उत्कृष्ट व्यक्तितत्व ही है इस युग की सबसे बड़ी आवश्यकता ! आचार्य श्रीराम शर्मा
गोला गोरखपुर। !बांसगांव संदेश!
इस युग की सबसे बड़ी विडंबना एक ही है कि साधन तो बढ़ते गये किंतु उनका उपयोग करने वाली अंत:चेतना का स्तर ऊँचा उठने के स्थान पर उलटा गिरता चला गया ।* फलत: बढ़ी हुई समृद्धि, उत्थान के लिए प्रयुक्त न हो सकी । आंतरिक भ्रष्टता ने दुष्टता की प्रवृत्तियाँ उत्पन्न की और उनके फलस्वरूप विपत्तियों की सर्वनाशी घटाएँ घिर आईं समृद्धि" के साथ "शालीनता" का गुथा रहना आवश्यक है अन्यथा प्रगति के नाम पर किया गया श्रम दुर्गति की विभीषिकाएं ही उत्पन्न करेगा ।"व्यक्तित्व की उत्कृष्टता" ही मनुष्य की सबसे बड़ी सफलता और संपन्नता है, उसी के आधार पर मनुष्य सुसंस्कृत बनता है ।* आत्मसंतोष, श्रद्धा-सम्मान, जन सहयोग एवं दैवी अनुग्रह प्राप्त कर सकने में सफल होता है । *यही वह "तत्त्व" है, जिसके सहारे भौतिक जीवन में बढ़ी-चढ़ी उपलब्धियाँ करतल गत होती हैं ।* साधनों का सही उपार्जन और सही उपयोग भी उसी आधार पर बन पड़ता है । *इसके अभाव में इंद्र और कुबेर जैसे सुविधा-साधन होते हुए भी मनुष्य खिन्न और विपन्न ही बना रहेगा । स्वयं उद्विग्न रहेगा, दुःख सहेगा और समीपवर्ती लोगों के लिए संकट एवं विक्षोभ उत्पन्न करता रहेगा ।
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