निराश्रित गो-आश्रय स्थलों में साइलेज अनिवार्य करने वाला पहला जिला बना देवरिया
देवरिया । जिलाधिकारी अखंड प्रताप सिंह ने निराश्रित गो-आश्रय स्थलों में संरक्षित गोवंशों को पोषक तत्वों से युक्त संपूर्ण आहार उपलब्ध कराने के लिए नई शुरुआत की है। डीएम की पहल पर जनपद में संचालित समस्त गोशालाओं में साइलेज का प्रयोग बतौर चारा करना अनिवार्य कर दिया गया है। देवरिया ऐसा करने वाला प्रदेश का पहला जनपद बन गया है।
जिलाधिकारी अखंड प्रताप सिंह ने बताया कि नवाचार के तहत समस्त शासकीय सहायता प्राप्त निराश्रित गो-आश्रय स्थलों में संरक्षित गोवंशों को भोजन में भूसे की जगह साइलेज देना शुरू किया गया है। भूसे में किसी भी तरह की न्यूट्रिशियस वैल्यू नहीं होती है, जबकि साइलेज पोषक तत्वों से युक्त अत्यंत पौष्टिक आहार है। विगत एक माह से सभी गोवंशों को लगभग तीन किलो साइलेज दिया जा रहा है, जिसका आउटपुट बहुत अच्छा है। गाय की सेहत सुधर रही है और वे पहले से अधिक स्वस्थ दिख रहे हैं। जिलाधिकारी ने बताया कि जनपद में सरकारी सहायता प्राप्त समस्त गोशालाओं में भूसे की खरीद पर रोक लगा दी गई है। भूसे के पुराने स्टॉक को खपाने का निर्देश दिया गया है। यदि किसी नगर निकाय अथवा जिला पंचायत ने भूसे का क्रय किया तो उसका भुगतान नहीं किया जाएगा। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार साइलेज के प्रयोग को प्रोत्साहन दे रही है।
मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ अरविंद कुमार वैश्य ने बताया कि जनपद के 24 निराश्रित गो-आश्रय स्थलों में 1708 गोवंश संरक्षित हैं। साइलेज की आपूर्ति सीतापुर स्थित एक निजी फर्म द्वारा की जा रही है। साइलेज के प्रयोग का सकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहा है। इसके सेवन से विभिन्न रोगों के प्रति गोवंशों की प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ी है, जिससे उनके बीमार होने की दर घटी है।
क्या होता है साइलेज
साइलेज एक नए जमाने का पशु आहार है जिसे दुधारू पशुओं के लिए वरदान सरीखा माना गया है। यह हरे चारे और दाने के बीच की कड़ी है अतः इसमें दोनों के गुण पाए जाते हैं। इसमें 20 प्रतिशत तक मक्के के दाने का प्रयोग होता है। इसमें प्रोटीन, क्रूड फाइबर, स्टार्च, जिंक, कैल्शियम, आयरन, फॉस्फोरस, पोटेशियम सहित विभिन्न तरह के पोषक तत्व होते हैं। इसे बनाने में आमतौर पर मक्का, बाजरा, ज्वार इत्यादि का प्रयोग किया जाता है। इसके प्रयोग से दूध उत्पादन क्षमता में वृद्धि के साथ इसकी गुणवत्ता अच्छी होती है और फैट की मात्रा बढ़ती है। रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। पशुओं को साल भर एक जैसे चारे की उपलब्धता सुनिश्चित होती है और इसकी लागत भी कम आती है। जनपद में इसकी आपूर्ति 8.90 से रुपये प्रति किलो की दर से हो रही है।
कैसे बनता है साइलेज
साइलेज बनाने के लिए पहले मक्का की फसल को दुधिया दाने की अवस्था में भुट्टे सहित काट कर कुट्टी कर लेते हैं। फिर इस कुट्टी किये हुए चारे को इनकुलेन्ट से शोधित करके, मशीनों की मदद से अच्छे से दबा कर एयर टाइट पैक कर दिया जाता है | एयर टाइट बैग में पैक रहने पर चारे में फर्मेंटेशन होता है और लगभग 21 से 30 दिन में साइलेज बनकर तैयार हो जाता है | साइलेज को बेलर मशीन से बनाया जाता है।
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