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    रमज़ान के चौथे जुमा की नमाज अदा, मांगी दुआ

    रमज़ान के चौथे जुमा की नमाज अदा, मांगी दुआ 



    गोरखपुर। रमज़ानुल मुबारक के चौथे जुमा की नमाज शहर की छोटी-बड़ी तमाम मस्जिदों में अमनो सलामती, खुशहाली व भाईचारे की दुआ के साथ संपन्न हुई। चौथा जुमा व 22वां रोजा अल्लाह की इबादत व जिक्र में बीता। रमज़ान का चौथा जुमा होने के कारण बड़ी तादाद में नमाजी मस्जिदों में पहुंचे। शहर की सभी मस्जिदें भरी रहीं। घरों में महिलाओं ने नमाज अदा की। कुरआन-ए-पाक की तिलावत की।  

    सुबह से ही जुमा के नमाज की तैयारी शुरु हो गई। लोगों ने गुस्ल किया। साफ सुथरे कपड़े पहने। टोपी पहनी। इत्र लगाया। जुमे की नमाज को लेकर बच्चों में उत्साह देखा गया। मुस्लिम क्षेत्रों में सुबह से कुर्ता पायजामा पहनकर जुमे की नमाज पढ़ने के लिए लोग तैयार होते नजर आए। हर मस्जिद में रमज़ान की फजीलत बयान की गई। 

    गाजी मस्जिद गाजी रौजा में मुफ्ती-ए-शहर अख्तर हुसैन मन्नानी ने जुमा की तकरीर में बताया कि पैगंबरे इस्लाम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने जिन त्योहारों के जरिए विषमता को दूर कर एक समरस समाज बनाने की कोशिश की उनमें ईद-उल-फित्र की खास अहमियत है। जकात एवं सदक-ए-फित्र की व्यवस्था सामाजिक न्याय एवं आर्थिक विपन्नता को ध्यान में रखकर ही की गई है। रमज़ान में जकात व सदका-ए-फित्र देने का जो मकसद है वह साफ-साफ इस बात की ओर इशारा करता है कि ईद का चांद निकलने से पहले हर व्यक्ति अपनी जरूरत की चीजें हासिल कर ले जिससे वह ईद की खुशी का लुत्फ उठा सके। 

    सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफ़रा में हाफिज रहमत अली निजामी ने कहा कि रमज़ान का महीना हमारी ट्रेनिंग के लिए आया था ताकि हम साल के अन्य महीनों में अल्लाह के फरमाबरदार बनकर ज़िंदगी गुजारें। ईद की रात बहुत बाबरकत वाली रात होती है लिहाजा इसे इबादत में गुजारें। ईद की रात ईनाम मिलने की रात है, इसे घूम टहल कर बाजार में बर्बाद न करें। नमाज की पाबंदी करें। कुरआन-ए-पाक की तिलावत करें और उसके हुक्म पर ज़िंदगी गुजारें। झूठ, फरेब, रिश्वतखोरी से खुद को बचाएं। बेहूदा कलमात जबान से न निकालें। चुगली न करें। शबे कद्र की ताक रातों में खूब इबादत करें।

    वहीं मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती चौक में मुफ्ती मेराज अहमद कादरी, दरगाह हजरत मुबारक खां शहीद मस्जिद नार्मल में मुफ्ती मुनव्वर रज़ा, नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर में मौलाना मो. असलम रज़वी, मस्जिद खादिम हुसैन तिवारीपुर में कारी अफजल बरकाती, चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर में मौलाना महमूद रज़ा कादरी, गौसिया जामा मस्जिद छोटे काजीपुर में मौलाना मोहम्मद अहमद निज़ामी, सुब्हानिया जामा मस्जिद तकिया कवलदह में मौलाना जहांगीर अहमद अज़ीज़ी, मस्जिद जामे नूर जफ़र कॉलोनी बहरामपुर में मौलाना सद्दाम हुसैन निज़ामी, मुकीम शाह जामा मस्जिद बुलाकीपुर में मौलाना फिरोज अहमद निजामी, सुन्नी बहादुरिया जामा मस्जिद रहमतनगर में मौलाना अली अहमद सहित तमाम मस्जिदों के इमाम ने रोजा, शबे कद्र, एतिकाफ, फित्रा, जकात आदि के बारे में बयान किया। 

    शाम को असर की नमाज पढ़ी गई। लजीज व्यंजन व शर्बत से दस्तरख्वान सज गए। इफ्तार के समय सबने अल्लाह का शुक्र अदा करते हुए रोजा खोला। रात में एशा, तरावीह व वित्र की नमाज अदा की। शबे कद्र की दूसरी ताक रात में खूब इबादत की गई। बाजार में काफी चहल-पहल है। खरीदारी तेज हो गई है।
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    जहरीले जानवर के डंसने से रोज़ा नहीं टूटेगा : उलमा किराम

    गोरखपुर। तंजीम उलमा-ए-अहले सुन्नत द्वारा जारी रमज़ान हेल्प लाइन नंबरों पर शुक्रवार को सवाल-जवाब का सिलसिला जारी रहा। लोगों ने नमाज़, रोज़ा, जकात, फित्रा, एतिकाफ, शबे कद्र आदि के बारे में सवाल किए। उलमा किराम ने क़ुरआन ओ हदीस की रोशनी में जवाब दिया।

    1. सवाल : क्या बूढ़ा व्यक्ति रोजा रखने के बजाए उनका फिदया दे सकता है? (मो. शहाबुद्दीन, गोरखनाथ)
    जवाब : अगर बूढ़ा व्यक्ति इतना कमज़ोर है कि न अभी रोज़ा रख सकता है न आने वाले वक्त में ताकत की उम्मीद है तो ऐसा व्यक्ति रोज़ों के बजाए फिदया दे सकता है। (मुफ्ती अख़्तर हुसैन मन्नानी)

    2. सवाल : बकद्रे निसाब माल पर साल रमज़ान से पहले ही पूरा हो जाए, तो जकात के लिए रमज़ान का इंतज़ार करना कैसा? (खुर्शीद अहमद, धम्माल)
    जवाब : बकद्रे निसाब माल पर साल पूरा होते ही जकात देना फ़र्ज़ है, साल पूरा होने के बाद जकात की अदाएगी के लिए रमज़ान का इंतज़ार करना जायज नहीं है। (मौलाना मोहम्मद अहमद निज़ामी)

    3. सवाल : रोज़े की नियत कर ली जबकि सेहरी का वक्त अभी बाकी है तो क्या नियत करने के बाद कुछ खा पी सकता है? (सैयद मारूफ, सूरजकुण्ड)
    जवाब : हां। सेहरी का वक्त खत्म होने तक खा सकता है। (कारी मो. अनस रज़वी)

    4. सवाल : क्या जहरीले जानवर सांप, बिच्छू वगैरा के डंसने से रोज़ा टूट जाएगा? (सैयद मोहम्मद काशिफ, घोसीपुर)
    जवाब : सांप, बिच्छू वगैरा के डंसने से रोज़ा नहीं टूटेगा, बल्कि अगर जान जाने का खतरा हो तो रोज़ा तोड़ लें और बाद में उसकी कजा करे। (मुफ्ती मो. अजहर शम्सी)

    5. सवाल : अगर फिदया देने के बाद कमज़ोरी जाती रही तो क्या हुक्म होगा? (सैयद मोहम्मद ओसामा, घोसीपुर)
    जवाब : अगर रोज़ों की फिदया देने के बाद रोज़ा रखने की ताकत आ गई तो जो फिदया दिया था वो नफली सदका हो जाएगा, और रोज़ों की कजा रखना लाज़िम होगा। (मुफ्ती मेराज अहमद क़ादरी)

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