उत्कृष्ट इच्छाओ को संकल्प में बदलिए! आचार्यश्रीराम शर्मा जी
क्षमता रहते हुए भी नीरस जीवन जीने का मुख्य कारण है - आकांक्षाओं का अवसाद
, "प्रगति के लिए उत्साह का अभाव" और आशाजनक भविष्य की उपेक्षा" ।* कुछ योजना ही सामने न हो तो प्रयत्न किस प्रकार संभव होंगे और प्रयत्नों के बिना सफलता का आनंद कैसे मिलेगा । *योजना बनाने के लिए कुछ बनने और कुछ करने की इच्छा होनी चाहिए ।* यह इच्छा भी मात्र कल्पना-जल्पना बनकर रह जाए तो निरर्थक है । *"इच्छा" जब उत्कट होती है, तब उसे "आकांक्षा" कहते हैं और "आकांक्षा" की पूर्ति के लिए अपने सारे "मनोयोग" और "पुरुषार्थ" को नियोजित करने का नाम है - "संकल्प" ।* जब प्रगति के पथ पर संकल्पपूर्वक बढ़ा जाता है तो प्रतिकूलता अनुकूलता में बदलती है और अंधेरे में प्रकाश उत्पन्न होता है ।आरंभ में जो कठिन लगती थी, वह उतनी ही सरल होती जाती है ।
श्रुति कहती है *"संकल्प मयो sयं पुरुष:" अर्थात *"व्यक्ति संकल्पों की प्रतिमूर्ति है, उसके पुरुषार्थ की सार्थकता संकल्प की उत्कृष्टता पर निर्भर है ।* जब अभीष्ट प्रयोजन के लिए साहसपूर्वक कमर बाँध ली जाती है और निश्चय कर लिया जाता है कि कठिनाइयों का धैर्य और साहसपूर्वक सामना करते हुए उनके निराकरण के लिए तत्पर रहा जाएगा तो फिर वह निष्ठा भरी मनुष्य की सामर्थ्य देखते ही बनती है । *मनुष्य की "संकल्पशक्ति" संसार का सबसे बड़ा चमत्कार है, उसके आधार पर छोटे स्तर पर खड़ा हुआ व्यक्ति ऊँचे से ऊँचे स्थान तक पहुँच सकता है ।
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