66वां संत गाडगे बाबा का परिनिर्वाण दिवस मनाया गया
66वां संत गाडगे बाबा का परिनिर्वाण दिवस मनाया गया
गोरखपुर-बाबा साहब डॉ अंबेडकर पार्क हडहवा फाटक जटेपुर गोरखपुर में राष्ट्रीय अंबेडकर महासभा एवं बाबा साहब डॉ. अंबेडकर धोबी घाट जटेपुर गोरखपुर में 66 वां संत गाडगे बाबा का परिनिर्वाण दिवस मनाया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि- चंद्रिका प्रसाद भारती(एडवोकेट)राष्ट्रीय अध्यक्ष,राष्ट्रीय अंबेडकर महासभा एवं विशिष्ट अतिथि- इंजी. रामकुमार प्रदेश अध्यक्ष, राष्ट्रीय अंबेडकर महासभा तथा कार्यक्रम की अध्यक्षता चंडी प्रसाद बौद्ध ने की और संचालन विनोद कुमार जिला अध्यक्ष राष्ट्रीय अंबेडकर महासभा जनपद-गोरखपुर ने की। सर्वप्रथम तथागत बुद्ध एवं संत गाडगे बाबा एवं बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर के चित्र पर दीप प्रज्वलित एवं माल्यार्पण का कार्यक्रम मुख्य अतिथि और विशिष्ट अतिथि ने किया तत्पश्चात तीसरा पंचशील सामूहिक रूप से किया गया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए विशिष्ट अतिथि इंजीनियर रामकुमार प्रदेश अध्यक्ष राष्ट्रीय अंबेडकर महासभा ने कहा कि महाराज संत गाडगे बाबा ने
अंधविश्वास,पाखण्डवाद, मूर्तिपूजा और ब्राह्मणवाद पर डटकर विरोध करते हुए अछूतों/दलितो को हर हाल में शिक्षा प्राप्त करने और स्वच्छता अपनाने के लिये जीवन भर संधर्ष किया।
महाराष्ट्र के दलित- बहुजन परंपरा की एक महत्वपूर्ण कड़ी गाडगे बाबा हैं। गाडगे बाबा का जन्म 23 फरवरी- 1876 ई. को महाराष्ट्र के अमरावती जिले की तहसील अंजन गांव सुरजी के शेगांव में कहीं सछूत और कहीं अछूत समझी जाने वाली धोबी जाति के एक गरीब परिवार में हुआ था उनकी माता का नाम सखूबाई और पिता का नाम झिंगराजी था।
गाडगे का पूरा नाम देवीदास डेबूजी झिंगराजी जाड़ोकर था। घर में उनके माता-पिता उन्हें प्यार से ‘डेबू जी’ कहते थे, बचपन में उनके पिता की मृत्यु हो गई। उन्हें बचपन से अपने मामा के घर गुजरना पड़ा धोबी समाज और अन्य दलित- बहुजनों की अपमानजनक हालात अशिक्षा और गरीबी ने उन्हें इतना बेचैन किया कि वे घर- परिवार छोड़कर समाज की सेवा के लिए निकल पड़े। मुख्य अतिथि- चंद्रिका प्रसाद भारती(एडवोकेट) राष्ट्रीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय अम्बेडकर महासभा ने कहा कि संत गाडगे बाबा सच्चे निष्काम कर्मयोगी थे।महाराष्ट्र के कोने- कोने में अनेक धर्मशालाएँ, विद्यालय, चिकित्सालय तथा छात्रावासों का उन्होंने निर्माण कराया। यह सब उन्होंने भीख माँग- माँगकर बनावाया किंतु अपने सारे जीवन में इस महापुरुष ने अपने लिए एक कुटिया तक नहीं बनवाई। धर्मशालाओं के बरामदे या आसपास के किसी वृक्ष के नीचे ही अपनी सारी जिंदगी बिता दी। वह एक लकड़ी फटी -पुरानी चादर और मिट्टी का एक बर्तन जो खाने-पीने के साथ ही साथ अन्धविश्वास उन्मूलन में कीर्तन के समय ढपली का काम करता था। यही उनकी संपत्ति थी इसी से उन्हें महाराष्ट्र के भिन्न-भिन्न भागों में कहीं मिट्टी के बर्तन वाले गाडगे बाबा व कहीं चीथड़े-गोदड़े वाले बाबा के नाम से पुकारा जाता था।
गाडगे बाबा के जीवन का एकमात्र ध्येय था लोकसेवा। दीन- दुखियों तथा उपेक्षितों की सेवा को ही वे ईश्वर भक्ति मानते थे। धार्मिक आडंबरों का उन्होंने प्रखर विरोध किया उनका विश्वास था कि ईश्वर न तो तीर्थ स्थानों में है और न मंदिरों में और न मूर्तियों में। दरिद्र नारायण के रूप में ईश्वर मानव समाज में विद्यमान है। मनुष्य को चाहिए कि वह इस मानव को पहचाने और उसकी तन-मन-धन से सेवा करे। भूखों को भोजन, प्यासे को पानी, नंगे को वस्त्र, अनपढ़ को शिक्षा, बेकार को काम, निराश को ढाढस और मूक जीवों को अभय प्रदान करना ही भगवान की सच्ची सेवा है। विनोद कुमार जिला अध्यक्ष, राष्ट्रीय अंबेडकर महासभा जिला -गोरखपुर ने कहा कि
संत गाडगे ने 12 बड़ी-बड़ी धर्मशालाएँ इसीलिए स्थापित की थीं कि गरीब यात्रियों को वहाँ मुफ्त में ठहरने का स्थान मिल सके। नासिक में बनी उनकी विशाल धर्मशाला में 500 यात्री एक साथ ठहर सकते हैं। वहाँ यात्रियों को बर्तन आदि भी निःशुल्क देने की व्यवस्था है। दरिद्र नारायण के लिए वे प्रतिवर्ष अनेक बड़े-बड़े अन्नक्षेत्र में भी आयोजन किया करते थे। जिनमें अंधे, लंगड़े तथा अन्य अपाहिजों को कम्बल, बर्तन आदि भी बाँटे जाते थे। यद्यपि बाबा अनपढ़ थे, किंतु बड़े बुद्धिवादी थे। पिता की मौत हो जाने से उन्हें बचपन से अपने नाना के यहाँ रहना पड़ा था। वहाँ उन्हें गायें चराने और खेती का काम करना पड़ा था। सन् 1905 से 1917 तक वे अज्ञातवास पर रहे। इसी बीच उन्होंने जीवन को बहुत नजदीक से देखा। अंधविश्वासों, बाह्य आडंबरों, रूढ़ियों तथा सामाजिक कुरीतियों एवं दुर्व्यसनों से समाज को कितनी भयंकर हानि हो सकती है, इसका उन्हें भलीभाँति अनुभव हुआ। इसी कारण इनका उन्होंने घोर विरोध किया।
वे कहा करते थे कि तीर्थों में पंडे, पुजारी सब भ्रष्टाचारी रहते हैं। धर्म के नाम पर होने वाली पशुबलि के भी वे विरोधी थे। यही नहीं, नशाखोरी, छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों तथा मजदूरों व किसानों के शोषण के भी वे प्रबल विरोधी थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे चण्डी प्रसाद ने कहा कि,संत-महात्माओं के चरण छूने की प्रथा आज भी प्रचलित है,पर संत गाडगे इसके प्रबल विरोधी थे। संत गाडगे द्वारा स्थापित " गाडगे महाराज मिशन " आज भी 12 धर्मशालाओं कई कॉलेज व स्कूलों,छात्रावासों आदि संस्थाओं के संचालन तथा समाज सेवा में रत है। संत गाडगे बाबा, बाबा साहब डॉ अम्बेडकर जी का बहुत सम्मान करते थे, उनमें उनकी अपार श्रद्धा थी कहा जाता है कि जब बाबा साहब डॉ अम्बेडकर जी के अकस्मात् निधन का समाचार उन्हें मिला तो उन्हें इतना आघात पहुंचा कि उन्होंने खाना पीना सब छोड़ दिया और अंत 20 दिसम्बर1956 को निर्वाण को प्राप्त हुए।सूर्यभान,गणेश प्रसाद,विनोद कुमार, दिलीप कुमार, मोनू,प्रेम,रामकिशुन,राजेश, जुगुल,महंत चौधरी आदि लोग उपस्थित रहे।
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