मांडवी की कर्तव्य परायणता पति भरत से कम नहीं थी आचार्य संतोष शास्त्री
मांडवी की कर्तव्य परायणता पति भारत से कम नहीं थी- आचार्य संतोष शास्त्री
सहजनवा गोरखपुर बांसगांव संदेश खड़ाऊ लेकर वन से लौटे भारत और अयोध्या वासियों के मन की दशा का वर्णन करना संभव नहीं है। राज परिवार को ढाढस बनाने का कार्य सिर्फ और सिर्फ बहू मांडवी पर थी, जो पूरी बखूबी से निर्वाह कर रही थी। उनकी कर्तव्य परायणता देखकर माता कौशल्या का वात्सल्यता से भर गया।
उक्त- बातें वृंदावन धाम से पधारे आचार्य संतोष शास्त्री ने कही। वहां विकासखंड पाली के ग्राम सभा पनिका में चल रहे श्री राम मानस महायज्ञ के चौथे दिन व्यासपीठ से श्रद्धालुओं को कथा रसपान करा रहे थे। उन्होंने कहा कि-
सूनी पड़ी अयोध्या में किसी को नींद नहीं आ रही थीं, सभी अपने विस्तार पर पड़े दुखी नजरों से चांदनी रात को निहार रहे थे। माता कौशल्या ने देखा कि राजमहल की छत से आंगन में कोई छाया पड़ रही है देखा,तो मांडवी अकेले टहल रही थी। पूछा, बेटी तू अभी सोई नहीं ? काफी रात चली गयी है, भरत अपने कमरे में अकेला होगा, यूं चली जाय। मांडवी की आंखें छलक आईं बोली, मां वह अपने कमरे में नहीं है । नंदी गांव चले गए । उनकी कुटिया दिख रही है और दीपक जल रहा है, वह शांत हो जाय, तो कमरे में जाऊं। माता कौशल्या की आंखें भर आईं अंक में भरकर बहुत दुलार किया और आंसू पोंछते हुए कहा कि जिसके पास ऐसी बहू-बेटे हों, विपत्ति उसकी कुछ नहीं कर सकती ।
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