पत्रकारों दलाली छोड़ो, दलालों पत्रकारिता छोड़ो-रवीश
*पत्रकारों दलाली छोड़ो, दलालों पत्रकारिता छोड़ो*
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*पत्रकारों दलाली छोड़ो, दलालों पत्रकारिता छोड़ो*
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*लोकतंत्र में पत्रकारिता या चाटुकारिता...!*
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*कहां* गई निष्पक्ष पत्रकारिता? एनडी टीवी पर प्राइम टाइम में अब नहीं दिखेंगे *रवीश कुमार*। मैं कई सालों से सक्रिय पत्रकारिता में रूचि रखता हूं। आज के दो दशक पूर्व तक पत्रकारिता का सही मतलब था। लेकिन अब... तब और अब में इतना फासला आया कैसे? पत्रकारों पर मालिकों का अंकुश और गोदी मीडिया का बढ़ता प्रभुत्व...
पत्रकार होने का मतलब यह नहीं होता कि आपको कुछ कहने और लिखने का लाइसेंस मिल गया है। भारत के एक प्रतिष्ठित और चर्चित चैनल के रिपोर्टर चिल्ला- चिल्लाकर गला फाड़ते हैं और हल्ला मचाते हैं। एक पत्रकार को अपने कर्तव्य से दिखाने के लिए चैनल तो खरीद लिया जाता है, लेकिन पत्रकार नहीं बिकता और इस्तीफा दे देता है, यही वक्त का तकाजा और नैतिकता भी है। कमोवेश इस रास्ते पर तमाम पत्रकार चले हैं, मैं भी उसी रास्ते का अनुशरण करता हूं।... मैं तो यही कहूंगा... कि पत्रकारों दलाली छोड़ो, दलालों पत्रकारिता छोड़ो
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