जन्म जन्म भारत की माँँ रहूं कहते-कहते भर आई कैकेई की आंखें
जन्म-जन्म भारत की मां रहूं, कहते-कहते भर आईं कैकई की आंखें - धीरज कृष्ण शास्त्री
सहजनवा गोरखपुर बांसगांव संदेश ।कैकेई ने जब राम के वियोग में लोगों को अत्यंत दुखी और राम- सीता को बलकल बेस में वृक्ष के नीचे बैठे देखा, तो कलेजा कांप उठा । फूट-फूट कर रोने लगी । लाचार कैकेई को देखकर राम कहा- क्या हुआ मां, तो उसने कहा राम, तुम मुझ अभागन पर एक कृपा करोगे ।
राम ने कहा माता क्या बात करती हैं, आपको क्या चाहिेए ? इतना कहते ही हृदय का उदगार फूट पड़ा और कहा कि- हम हर जन्म में भारत की मां रहो यही आशीर्वाद दीजिए आप।
उक्त- बातें वृंदावन धाम से पधारे धीरज कृष्ण शास्त्री ने कही। वह विकासखंड पाली के ग्राम पनिका में चल रहे श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन व्यास पीठ से श्रद्धालुओं को कथा रसपान करा रहे थे । उन्होंने कहा कि भारत भारत जैसा महापुरुष कभी-कभी धरती पर आते हैं। हर पुरुष की परीक्षा विपत्ति काल में ही होती है। जो गलती भारत ने की ही नहीं थी, उसका प्रायश्चित कर रहे थे ।
कथा व्यास ने कहा कि- भ्रात्रि प्रेम का ऐसा दूसरा उदाहरण भारतीय ग्रंथ के अतिरिक्त, दुनियां में कहीं नहीं मिलता है। जिस गलती को भारत ने किया ही नहीं था, उसका भी प्रायस्चित कर रहे थे। गलती तो उनकी मां की थी।
भरद्वाज मुनि से भारत ने पूछा कि- हे महात्मन ! भैया राम हमें क्या हमें क्षमा कर देंगे, यह कहते-कहते आंखें भर आईं। मुनि ने कहा कि- भरत
प्रसन्न चित्त राम ने जब स्वस्तिवाचन में पुरोहितों से सुना- आर्यावर्ते भरतखंडे, तो उनके हाथों से जल का पात्र छूट गया और मेरा भरत,मेरा भरत कहते-कहते फूट-फूट कर रोने लगे । सभा की आंखें नम हो गईं।
शास्त्री ने कहा कि- भरत जैसे महात्मा की मां होना छोटी बात नहीं, बहुत सौभाग्य की बात है । उक्त- उक्त- अवसर पर हरिराम पांडेय, सत्यवान, अंगद, परमेश्वर, बालई बाबा, परमेश्वर चौधरी, सीताराम चौरसिया, दयाशंकर चौरसिया, पंकज चौधरी,सत्यदेव, बलराम पांडेय, जगदीश पांडेय समेत कई लोग मौजूद थे।
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