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    गाजर की खेती के बारे में जानकारी- डा मनोज कुमार कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार

    गाजर की खेती के बारे में जानकारी- डा मनोज कुमार कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार

    पीपीगंज गोरखपुर।बांसगांव संदेश।गाजर एक महत्वपूर्ण जड़ वाली स्वादिष्ट और पौष्टिक सब्जी है। जो ज्यादातर सर्दियों के महीनों के दौरान उपलब्ध होती है। इसकी खेती पूरे भारत में की जाती हैं। गाजर को कच्चा एवं पकाकर दोनों ही तरह से लोग प्रयोग करते है इसके रस में कैरोटिन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह विटामिन और पोषक तत्वों का का बड़ा स्रोत है। गाजर का सेवन करने से शरीर में विटामिन ए, बी, और सी की कमी नही हाती है। महत्वपूर्ण विटामिनों के अलावा, गाजर में फोलेट, लोहा, तांबा, पोटेशियम पाई जाती है। इसकी जड़ें, सब्जी, सलाद, आचार, मुरब्बा और हल्वा आदि बनाने में प्रयोग होती हैं। इसकी पत्तियों को पशुओं और मुर्गीयो को भी खिलाया जाता है। क्योकि इसमें खनिज लवण और विटामिन प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। गाजर से कई स्वास्थ्य लाभ हैं। रोजाना इसके सेवन से आंखों की रोशनी बेहतर होती है, इम्यूनिटी बेहतर होती है और कैंसर से बचाव होता है। 


    जलवायु- वैसे तो गाजर ठंडी जलवायु की फसल है। गाजर के रंग और आकार पर तापक्रम का बहुत असर पड़ता हैं बीज के जमाव ,वं पौधों की बढ़वार हेतु 7.2 से 23.9 डिग्री सेल्सियस तापक्रम तथा अच्छे आकार एवं आकर्षक रंग के लिए तापक्रम 12-20 डिग्री सेल्सियस उपयुक्त रहता है।
    भूमि का चुनाव - गाजर की अच्छी पैदावार के लिए गहरी, भुरभुरी, हल्की दोमट भूमि, जिसकी पी एच मान 6.6 से 7 तक हो, सर्वोत्तम होती है। भूमि में पानी का निकास अच्छा होना चाहिए।
     भूमि की तैयारी - खेत की तैयारी के लिए, पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल तथा बाद में दो से तीन जुताई देसी हल या कल्टीवेटर से करके पाटा चला कर मिट्टी को भूर-भूरी और समतल कर लेना चाहि, जिससे खेत में सिंचाई सुगमता पूर्वक हो सके।
    उन्नतशील किस्में - अच्छे गुणों वाली मोटी, लम्बी, या नारंगी रंग की जड़ो वाली गाजर अच्छी मानी जाती हैं। गाजर के जड़ के बीच का कठोर भाग कम और गूदा अच्छा होना चाहिए।इसकी किस्मों को मुख्यता दो वर्गों में विभाजित किया गया है।
    1 यूरोपियन किस्में - इसकी औसत उपज 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है। इन किस्मों को ठण्डे तापक्रम की आवश्यकता होती हैं। यह किस्में गर्मी सहन नहीं कर पाती हैं। इसकी बुवाई का समय अक्टूबर से नवम्बर में करते हैं। इसकी प्रमुख किस्में 
    नैन्टस -इस किस्म की जडें 12 से 15 लम्बी, बेलनाकार, नांरगी रंग भाग मुलायम, मीठा और सुवासयुक्त तथा 110 से 112 दिन में तैयार होती है। उपज 100 से 125 क्विंटल प्रति हेक्टेअर होती है।  
    पूसा यमदाग्नि- इस किस्म की जडें 12 से 15 लम्बी तथा उपज 150 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेअर होती हैै। 
    अन्य प्रजातियां
    चैन्टने, जेनो, पूसा नयनज्योति आदि है।
    2 एशियाई किस्में - यह किस्में अधिक तापमान सहन कर लेती हैं। जो इस प्रकार है।
    पूसा केसर
    यह लाल रंग की, पत्तियाँ छोटी एवं जड़ें लम्बी, बीच का भाग संकरा तथा कैरोटीन भरपूर मात्रा 38 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम खाद्य भाग में पाया जाता हैं। फसल 90 से 110 दिन में तैयार हो जाती है. उपज 300 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेअर होती है।
    पूसा मेघाली
    इस किस्म में कैरोटीन भरपूर मात्रा में पाया जाते हैं। यह किस्म बीज उत्पादन करने के लिए, अच्छी होती है इस किस्म को तैयार होने में 100 से 110 दिन का समय लगता है. एक हेक्टेयर में इसकी उपज 300 क्विंटल तक होती है।
    अन्य प्रजातियां
    पूसा वसुदा, गाजर 29, आदि। 
    बीज की मात्रा - सामान्य गाजर की खेती हेतु बीज दर 6 से 8 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर रखनी चाहिए। 
    बीजोपचार - फसल को फफूंद जनित रोग से बचाने हेतु बीज को बोने से पहले थायराम या वाबिस्टीन 3 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर के बोना चाहिए।  
    बोने का समय - गाजर की बुवाई का समय इस बात पर निर्भर करता हैकि उसकी कौन सी किस्म उगा रहे हैं।यदि एशियाई किस्म उगा रहे है तो उसकी बुवाई अगस्त से अक्टूबर प्रथम सप्ताह तक करते हैं।जब कि यूरोपियन किस्म को अक्टूबर तथा नवम्बर में करते हैं।बोने की विधि इसकी बुवाई समतल क्यारियो या डौलियो पर की जाती है। इसकी अधिक उपज प्राप्त करने के लिए इसे डौलियो पर उगाते है।
    बीज की बुवाई
    बीज की बुवाई के लि, कतार से कतार की दूरी 30×30 सेन्टीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 7.5×7.5 सेंटीमीटर रखते हैं। बीजोँ को बोते समय उन्हे 0.5 से 1 सेंटीमीटर गहराई मे बोना चाहिये।
    खाद एवं उर्वरक - गाजर के पैदावार में खाद एवं उर्वरक का अच्छा प्रभाव पड़ता है।मृदा जाँच के उपरान्त इनका उपयोग करना लाभप्रद रहता है। समान्यता गाजर की भरपूर उपज लेने के लिए उसमें अन्तिम जुताई से 2 सप्ताह पहले 30 टन गोबर की खाद प्रति हैक्टेयर तथा अन्तिम जुताई के समय 250 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट , 300 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश , 125 किलोग्राम अमोनियम नाइट्रेट, तथा बुवाई के 40 दिन बाद 50 किलोग्राम यूरिया देना चाहिए।
    सिचाई एवं जल निकास - बीज बोने के उपरान्त डौलियो को नम रखनाआवश्यक होता है।जब तक की बीज का अंकुरण न हो जाय मुख्यता गाजर की पत्तिया मुरझाने से पूर्व 8 -10 दिन के अन्तराल पर सिचाई करना चाहिए क्यो की अपर्याप्त नमी के कारण उपज कम मिलती है। तथा अधिक नमी के कारण भी उपज कम मिलती है। अतः खेत में आवश्यकता से अधिक पानी नहीं देना चाहिए।
    फसल सुरक्षा -   
    1. खरपतवार नियंत्रण - गाजर के साथ उगे खरपतवार का नियंत्रण करना आवश्यक होता है। क्योकि इसका फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।अतः रोकथाम करना आवश्यक है। इसके नियंत्रण के लिए आवश्यकतानुसार निकाई गुडाई करे।या खरपतवार नाशी का प्रयोग करे।
    जैसे - स्टाम्प की 3.5 लीटर मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर अंकुरण से पूर्व छिड़काव करना चाहिए।
    2. कीट नियंत्रण - गाजर में मुख्य रूप से पत्तीफुदका तथा कटवर्म कीट का प्रकोप ज्यादा होता है।अतः पत्तीफुदका के नियंत्रण के लिए 0.05 प्रतिशत मोनोक्रोटोफास का छिड़काव करना चाहिए। तथा कटवर्म के नियंत्रण के लिए 0.1 प्रतिशत क्लोरोपाइरीफास के घोल का छिड़काव करना चाहिए।
    3. रोग - गाजर में मुख्यता आर्दविगलन रोग का प्रकोप ज्यादा देखने को मिलता है। जो पिथियम अफनीडरमैटम नामक फफूँदी से होता है। जिससे बीज अंकुरित होने से पहले भूमि में सड जाता है। या अंकुरण के बाद पौधा सड कर गिर जाता है। इसके नियंत्रण के लिए बीज बोने से पूर्व कैप्टान 3 ग्राम प्रति किलोग्राम से बीज को उपचारित करना चाहिए।
    4. जीवाणुज मृदुविगलन - इस रोग में इर्वीनिया कैरोटोवोरा नामक जीवाणु गाजर के गूदे पर आक्रमण करता है जिससे जड़े सड जाती है। इसके नियंत्रण के लिए खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। तथा रोग का लक्षण दिखने पर नाइट्रोजनधारी उर्वरक का प्रयोग न करे।
    5. कैरेट यलोज - यह रोग विषाणु से होता है। इसका प्रकोप पत्तियों पर होता है जिससे पत्तियों का मध्य भाग चितकबरा हो जाता है तथा पत्तिया पीली पड कर मुड जाती है। जिससे जड़ो का आकार छोटा रह जाता है। इसके नियंत्रण के लिए 0.02 प्रतिशत मैलाथियान का छिड़काव करना चाहिए।
    गाजर की खुदाई - इसकी खुदाई उसकी उगाई गयी किस्मो पर निर्भर करता है। वैसे जब गाजर की जड़ो के ऊपरी सिरे 2.5 सेमील व्यास के हो जाएँ तब खुदाई कर लेना चाहिए।
    गाजर की उपज - गाजर की उपज कई बातो पर निर्भर करता है। जैसे -भूमि की उर्वरा शक्ति, उगाई गयी किस्म, बोने की विधि और फसल की देखभाल पर निर्भर करती है। आमतौर पर गाजर की उपज 200 से 250 क्विंटल प्रति हैक्टेयर मिल जाता है।
    प्रसंसकरणः-सामान्य दशा में गाजर को 2 से 3 दिन से अधिक भंडारित नहीं किया जा सकता है, परन्तु छिद्रित पॉलीथीन में रखकर इसे कम से कम लगभग 2 सप्ताह तक भडारित किया जा सकता है, जबकि गाजर शीतगृह में 0 से 4.4 डिग्री सेल्सियस तापक्रम व 93 से 98 प्रतिशत आद्रता पर लम्बे समय के लिये (4 से 6 माह) तक आसानी से परिरक्षित कर सकते है।

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