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    अमीरुल मोमिनीन हज़रत अबू बक्र का उर्स-ए-पाक अकीदत से मनाया गया

    अमीरुल मोमिनीन हज़रत अबू बक्र का उर्स-ए-पाक अकीदत से मनाया गया 




    गोरखपुर। रविवार को दीन-ए-इस्लाम के पहले खलीफ़ा अमीरुल मोमिनीन हज़रत सैयदना अबू बक्र सिद्दीक़े अकबर रदियल्लाहु अन्हु का उर्स-ए-पाक  मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती चौक, दरगाह अली बहादुर शाह रहमतनगर, सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफ़रा बाज़ार, सुब्हानिया जामा मस्जिद तकिया कवलदह, मकतब इस्लामियात जोहरा मस्जिद बड़गो, शाही जामा मस्जिद तकिया कवलदह, गाजी मस्जिद गाजी रौजा व घरों में अकीदत व एहतराम के साथ मनाया गया। हज़रत अबू बक्र की ज़िंदगी के हर पहलू पर उलमा किराम व मकतब के  बच्चों ने रोशनी डाली। कुल शरीफ की रस्म अदा की गई। फातिहा ख़्वानी हुई। क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत की गई। नात-ए-पाक व मनकबत पेश हुई।

    मरकजी मदीना जामा मस्जिद में मुफ्ती मेराज अहमद क़ादरी ने कहा कि मुसलमानों के पहले ख़लीफा हज़रत अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु अल्लाह व रसूल के रास्ते में दिल खोल कर खर्च करते थे। आपने बेशुमार गुलामों को खरीद कर आज़ाद किया। जिनमें पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुअज़्ज़िन हज़रत सैयदना बिलाल भी शामिल हैं। 

    सब्जपोश हाउस मस्जिद में हाफिज रहमत अली निजामी व  मुफ्ती मो. अज़हर शम्सी ने कहा कि हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ अरब के मशहूर और अमीर दौलतमंद लोगों में शुमार किए जाते थे। दीन-ए-इस्लाम में दाखिल होने के वक़्त आपका शुमार मक्का के बड़े बिजनेसमैन में होता था। आपने सारी दौलत अल्लाह के रास्ते में लगा दी। यहां तक कि इंतक़ाल के वक़्त कोई क़ाबिले ज़िक्र चीज़ आपके पास मौजूद नहीं थी। 

    सुब्हानिया जामा मस्जिद में  मौलाना जहांगीर अहमद अजीजी ने कहा कि हजरत अबू बक्र को अल्लाह ने पाकीज़ा व उम्दा अखलाक से नवाजा था। आपने तन, मन, धन से दीन-ए-इस्लाम की खिदमत की। क़ुरआन-ए-पाक की आयतों में आपका ज़िक्र है। 

    शाही जामा मस्जिद में हाफ़िज़ आफताब व कारी मो. अनस रज़वी ने कहा कि हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ की मेहनत से बेशुमार सहाबा किराम ने दीन-ए-इस्लाम अपनाया। जिनमें मुसलमानों के तीसरे खलीफा हज़रत उस्माने गनी, हज़रत ज़ुबैर, हज़रत अब्दुर्रहमान, हज़रत तल्हा और हज़रत साद काबिले जिक्र हैं।

    मकतब इस्लामियात जोहरा मस्जिद बड़गो में कारी अनीस व दरगाह अली बहादुर शाह में अली गज़नफर शाह ने कहा कि हज़रत अबू बक्र ने पूरी ज़िंदगी दीन-ए-इस्लाम का परचम बुलंद करने में लगा दी। 

    गाजी मस्जिद में हाफ़िज़ रेयाज ने कहा कि हज़रत अबू बक्र की साहबज़ादी हज़रत आयशा से पैग़ंबर-ए-आज़म ने निकाह किया। पैग़ंबर-ए-आज़म के साथ हज़रत अबू बक्र ने मदीना की तरफ हिजरत किया। आपका 13 हिजरी में इंतक़ाल हुआ। हज़रत आयशा के हुजरे में पैग़ंबर-ए-आज़म के पहलू में दफ़न हुए। हज़रत अबू बक्र की उम्र तक़रीबन 63 साल और खिलाफत 11 हिजरी से 13 हिजरी तक दो साल तीन महीने दस दिन रही। मुसलमान मदीना जाकर हज़रत अबू बक्र की बारगाह में अकीदत का सलाम जरूर पेश करते हैं।

    अंत में सलातो सलाम पढ़कर कुल शरीफ की रस्म अदा की गई। मुल्क में अमनो अमान की दुआ मांगी गई। उर्स में हाफिज आमिर हुसैन निजामी, हाफिज मो. आरिफ, हाफिज रेयाज अहमद, ताबिश सिद्दीक़ी, मो. आज़म, समीर अली, सैयद नदीम अहमद, सैयद हुसैन अहमद, महताब आलम, हाफिज मो. अमन, मो. फ़ैज़, अमान अहमद, अली गजनफर शाह, मो. ज़ैद, अरशद खान शीबू, मो. वसीम, मो. आरिफ, रियाज अहमद, नूर मोहम्मद दानिश, मो. शारिक, कमरुद्दीन आदि ने शिरकत की।

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