माता का स्थान पृथ्वी से बड़ा और पिता का स्थान आकाश से ऊंचा है पंडित विनय कुमार शास्त्री
माता का स्थान पृथ्वी से बड़ा और पिता का स्थान आकाश से ऊंचा है-पंडित विनय कुमार
सहजनवा गोरखपुर बांसगांव संदेश। किसी पुरुष की परीक्षा उसके कठिन समय में होती है ।
अज्ञातवास के समय जब पाण्डू पुत्र जल पीने से अचेत होकर मृत्यु की शैय्या पर पड़ गए,तो धर्मराज युधिष्ठिर ने यक्ष के प्रश्नों का समुचित उत्तर देकर सभी भाईयों को जीवित कर दिया। एक प्रश्न के जवाब में कहा कि- माता का स्थान धरती से बड़ा व पिता का स्थान आकाश से भी ऊंचा होता है। किसी संतान के लिए उसके माता-पिता धरती पर भगवान के ही समान हैं । उनकी सेवा ही ईश्वर की सेवा होती हैं । उक्त- बातें पंडित आचार्य विनय शास्त्री ने कही । वह घघसरा नगर पंचायत के ग्राम पनिका में चल रहे श्रीमद् भागवत व्यास पीठ से छ्ठे दिन श्रद्धालुओं को कथा रसपान करा रहे थे। उन्होंनेे कहा कि- प्रश्न के जवाब में युधिष्ठिर ने कहा कि-दया ही सभी धर्मों का मूल आधार है और सत्य ही स्वर्ग का मुख्य स्थान। धर्म न करना ही आलस्य है और अराजकता ही राज्य के पतन का कारण । मृत्यु के निकट पहुंचे व्यक्ति का साथी उसके द्वारा दिया गया दान है और पुत्र ही उसकी द्वितीय आत्मा है । चरित्रवान व्यक्ति ही ब्राह्मण है और सबके सुख की चिंता करना ही दया है। न करने योग्य कर्म से दूर रहना ही लज्जा है और आत्मा को पवित्र करना ही शुद्ध स्नान कहा जाता है। आखरी प्रश्न के जवाब में युधिष्ठिर ने यक्ष से कहा कि- भगवन् सभी भाइयों में केवल एक जीवित हो सकता है, तो मेरी दूसरी मां माद्री का पुत्र एक पुत्र नकुल को जीवित कर दीजिए। धर्म के पलड़े पर दोनों माताएं बराबर होनी चाहिए। धर्म परायणता से प्रसन्न होकर यक्ष ने सभी भाइयों को जीवित कर दिया । उक्त अवसर पर खजाने पांडे, राम प्रकाश पांडे, हनुमान, अनिल चौरसिया, महातम पांडे, बलई बाबा, शैलेंद्र, अमरेश, किशुन लाल, अमरनाथ पांडे समेत कई लोग मौजूद थे।
अज्ञातवास के समय जब पाण्डू पुत्र जल पीने से अचेत होकर मृत्यु की शैय्या पर पड़ गए,तो धर्मराज युधिष्ठिर ने यक्ष के प्रश्नों का समुचित उत्तर देकर सभी भाईयों को जीवित कर दिया। एक प्रश्न के जवाब में कहा कि- माता का स्थान धरती से बड़ा व पिता का स्थान आकाश से भी ऊंचा होता है। किसी संतान के लिए उसके माता-पिता धरती पर भगवान के ही समान हैं । उनकी सेवा ही ईश्वर की सेवा होती हैं । उक्त- बातें पंडित आचार्य विनय शास्त्री ने कही । वह घघसरा नगर पंचायत के ग्राम पनिका में चल रहे श्रीमद् भागवत व्यास पीठ से छ्ठे दिन श्रद्धालुओं को कथा रसपान करा रहे थे। उन्होंनेे कहा कि- प्रश्न के जवाब में युधिष्ठिर ने कहा कि-दया ही सभी धर्मों का मूल आधार है और सत्य ही स्वर्ग का मुख्य स्थान। धर्म न करना ही आलस्य है और अराजकता ही राज्य के पतन का कारण । मृत्यु के निकट पहुंचे व्यक्ति का साथी उसके द्वारा दिया गया दान है और पुत्र ही उसकी द्वितीय आत्मा है । चरित्रवान व्यक्ति ही ब्राह्मण है और सबके सुख की चिंता करना ही दया है। न करने योग्य कर्म से दूर रहना ही लज्जा है और आत्मा को पवित्र करना ही शुद्ध स्नान कहा जाता है। आखरी प्रश्न के जवाब में युधिष्ठिर ने यक्ष से कहा कि- भगवन् सभी भाइयों में केवल एक जीवित हो सकता है, तो मेरी दूसरी मां माद्री का पुत्र एक पुत्र नकुल को जीवित कर दीजिए। धर्म के पलड़े पर दोनों माताएं बराबर होनी चाहिए। धर्म परायणता से प्रसन्न होकर यक्ष ने सभी भाइयों को जीवित कर दिया । उक्त अवसर पर खजाने पांडे, राम प्रकाश पांडे, हनुमान, अनिल चौरसिया, महातम पांडे, बलई बाबा, शैलेंद्र, अमरेश, किशुन लाल, अमरनाथ पांडे समेत कई लोग मौजूद थे।
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