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    नमाज व कुरआन-ए-पाक की तिलावत में बीता सातवां रोजा

    नमाज व कुरआन-ए-पाक की तिलावत में बीता सातवां रोजा



    गोरखपुर। माह-ए-रमज़ान का सातवां रोजा भी नमाज व कुरआन-ए-पाक की तिलावत में बीता। चारों तरफ रौनक व खुशियां है। मस्जिद नमाजियों के सज्दे से आबाद है। घरों में इबादतों का दौर जारी है। कसरत से कलमा पढ़ा जा रहा है। पैग़ंबरे इस्लाम की बारगाह में दरूदो सलाम का नज़राना पेश किया जा रहा है। अल्लाह के बंदे दिन में रोजा रखकर व रात में तरावीह की नमाज पढ़कर अल्लाह की नेमतों का शुक्र अदा कर रहे हैं। मस्जिद व दरगाहों में सामूहिक रुप से इफ्तार हो रहा है। मस्जिदों में रमज़ान का विशेष दर्स चल रहा है। मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में पूरी रात चहल पहल रह रही है।  गुरुवार को मस्जिदे बेलाल (हजरत कंकड़ शाह निकट रेलवे म्यूजियम) में तरावीह की नमाज में एक कुरआन-ए-पाक पूरा हुआ। 

    रोजा शिष्‍टाचार सिखाता है : मोहम्मद अहमद 

    गौसिया जामा मस्जिद छोटे काजीपुर के इमाम मौलाना मोहम्मद अहमद निज़ामी ने बताया कि रमज़ान के पवित्र माह में रोजा रखने से नसों में खून का दबाव संतुलित रहता है। यह सभ्‍यता और शिष्‍टता प्रदान करता है। रोजा के दौरान रक्‍तचाप सामान्‍य रहने से भलाई, सुव्‍यवस्‍था, आज्ञापालन, धैर्य और नि:स्‍वार्थता का अभ्‍यास भी होता है। रमज़ान के पवित्र माह में रोजा रखने से पाचन क्रिया और अमाशय को आराम मिलता है। सालों-साल लगातार काम करने के कष्‍ट से शरीर की इन मशीनरियों को कुछ दिनों तक आराम मिलता है। इस दौरान आमाशय शरीर के भीतर फालतू चीजों को गला देता है। यह लंबे समय तक रोगों से बचे रहने का एक कारगर नुस्‍खा है। उन्होंने बताया कि पैगंबरे इस्लाम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को खजूर बेहद पसंद थी। खजूर में बहुत शिफा है। खजूर से रोजा खोलना पैग़ंबरे इस्लाम की सुन्नत है। खजूर जन्नत का फल है और इसमें जहर से भी शिफा है। खजूर खाने से न सिर्फ थकावट दूर होती है बल्कि गुर्दे की ताकत भी बढ़ती है। 
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    माहवारी आने से रोज़ा टूट जाएगा : उलमा किराम

    गोरखपुर। तंजीम उलमा-ए-अहले सुन्नत द्वारा जारी रमज़ान हेल्पलाइन नंबरों पर गुरुवार को सवाल-जवाब का सिलसिला जारी रहा। उलमा किराम ने क़ुरआन व हदीस की रोशनी में जवाब दिया। 

    1. सवाल : रोज़े की हालत में अगर हैज (माहवारी) आ जाए तो उसके लिए क्या हुक्म है? (मो. इस्लाम, सिधारीपुर )

    जवाब : रोज़े की हालत में अगर मगरिब से पहले पहले किसी भी समय महिला को हैज आ जाए तो उसकी वजह से रोज़ा फासिद (टूट) हो जाएगा और पाक होने के बाद उस रोजे की कज़ा रखना लाज़िम है। (मुफ्ती मो. अजहर)

    2. सवाल : सदका-ए-फित्र कब निकालना चाहिए? (मोहम्मद आजम, रायगंज)

    जवाब : ईद के दिन सुबह सादिक तुलू होते ही वाजिब होता है, लेकिन हो सके तो रमज़ान में ईद से कुछ दिन पहले ही निकाल लें ताकि ग़रीब हजरात भी अपनी जरूरियात पूरी कर ईद की ख़ुशी में शरीक हो सकें। (कारी मो. अनस)
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