधि रोये। सहजनवा पिपरौली गोरखपुर बांसगांव संदेश। ब्लॉक के ग्रामसभा भीटी खोरिया के रामलीला मैदान में चल रहे श्रीमदभागवत कथा के छठवें दिन व्यास पीठ से आचार्य सौरभ कृष्ण शास्त्री ने कृष्ण सुदामा मित्रता का रसपान भक्तों को कराया। आचार्य ने कहा कि कृष्ण और सुदामा में बचपन से ही गहरी मित्रता थी। धीरे धीरे समय के साथ कृष्ण द्वारिका के राजा बने और सुदामा बेचारे गरीब ही रहे। गरीबी के मारे सुदामा के बच्चे भूख से रो रहे थे। यह ह्रदय विदारक दृश्य सुदामा की पत्नी से देखा नही गया और बोलीं आप कहते हैं कि द्वारका के राजा कृष्ण आपके मित्र हैं, तो एक बार क्यों नहीं उनके पास चले जाते ? पत्नी की बात पर सुदामा अपने बाल सखा कृष्ण से मिलने पड़ोस से चार मुट्ठी चावल उपहार स्वरूप लेकर मिलने निकल गए। सुदामा द्वारका पहुंचकर पहरेदारों से कहा कि हम आपके राजा कृष्ण के हम मित्र है। हमें उनसे मिलना है। तब द्वारपालों ने जाकर कृष्ण को बताया कोई गरीब उनसे मिलने आया है। वह अपना नाम सुदामा बता रहा है। द्वारपाल के मुंह से "सु" शब्द सुनते ही कृष्ण नंगे पांव दौड़ते हुए सुदामा से जा मिले। यह दृश्य देखकर सभी लोग हैरान हो गए। मिलने की खुशी में दोनों के आंखों से आसुओं की धारा बहने लगी। आगे कृष्ण ने सुदामा से पूछा कि भाभी ने उनके लिए क्या भेजा है? सुदामा चावल की पोटली छुपाने लगे। ऐसा देखकर कृष्ण ने उनसे चावल की पोटली छीनकर खाने लगे। सुदामा को विदा करते वक्त कृष्ण उन्हें कुछ दूर तक छोड़ने आए।सुदामा जब अपने घर लौटने लगे तो सोचा कि कुछ मिला नही। यही सोचते विचारते अपने गांव पहुंचकर देखा तो झोपड़ी की जगह एक आलीशान महल बन गया था। पत्नी भी महारानी की तरह लग रही थी। कथा के अंत में आचार्य ने कहा कि मित्रता में स्वार्थ के बजाय परमार्थ की भावना होनी चाहिए।कथा में आयोजक मार्कण्डेय पांडेय, आलोक कुमार पांडेय ऊर्फ सोनू, राणा प्रताप सिंह, राममनोहर मिश्रा, पंकज, आशीष, अजय सहित सैकड़ों श्रोता उपस्थित रहे।

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