साधना से साधन की प्राप्ति होती है- राघव ऋषि
साधना से साधन की प्राप्ति होती है - राघव ऋषि
सहजनवा / गोरखपुर बांसगांव सन्देश। जीव यदि तन्मय होकर लक्ष्मी नारायण भगवान की साधना करता है तो उसे सभी भौतिक सुख साधनों की प्राप्ति होती है। उक्त उद्गार सहजनवा सेरेमनी मैरिज हाल में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के कथावाचक राघव ऋषि ने मौजूद श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कही । उन्होंने कहा कि वेद की ऋचाएं कन्या बनकर प्रभु की सेवा करने आई थी। वेद के तीन काण्ड व एक लाख मंत्र हैं । कर्मकांड में जिसमें 80 हजार मंत्र ब्रह्मचारी के लिए हैं ।उपासना कांड इसके 16 हजार मंत्र जो गृहस्थ के लिए हैं। भगवान ने 16 हजार उपासना रूपी वेद कि ऋचाओ से विवाह किया ।धर्म की मर्यादा में रहकर अर्थोपार्जन एवं गृहस्थ धर्म का पालन करना है।
सुदामा चरित्र की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि सुदामा अर्थात सुंदर रस्सी से बंधा हुआ। माता-पिता भाई पत्नी पुत्र आदि 10 रस्सीयो से जीव रूपी सुदामा बधा है। सुदामा जो गरीब थे। जो भगवान को देता नहीं वह गरीब होता है। सुदामा ज्ञानी थे। आजकल ज्ञान केवल अर्थोपार्जन का माध्यम रह गया है । ज्ञान का फल धन या प्रतिष्ठा से नहीं परमात्मा से मिलना है। सुदामा की पत्नी सुशीला महान पतिव्रता थी ।गरीब पति की निष्ठा से सेवा करने वाली पत्नी सुशीला।
पति पत्नी साथ साथ रह कर प्रभु सेवा करते रहे तो ऐसा गृहस्थ आश्रम सन्यास से भी श्रेष्ठ कहा गया है। सिंहासन पर बैठकर भगवान ने आंसुओं से सुदामा के चरणों को धोया । सुदामा पूर्व जन्म में केवट थे अतः प्रभु ने उनके चरणों को धोया । गरीब होना अपराध नहीं है परंतु गरीबी में प्रभु को भूल जाना अपराध है । सुदामा पोटली को संकोचवश छुपा रहे थे। भगवान मन में हंसते हैं कि इसने उस दिन चने छुपाए थे और आज तंदूल। जो मुझे देता नहीं उसे मैं भी कुछ नहीं देता । भगवान ने तन्दुल का प्राशन कर समस्त विश्व को अन्न दान का पूर्ण सुदामा को दिया ।परमात्मा जीव मात्र के निस्वार्थ में मित्र हैं । जीव का परम कर्तव्य है कि भगवान की सेवा और साधना करें ।निष्काम कर्म पाप को जला देता है ।इच्छा भक्ति में विघ्न करती है। इच्छा ही जीव के पूर्व जन्म का कारण है ।जीव को माया ने पकड़ रखा है। जो परमात्मा की जय जयकार करता है ।वह माया के बंधन से मुक्त हो जाता है। इस अवसर पर सौरव ऋषि ने अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो भजन सुनाया तो लोग मंत्रमुग्ध हो गए। इस दौरान मुख्य यजमान प्रकाश चंद त्रिपाठी एवं मुनि आगमन पांडेय अरविंद उपेंद्र दत्त शुक्ला अरविंद तिवारी महेश कसौधन हनुमान अग्रहरि राकेश दुबे महेश तिवारी नवीन तिवारी अशोक अग्रहरि भगीरथ पाठक , विष्णु सिंह, सुधाकर त्रिपाठी, विनोद पांडेय, अमरेंद्र सिंह, उपेंद्र त्रिपाठी, दीपक शुक्ल, सहित अनेक श्रद्धालु कथा कथा का रसपान किए।
पति पत्नी साथ साथ रह कर प्रभु सेवा करते रहे तो ऐसा गृहस्थ आश्रम सन्यास से भी श्रेष्ठ कहा गया है। सिंहासन पर बैठकर भगवान ने आंसुओं से सुदामा के चरणों को धोया । सुदामा पूर्व जन्म में केवट थे अतः प्रभु ने उनके चरणों को धोया । गरीब होना अपराध नहीं है परंतु गरीबी में प्रभु को भूल जाना अपराध है । सुदामा पोटली को संकोचवश छुपा रहे थे। भगवान मन में हंसते हैं कि इसने उस दिन चने छुपाए थे और आज तंदूल। जो मुझे देता नहीं उसे मैं भी कुछ नहीं देता । भगवान ने तन्दुल का प्राशन कर समस्त विश्व को अन्न दान का पूर्ण सुदामा को दिया ।परमात्मा जीव मात्र के निस्वार्थ में मित्र हैं । जीव का परम कर्तव्य है कि भगवान की सेवा और साधना करें ।निष्काम कर्म पाप को जला देता है ।इच्छा भक्ति में विघ्न करती है। इच्छा ही जीव के पूर्व जन्म का कारण है ।जीव को माया ने पकड़ रखा है। जो परमात्मा की जय जयकार करता है ।वह माया के बंधन से मुक्त हो जाता है। इस अवसर पर सौरव ऋषि ने अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो भजन सुनाया तो लोग मंत्रमुग्ध हो गए। इस दौरान मुख्य यजमान प्रकाश चंद त्रिपाठी एवं मुनि आगमन पांडेय अरविंद उपेंद्र दत्त शुक्ला अरविंद तिवारी महेश कसौधन हनुमान अग्रहरि राकेश दुबे महेश तिवारी नवीन तिवारी अशोक अग्रहरि भगीरथ पाठक , विष्णु सिंह, सुधाकर त्रिपाठी, विनोद पांडेय, अमरेंद्र सिंह, उपेंद्र त्रिपाठी, दीपक शुक्ल, सहित अनेक श्रद्धालु कथा कथा का रसपान किए।
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